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*हमे कोरोना लगे न लगे पर भूँख तो रोज ही लगती है साहब!* *जिंदगी की जंग में हमारे लोहे के सामानों में भी लग रही है जंग*

शहर के पक्का बाग के पास शिवम टाकीज रोड पर पिछले चालीस सालों से सड़क किनारे रह रहे लोहपीटा समाज से जुड़े लोग कभी किसी जमाने मे मुगलों के छक्के छुड़ाने वाले वीर महाराणा प्रताप के ही वंशज है जो आज अपने खानदानी महाराणा जी की कसम खाकर आजीवन सड़क पर रहने की प्रतिज्ञा खाकर कष्ट व गरीबी की जिंदगी जी रहे है

क्षितिज दीक्षित
  • May 30 2021 1:27PM
शहर के पक्का बाग के पास शिवम टाकीज रोड पर पिछले चालीस सालों से सड़क किनारे रह रहे लोहपीटा समाज से जुड़े लोग कभी किसी जमाने मे मुगलों के छक्के छुड़ाने वाले वीर महाराणा प्रताप के ही वंशज है जो आज अपने खानदानी महाराणा जी की कसम खाकर आजीवन सड़क पर रहने की प्रतिज्ञा खाकर कष्ट व गरीबी की जिंदगी जी रहे है । आजकल लॉकडाउन में सड़क किनारे बैठे आते जाते लोगों को आशा उम्मीद भरी नजरों से इस आस से ही देखते है कि, शायद कोई उनसे उनका कोई छोटा मोटा समान खरीद लेगा तो उनके घर मे ठंडा पड़ चुका चूल्हा फिर से जलेगा बच्चे कुछ खाएंगे। लेकिन अब धीरे धीरे बढ़ रहे आंशिक लॉकडाउन से बिक्री पर बुरा असर हुआ है आपको बता दें की यहाँ सड़क किनारे कुल 6 परिवार अपने बच्चों के साथ रह रहे है जिनमे कई महिलाएं व पुरुष भी शामिल है। वहीँ एक झोपड़ी में रहने वाली रज्जो व मौके पर मौजूद पूजा बताती है कि अब दो वक्त की रोटी खाना कमाना मुश्किल हो रहा है साहब कोई कुछ भी खरीदने भी नही आ रहा। पिछले सालों में हमारे परिवार के जब सदस्य बढ़े तो शहर में अलग अलग जगह जाकर बस गये जिनमे कुछ पक्का तालाब की तरफ व कुछ सूत मिल की तरफ व कुछ भरथना चौराहे की तरफ जाकर रहने लगे है लेकिन इससे पहले कभी हम सब एक ही परिवार के सदस्य हुआ करते थे । लोहपीटा समाज की सदस्य रज्जो चौहान बताती है कि, हम सब मिलाकर लगभग 30 लोग यहाँ रहते है पिछली साल लॉकडाउन में कुछ लोग हमे सहायता में खाना या राशन दे भी जाते थे पर इस साल तो कोई नही आया साहब । हमारे छोटे छोटे बच्चे है घर मे खाने को अब कुछ नही बचा है,अब समझ नही आता कि अपने बच्चों को क्या खिलाएं और क्या भविष्य के लिये बचायें । हमारे साथ 2 साल की छोटी बच्ची जानकी 5 साल का आशिक 6 साल का छोटा बादल व 13 साल की नीतू रहती है। देखा जाये तो एक गौरतलब बात यह भी है कि, इसी झोपड़ी में शिक्षा विभाग की बेटी पढ़ाओ योजना के सभी आला अधिकारियों की नजर से अनजान 13 साल की हो चुकी शिक्षा से मरहूम नीतू शहर के किसी भी सरकारी या प्राइवेट स्कूल में पढ़ने ही नही जाती अब ऐसे में उसका व इनकी आने वाली पीढ़ी का भविष्य क्या होगा कोई नही जानता। इस तपती धूप में बाँस के छप्पर की पॉलीथिन से ढंकी हुई छत और गर्म लोहे को पिघलाती कोयले की धौकनी पेट की भूँख और बढ़ा देती है। लेकिन अक्सर बिक्री का इंतज़ार करते करते थककर पानी पीकर ही हमे भूँख को शांत भी करना पड़ता है।

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