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पेगासस मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, कहा - इस मुद्दे पर केंद्र की तरफ से कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है

पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मुद्दे पर केंद्र की तरफ से कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है, ऐसे में हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इस मामले की जांच के लिए हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका काम सुप्रीम कोर्ट देखेगा।

Abhinya
  • Oct 27 2021 1:49PM

लंबे समय से चल रहे पेगासस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो चुकी है साथ ही इस मामले का फैसला कोर्ट ने सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला लेते हुए कहा कि पेगासस स्पाइवेयर के मामले की जांच तीन सदस्यीय समिति का गठन करेगी। इस एक्सपर्ट कमेटी का गठन खुद सुप्रीम कोर्ट करी है। भारत के मुख्य न्यायाधीश ने फैसला देते हुए कहा की  आरोपों में तकनीक के दुरूपयोग को लेकर अदालत इस मामले में सभी मूल अधिकारों का संरक्षण करेगी। 

इसके आगे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा कि रोपों में तकनीक के दुरूपयोग को लेकर अदालत इस मामले में सभी मूल अधिकारों का संरक्षण करेगी। जिन लोगों के अधिकार में हनन हुआ है और निजता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है। उसका ध्यान रखते हुए अदालत का मानना है कि तकनीक सुविधा के साथ नुकसान का साधन बन सकती है जिससे निजता का उल्लंघन हो सकता है और अन्य मूल अधिकार प्रभावित हो सकते हैं। ऐसे में जीवन और स्वतंत्रता के मद्देनजर निजता के अधिकार का ध्यान रखने के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को भी ध्यान में रखेगी।

जस्टिस रविंद्रन के नेतृत्व साइबर सिक्योरिटी, फॉरेंसिक एक्सपर्ट, आईटी और अन्य तकनिकी विशेषज्ञों की कमेटी काम करेगी। आपको बता दें इस तकनिकी समिति में तीन सदस्य शामिल होंगे।

आपको इन एक्सपर्ट्स के बारे में बताते चलते है कि :

1. डॉ. नवीन कुमार चौधरी जो पेशे से साइबर सुरक्षा और डिजिटल फोरेंसिक प्रोफेसर है, जो गुजरात के गांधीनगर राष्ट्रीय फोरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय के डीन है। 

2. डॉ प्रबहारन पीजो पेशे से इंजीनियरिंग स्कूल के प्रोफेसर है, जो केरल के अमृतापुरी में स्तिथ अमृता विश्व विद्यापीठम से है। 

3. डॉ अश्विन अनिल गुमस्ते जो कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग के संस्थान के अध्यक्ष एसोसिएट प्रोफेसर है, जो बोमबी की राजधानी महाराष्ट्र से है।  

आपको बता दें चीफ जस्टिस एनवी रमना ने मानना है कि अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता और प्रेस कि स्वतंत्रता लोकतंत्र में अहम है। इसी के साथ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि आरोप लगाने वाली याचिकाओं से अदालत सहमत नही है. सरकार की ओर से कहा गया कि ये याचिकाएं अखबारों में छपी खबरों पर आधारित है और मामले में हस्तक्षेप नहीं करने कि गुजारिश की गई। कोर्ट की तरफ से कई बार जवाब मांगे जाने के बाद भी व्यापक हलफनामा सरकार ने नहीं दाखिल किया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया मामले को ध्यान में रखते हुए अदालत आरोपों कों परखने के लिए कदम उठाएगी। अदालत विशेष समिति का गठन कर रही है ताकि सच सामने आए। इस समिति में पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज आरवी रविंद्रन, आईपीएस आलोक जोशी, संदीप ओबेराय और इसके अलावा तीन तकनीकी सदस्य शामिल होंगे। 

आज पेगासस स्पाइवेयर मामले में CJI ने CJI जॉर्ज ऑरवेल के एक उद्धरण को पढ़कर आदेश सुनाना शुरू किया। उन्होंने कहा, “अगर आप एक रहस्य रखना चाहते हैं, तो आपको इसे अपने आप से भी छिपाना होगा.” सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कुछ याचिकाकर्ता पेगासस के प्रत्यक्ष शिकार हैं। ऐसी तकनीक के उपयोग पर गंभीरता से विचार करना केंद्र का दायित्व है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम सूचना के युग में रहते हैं और हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण है। पर न केवल पत्रकारों के लिए बल्कि सभी नागरिकों के लिए निजता के अधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है। 

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि शुरुआत में जब याचिकाएं दायर की गईं तो अदालत अखबारों की रिपोर्टों के आधार पर दायर याचिकाओं से संतुष्ट नहीं थी। हालांकि, सीधे पीड़ित लोगों द्वारा भी कई याचिकाएं दायर की गईं। पेगासस मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इस मुद्दे पर केंद्र की तरफ से कोई विशेष खंडन नहीं किया गया है, ऐसे में हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इस मामले की जांच के लिए हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका काम सुप्रीम कोर्ट देखेगा। 

 

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