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आज ही जन्मा था वो वीर मराठा योद्धा जिससे थर-थर कांपते थे मुगल आक्रांता..

पेशवा बाजीराव प्रथम ने 41 युद्ध लड़े और सब जीते.. दिल्ली की आक्रांताई दरबार से लेकर हैदराबाद का निजाम भी जिससे हार गया वो था बाजीराव प्रथम..

रजत मिश्र, उत्तर प्रदेश, ट्विटर- @rajatkmishra1
  • Aug 18 2020 9:35AM

"हर-हर महादेव" के युद्धघोष के साथ देश में अटक से लेकर कटक तक केसरिया ध्वज लहरा कर "हिन्दू स्वराज" लाने का जो स्वप्न शिवाजी महाराज ने देखा था, उसको मराठा साम्राज्य के चौथे पेशवा बाजीराव प्रथम ने पूरा करने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर किया। आज ही के दिन (18 अगस्त सन 1700) ब्राह्मण परिवार में जन्मे बाजीराव मराठा साम्राज्य के एक महान पेशवा थे। पिता की असामायिक मृत्यु के चलते मात्र बीस वर्ष की उम्र में वो छत्रपति शाहूजी महाराज के पेशवा बना गये। अपनी वीरता, नेतृत्व क्षमता, गुरिल्ला युद्ध की तकनीकी और बेहतरीन युद्ध-कौशल योजना के साथ बाजीराव प्रथम ने जंग के मैदान में 41 युद्ध लड़े और हर लड़ाई को जीतकर हमेशा अजेय विजेता  रहे।

हार गया दिल्ली का मुगल आक्रांता - 

28 मार्च 1737 मराठा इतिहास का सबसे बड़ा दिन माना जाता है। इसी दिन बाजीराव के 500 लड़ाकों ने दिल्ली के मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला की 10 हजार सैनिकों की विशालकाय फ़ौज को बुरी तरह शिकस्त दी और मुगलों की नींव दरका दी। बाजीराव ने यह कमाल तब कर दिखाया जब मुगलों का और खासकर दिल्ली दरबार खौफ सबके सिर चढ़कर बोलता था लेकिन बाजीराव को पता था कि ये खौफ तभी हटेगा जब दिल्ली पर सीधा हमला होगा। 500 घुड़सवारों के साथ 10 दिन की दूरी बिना रुके महज 48 घंटे में पूरी कर डाली। ये आक्रमण इतिहास के सबसे तेज आक्रमणों में से एक था।

हैदराबाद का निजाम भी हारा -

दिल्ली फतह के बाद बाजीराव जब वापस पुणे लौट रहे थे तब भोपाल के पास हैदराबाद के निज़ाम और कई अन्य मुगल शासकों की फ़ौज बाजीराव का रास्ता रोक खड़ी थी लेकिन  1737 बाजीराव की सैन्यशक्ति का चरमोत्कर्ष था। निजाम हारा.. मुगलों की फौज हारी.. निजाम ने अपनी जान बचाने के के लिए बाजीराव से संधि कर ली। मालवा, मराठों को सौंप दिया गया और मुगलों ने हर्जाना भी भरा।

हिन्दू पादशाही के सिद्धांत से देश आजाद कराने का था स्वप्न-

पेशवा बाजीराव बल्लाल भट्ट ने ही पहली बार देश में "हिंदु पदशाही" का सिद्धांत दिया और सभी हिंदुओं को एक कर विदेशी शक्तियों के खिलाफ लड़ने का बीड़ा उठाया। मुगल शासक बाजीराव से इतना डरते थे कि उनसे मिलने तक से भी घबराते थे। वीर महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महराज के बाद बाजीराव पेशवा प्रथम ही ऐसा नाम है जिन्होंने मुगलों से बहुत लंबे समय तक लगातार लोहा लिया था। बाजीराव ने निजाम, मोहम्मद बंगश से लेकर मुगलों, अंग्रेजों और पुर्तगालियों तक को युद्ध के मैदान में कई-कई बार करारी शिकस्त दी। 

देश की कई रियासतें बाजीराव की देन-

देश में  होलकर, सिंधिया, पवार, शिंदे, गायकवाड़ जैसी रियासतें पेशवा बाजीराव  प्रथम की ही देन थीं। ग्वालियर, इंदौर, पूना और बड़ौदा जैसी ताकतवर रियासतें बाजीराव के चलते ही अस्तित्व में आईं। बुंदेलखंड की रियासत भी बाजीराव के दम पर ही जिंदा थी। इस महान मराठा योद्धा की मृत्यु महज 40 वर्ष की उम्र में हो गई, बाजीराव का जाना सिर्फ मराठा शासकों के लिए बल्कि देश की बाकी पीढ़ियों के लिए भी बहुत ही दर्दनाक भविष्य लेकर आया।देश में कोई भी ऐसा योद्धा नहीं हुआ, जो पूरे देश को एक सूत्र में बांधकर आजाद करवा पाता और 200 वर्ष तक भारत गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहा..

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