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Subhah Chandra Bose Jayanti : 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा' का नारा देने वाले सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती आज, जनिए इस वीर की वीरता के बारे में

सुभाष चंद्र बोस 24 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस से जुड़ गए थे. राजनीति में कुछ वर्ष सक्रिय रहने के बाद उन्होंने महात्मा गांधी से अलग अपना एक दल बनाया. उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया. सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित होकर कई युवा आजाद हिंद फौज में शामिल हुए और देश की आजादी में अपना योगदान दिया.

Shanti Kumari
  • Jan 23 2022 10:08AM
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज जयंती (Netaji Subhash Chandra Bose Jayanti) हैं.  सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे. सुभाष चंद्र बोस का जन्म (Subhash Chandra Bose Birthday) 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा में कटक में हुआ था. नेताजी ने देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज का गठन किया था. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा..! का नारा बुलंद करने वाले सुभाष चंद्र बोस आज भी लोगों के दिलों में बसते हैं. सुभाष चंद्र बोस 24 साल की उम्र में इंडियन नेशनल कांग्रेस से जुड़ गए थे. राजनीति में कुछ वर्ष सक्रिय रहने के बाद उन्होंने महात्मा गांधी से अलग अपना एक दल बनाया. उन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया. सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित होकर कई युवा आजाद हिंद फौज में शामिल हुए और देश की आजादी में अपना योगदान दिया. नेता जी के विचार आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं.

सुभाष चंद्र बोस के कुछ विचार :-
''हमारा सफर कितना ही भयानक, कष्टदायी और बदतर हो, लेकिन हमें आगे बढ़ते रहना ही है. सफलता का दिन दूर हो सकता हैं, लेकिन उसका आना अनिवार्य ही है.''

''जो अपनी ताकत पर भरोसा करते हैं, वो आगे बढ़ते हैं और उधार की ताकत वाले घायल हो जाते हैं.''

''जिस व्यक्ति के अंदर 'सनक' नहीं होती वो कभी महान नहीं बन सकता. लेकिन उसके अंदर, इसके आलावा भी कुछ और होना चाहिए.''

 ''मेरा अनुभव है कि हमेशा आशा की कोई न कोई किरण आती है, जो हमें जीवन से दूर भटकने नहीं देती.''

 ''एक सैनिक के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को संजोना और उन पर जीना होगा: सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान. जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है. अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन आदर्शों को अपने ह्रदय में समाहित कर लो.''

''ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं. हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए.''

 ''तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा.

 ''याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है.''

वे बड़े और संपन्न हिंदू बंगाली परिवार में पिता जानकी नाथ बोस था और माता प्रभावती की नौवीं संतान थे. बचपन से ही सुभाष चन्द्र बोस पढ़ाई में होशियार होने के साथ देशभक्ति की भावना सराबोर थे. बचपन से ही उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति बहुत तेज थी और इंटर की परीक्षा के पहले वे स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) का पूरा साहित्य और आनंद मठ पढ़ चुके थे. लेकिन उन्होंने इसके बाद भी अपनी अंग्रेजी माध्यम वाली पढ़ाई भी जारी रखी. (तस्वीर: Wikimedia Commons)

पिता का मन रखने के लिए सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने आईसीएस परीक्षा (ICS Exam) इंग्लैंड (England) जाने का फैसला तो कर लिया और अपनी काबिलियत दिखाते हुए परीक्षा पास भी कर ली, लेकिन उनका मन देश सेवा की ओर ही जाता रहा और बहुत ही कठिन आईसीएस पास करने के बाद अंततः उन्होंने अपनों तक का विरोध झेलते हुए भारत के स्वाधीनता आंदोलन में भाग लेने के लिए अपनी आईसीएस की नौकरी छोड़ दी और इंग्लैंड से स्वदेश लौट आए. 

