मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का आज सुबह लखनऊ के मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन के बाद देश की राजनीतिक गलियारे में शोक की लहर दौड़ गई। देश के तमाम बड़े नेताओं ने लालजी टंडन के निधन पर अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्त करें लेकिन इन सबके बीच बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि लालजी टंडन के बचपन का नाम लल्लू था। बालक लल्लू से महामहिम लालजी तक के उनके जीवन पथ पर अनेंक प्रेरणा के पत्थर हमें दिखते है, जो कि बरबस ही राजनैतिक लोगो को प्रेरित कर जाते हैं।
उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार ने जब मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चलते हुए राजधानी लखनऊ के लक्ष्मण टीले वाले स्थान का नामकरण टीले वाली मस्जिद के रूप में करने का एलान किया था। उस वक्त लखनऊ के लाल इन्हीं लालजी टंडन ने सपा सरकार के खिलाफ प्रभावशाली विरोध दर्ज कराया था। "अनकहा लखनऊ" शीर्षक से किताब लिखकर बाबूजी ने ही अखिलेश सरकार की उस वास्तविकता का आइना दिखाया था जिस आईने में अपनी सूरत देखकर तत्कालीन सरकार सहम गई थी।
ऐसे प्रखर विरोध के बावजूद भी कभी लखनऊ के इस लाल पर मुस्लिम विरोधी दाग नहीं लगा। जानते हैं क्यों? क्योंकि हर कोई जानता था कि ये वही लालजी हैं जिन्होंने लखनऊ से शिया-सुन्नी विवाद को खत्म कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह शिया-सुन्नी विवाद जिसकी वजह से आये दिन लखनऊ की सड़कें इंसानी खून से लाल हो जाया करती थी।
भाजपा-बसपा में समन्वय के लिए मायावती को बहन बनाकर राखी बंधवाने वाले टंडन ने आवश्यकता पड़ने पर मायावती की ज्यादतियों पर लगाम लगाने में भी कोई कोताही नहीं बरती थी। दलित वोटों की राजनीति करने वाली मायावती ने जब अपने इसी वोट बैंक को और मजबूत करने के लिए लखनऊ की सांस्कृतिक विरासत को धूल धूसरित करने के लिये राम विरोधी रहे दक्षिण भारत के व्यक्ति पेरियार की मूर्ति स्थापित करने की घोषणा की थी, तब भी लालजी टंडन ने तत्कालीन तानाशाह के रूप में विख्यात रही मायावती के कदमों को रोक दिया था।
टंडन जी सदैव कहते रहे थे कि लखनऊ का इतिहास सिर्फ नवाबों का इतिहास नही है। इससे पहले के इतिहास को भी जानने और समझने की खासी जरूरत है। वो लखनऊ को भगवान राम के अनुज लक्ष्मण की नगरी के रूप में विख्यात किए जाने के प्रबल पैरोकार रहे हैं। ऐसे लखनऊ के लालजी टंडन के निधन के बाद आज पूरे देश में शोक की लहर है बतौर राज्यपाल लालजी टंडन केे कार्यकाल को भी हमेशा याद किया जाएगा लालजी टंडन एक कुशल राजनीतिज्ञञ नहीं बल्कि एक कुशल प्रशासक भी थे।