लेखक - राजीव श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार
जैसे जैसे उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2022 नजदीक आरहे हैं वैसे वैसे प्रदेश में राजनैतिक गतिविधियां बढ़ रहीं है। इसके साथ ही हर गतिविधि के नए राजनैतिक मायने तलाशे जा रहे हैं। यही नहीं हर घटनाक्रम को अब राजनीति से भी जोड़ा जा रहा है। ऐसे में हाल ही में सम्पन्न हुए पंचायत चुनाव ने भी राजनैतिक विश्लेषकों को खासा सक्रिय कर दिया और उसके निष्कर्षों को अलग अलग नजरिए से देखा गया। ज्यादातर विश्लेषकों ने सत्तारूढ़ बीजेपी के परफॉरमेंस को विधान सभा चुनाव में आने वाले निष्कर्ष के संकेतों के रूप में देखा।
पंचायत चुनाव के परिणाम बने BJP के लिए बड़ी चुनौती-
सभी राजनैतिक पार्टियों में बीजेपी ही अकेली पार्टी थी जिसने प्रदेश स्तर पर पार्टी समर्थित प्रत्याशियों की घोषणा की थी। ऐसे में पचायत चुनाव के निष्कर्ष पार्टी के लिए बड़ी चुनौती बनकर निकला। बीजेपी को वो सफलता पंचायत चुनावों में नहीं मिली जितने को लेकर पार्टी के नेता आश्वस्त लग रहे थे। पार्टी समर्थित कुल 800 के करीब प्रत्याशी ही विजय प्राप्त कर पाए जबकि सपा ने बीजेपी से अधिक प्रत्याशियों के जीतने का दावा किया, वहीं दूसरी ओर बीएसपी समर्थित 350 से ऊपर प्रत्याशियों ने विजय प्राप्त की तो काँग्रेस की झोली में जैसे तैसे 76 समर्थित प्रत्याशी ही आए। चूंकि पंचायत चुनाव पार्टी के चुनाव चिन्ह पर नहीं लड़े जाते हैं ऐसे में सभी पार्टियां प्रत्याशियों को जीत के बाद अपना बताती है इसलिए सही संख्या क्या है यह बता पाना मुश्किल होता है फिर भी एक आसपास का आँकलन तो रहता ही है। शायद यही कारण भी रहा है कि कम प्रत्याशियों के विजयी होने के बावजूद बीजेपी नेतृत्व यह दावा करता रहा है की जो संख्या बताई जा रही है वो तो वो हैं जिनके नाम पार्टी ने घोषित किये थे इसके अलावा कई ऐसे है जो हैं तो पार्टी के कार्यकर्ता परंतु टिकट ना मिलने के कारण बागी बनकर लड़े और जीत गए। ऐसी संख्या भी बहुत बड़ी है।
विधानसभा चुनाव के परिणाम पर तय होगी आगे की प्रतिबद्धता-
ऐसे ही बीजेपी की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी भी बीजेपी पर आरोप लगाती है। खैर किस पार्टी के कितने प्रत्याशी चुनाव जीते उसका उतना महत्त नहीं दिखता हैं क्यूंकी जिला पंचायत अध्यक्ष आदि के चयन के लिए सभी पार्टियां दावा कर रही है। हाँलाकी जानकार बताते हैं कि अमूमन अध्यक्ष का चुनाव सत्तारूढ़ पार्टी के प्रभाव में ज्यादा होता है इसलिए कम संख्या होने के बावजूद बीजेपी 75 जिला पंचायतों में से 60 पर पार्टी के प्रति सहृदयता दिखाने वाले प्रत्याशियों को अध्यक्ष बनाने की कवायद में है। वहीं दूसरी ओर जानकार बताते हैं की यदि विधान सभा चुनावों के पश्चात सरकार बदल जाती है तो ऐसा देखा जाता है कि जिला पंचायत अध्यक्षों आदि की अपनी प्रतिबद्धता भी बदल जाती है और जिनकी नहीं भी बदलती है वहाँ समर्थन वापस लेने और देने के चलते नया चयन हो जाता है।
BJP करेगी डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज -
बीजेपी सूत्रों की माँने तो पार्टी ने यह लक्ष्य रखा है की पार्टी 75 जिला पंचायतों में से 60 पर अपने मन का अध्यक्ष बैठ पाए। पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि पंचायत चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद अध्यक्षों के चुनाव में प्रत्याशित सफलता डैमिज कंट्रोल एक्सर्साइज़ के रूप में होगी जिससे पार्टी की पंचायत चुनावे के बाद बिगड़ी छवि को सुधारने का मौका भी मिलेगा।
संगठन मंत्री सुनील बंसल के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी -
पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस काम को सफलतापूर्वक अंजाम देने के लिए उत्तर प्रदेश बीजेपी के संगठन मंत्री सुनील बंसल स्वयं लगे हुए हैं। पार्टी सूत्र यह भी बताते हैं कि लक्ष्य के विरुद्ध सुनील बंसल 40 से 45 अध्यक्षों की सूची को अंतिम रूप दे चुके हैं और अगले 20 से 25 दिनों में बाकी नामों को भी अंतिम रूप दे लेंगे। सूत्र बताते हैं की ये सब काम जुलाई के पहले सप्ताह तक खत्म कर लिए जाएगा उसके बाद जुलाई 15 से पार्टी 2022 चुनाव की तैयारी में पूरी तरह जुट जाएगी।
पंचायत चुनावों के बीजेपी के प्रभारी रहे विधान परिषद सदस्य विजय बहादुर पाठक दावा करते हैं कि पार्टी की ये कोशिश है की अधिक से अधिक जिला पंचायतों अध्यक्ष बीजेपी समर्थित हो जिससे पंचायत लेवल तक विकास को आगे भी गति मिली रहे।
लेखक - राजीव श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार