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इस मंदिर में माता के दर्शन करने से पूरी होती हैं मन्नते

रुपईडीहा से सटे नेपाली शहर नेपालगंज में माता वागेश्वरी के दर्शन से भक्तों की हर मनोकामना होती हैं पूर्ण।

राम जी सोनी
  • Apr 19 2021 11:09AM
नेपालगंज-नेपाल ।पड़ोसी नेपाली जिला बांके के मुख्यालय नेपालगंज स्थित माता बागेश्वरी का मंदिर प्राचीन काल से भक्ति व आस्था का केंद्र है।इस मंदिर के पीछे अनेकों जनश्रुतियां व किवदंतियां प्रचलित हैं।वर्तमान समय में 24वीं पीढ़ी के महंत हरिहर दास योगी व चंद्र नाथ योगी पीठासीन हैं।मंदिर की ऐतिहासिकता के बारे में गत 30 वर्षों से मंदिर के प्रति आस्थावान भवानी भक्त डॉ सनत कुमार शर्मा कहतें हैं कि प्राचीन काल मे ईशा की चौदहवीं शताब्दी के आसपास नेपाली जिला जुम्ला से 2 नाथ सम्प्रदाय के गुरु शिष्य भारतीय तीर्थो की यात्रा हेतु यहां ठहरे।देवी ने सपने में गुरु से कहा कि यह मेरा स्थान है यहां मंदिर बनवाओ।गुरु शिष्य मंदिर के सामने पोखरे से मिट्टी की दीवाल बनाते थे।परंतु रात में गिर जाती थी।सातवें दिन फिर माता ने गुरु जी सपने में कहा कि एक बलि के बिना मंदिर नही बनेगा।गुरु सिद्ध योगी सिद्ध नाथ ने कहा कि एक गड्ढा खोदो मैं उसमें बैठ जाऊंगा तुम पाट देना इसे नेपाली भाषा मे आज भी जिउंदो समाधि भी कहतें हैं ।मंदिर के दक्षिण कोने पर आज भी यह समाधि षट्कोण के रूप में है।इस पर भी श्रद्वालु माथा टेकते हैं।नेपालगंज निवासी माता के भक्त बताते हैं कि मेरे पूर्वजों के अनुसार यह क्षेत्र बलरामपुर स्टेट की जागीर था।इसकी पुष्टि में इसे नेपाली लोग नयां मुलुक भी कहतें हैं।समझौते के अनुसार नेपाली जिला बांके बर्दिया, कंचनपुर व कैलाली को अंग्रेजो ने इसे नेपाली राणा शासकों को दे दिया था। इसके पूर्व लगभग 8 सौ साल पहले भ्रमण करने अपनी जागीर देखने तत्कालीन बलरामपुर स्टेट के महाराजा दिग्विजय सिंह इस क्षेत्र में आये।यहां छप्पर के नीचे माता का मंदिर देखा तो उन्होंने मंदिर के नाम बांके जिले की जानकी गांव गांव सभा मे करमोहना गांव में 87 बीघा जमीन मंदिर के नाम कर दी थी।जो आज भी बांके जिले के भूलेख विभाग में दर्ज है।नेपाल सरकार ने बलि हेतु 3 हजार 9 सौ 96 रुपये भी प्रति नवरात्र निर्धारित कर रखा है।वर्तमान समय में नाथ सम्प्रदाय के 24वी पीढ़ी के महंत पूजा करते आ रहें हैं।मंदिर के संबंध में स्वामी नरहरि दास ने अपने ग्रंथ देवभूमि भारत व आध्यात्मिक नेपाल में लिखा है कि वाणी की अधिष्ठात्री माता सरस्वती का रूप यहां देदीप्यमान है। नाथ सम्प्रदाय के कनफट्टा योगी भी प्राचीनकाल से माता की पूजा करतें आ रहें हैं।पुजारियों को मृत्यु के बाद समाधि दी जाती है।मंदिर के पूर्व दायीं ओर पीपल के पेड़ के नीचे समाधियां बनी हैं।विक्रमी संवत 2015 में जब तत्कालीन राजा महेन्द्र विक्रम शाह नेपालगंज आये तो डॉ योगी राज रामनाथ अघोरी की प्रर्थना पर भुवनेश्वरी खनाल ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर की पूजा विधि भी नित्य तांत्रिक व वैदिक पद्धति द्वारा की जाती है।स्नान कर पुजारी मंदिर के कपाट खोल कर सुबह 3 बजे से 4:30 बजे तक मुँह पर पट्टी बांध कर कपाट बंद कर माता की पूजा करता है।उसके पश्चात ही कपाट खोले जातें हैं।वर्तमान मंदिर उत्कृष्ट पैगोडा शैली का तीन मंजिला है।चौकोर आधार 11 मीटर 90 सेंटीमीटर का है।चारों दिशाओं में चार द्वार है।पश्चिम द्वार बंद रहता है।प्रदक्षिणा पथ खुला रहता है।चारो ओर 1 सौ 8 लोहे के दीपक हैं।श्रद्धालु इनमे घी तेल डाल कर दीपक जलाते रहतें हैं।प्रवेश द्वार पर नेपाल का राष्ट्रीय ध्वज फहराता रहता है। नेपालगंज के प्रसिद्ध सर्राफ संजय सोनी कहतें हैं कि शिव शक्ति के उपासक नेपाल में राजशाही व माओवादी संघर्ष के दौरान भी माता की पूजा में कोई विघ्न नही पड़ा।आज भी हिन्दू संस्कार नेपाली समाज मे मजबूती से विद्यमान हैं।हिन्दू संस्कृति व संस्कृत भाषा पर हुए हमलों के बावजूद मंदिर की आस्था आज भी सुदृढ़ है। बाबागंज निवासी एडवोकेट मनोज पाठक बताते हैं कि शारदीय व चैत्र नवरात्रो में मेरे साथ एडवोकेट बीडी वर्मा,अर्जुन अमलानी,एडवोकेट घनश्याम दीक्षित सहित बब्लू सिंह डॉ सनत कुमार शर्मा के नेतृत्व में सप्तमी कालरात्रि के दिन मंदिर जागरण हेतु जाया करते थे ।डेढ़ वर्ष से माता के दरबार मे नही जा पा रहें हैं।इसका हमे बहुत दुःख है। मंदिर के सामने ही तालाब में खडेश्वर मूंछ वाले महादेव की आदम कद प्रतिमा भी विद्यमान है।यहां भी दर्शनार्थी मत्था टेकते हैं।

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