इसके बाद सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर देशबंधु चितरंज दास (Chittaranjan Das) के साथ काम करने लगे जिसकी सलाह उन्होंने गांधी जी (Gandhiji) ने भी दी थी. दास बाबू और सुभाष की स्वराज पार्टी ने कलकत्ता महानगरपालिका का चुनाव जीता और दोनों ने कलकत्ता के लिए खूब काम किया. इसी बीच एक क्रांतिकारी गोपीनाथ साहा को फांसी होने पर सुभाष ने उनका शव अंतिम संस्कार के लिए मांग लिया. इससे अंग्रेजों ने सुभाष बाबू को भी क्रांतिकारी समझ कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.जेल में ही सुभाष को दास बाबू के निधन की खबर मिली. सुभाष अकेले हो गए. जेल में उनकी तबियत बहुत खराब हो गई. उन्हें तपेदिक हो गया. लेकिन बाद उनकी हालत बिगड़ते देख उन्हें रिहा करना पड़ा.

1928 में कांग्रेस (Congress) के कोलकाता अधिवेशन के समय सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर आ गए और उन्होंने नेहरू के साथ काम किया. दोनों उस समय पूर्ण स्वराज के पक्षधर थे जिसके लिए गांधी जी तैयार नहीं थे. 1930 में सुभाष कोलकाता (Kolkata) में फिर गिरफ्तार हुए और छूटे. इसके बाद वे 1932 में फिर गिरफ्तार हुए तो उनकी सेहत फिर खराब हुई. इस बार फिर अंग्रेजों ने उन्हें छोड़ने के लिए देश छोड़ने की शर्त रखी. इस बार डॉक्टर की सलाह पर सुभाष यूरोप जाने को तैयार हो गएई. यूरोप में भी सुभाष ने आजादी के लिए काम जारी रखा. 1934 में पिता की मृत्यु से पहले उन्हें देखने के लिए वे भारत आए लेकिन उससे पहले ही पिता का निधन हो गया और उन्हें कोलकाता पहुंचते ही फिर गिरफ्तार कर उन्हें कुछ दिन के बाद वापस यूरोप भेज दिया गया.

1938 में कांग्रेस (Congress) के हरिपुरा अधिवेशन ने खुद गांधी जी (Gandhiji) ने सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) को अध्ययक्ष पद के लिए चुना, सुभाष के अध्यक्षीय भाषण बहुत ही प्रभावशाली था. उन्होंने योजना आयोग की भी स्थापना की. लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के छिड़ने से पहले ही सुभाष की कार्यशैली गांधी जी को खटकने लगी और द्वितीय विश्व युद्ध को एक मौका देखने वाले सुभाष को 1938 में अध्यक्ष पद चुनाव जीतने के बाद भी धीरे धीरे कांग्रेस में हाशिए जाना पड़ा. फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना के बाद भी वे अकेले ही होते गए.

लेकिन सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) ने यहां हार नहीं मानी और कांग्रेस से अलग हुए बिना ही अपने लिए रास्ता बनाने के फैसला किया. जल्दी ही सुभाष बाबू को गिरफ्तार कर लिया गया और लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जेल में आमरण अनशन कर दिया. इसकी वजह से वे जेल से छूट कर अपने ही घर में नजरबंद हो गए. और घर आने के बाद वे अंग्रेजों को चकमा देकर पहले पेशावर गए फिर काबुल होते हुए रूस और अंततः जर्मनी पहुंच गए. लेकिन हिटलर से मुलाकात के बाद भी सुभाष निराश नहीं हुए और पूर्व में सिंगापुर जाने का फैसला किया. जहां जाकर उन्होंने आजाद हिंद फौज की कमान संभाली.

सही मायनों में एक नेता वह होता है जो सबको साथ लेकर चले और लोग जिसके पीछे और साथ चलें. एक नेता वह होता है कि जो वह कोई बड़ी बात कह दे तो उसकी उस पर उसके समर्थकों की संख्या बढ़े ना कि विरोधियों की. लेकिन क्या भारतीय इतिहास (Indian History) और अपने तत्कालीन समकाल में नेताजी की उपाधि पाने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) के साथ ऐसा था. या केवल चंद समर्थकों के कारण आजाद हिंद फौज (Azad hind Fauj) की अगुआई करने वाले नेता बस संयोग वश ही नेताजी कहलाए या प्रचारित किए जाने लगे, इन प्रश्नों के उत्तर नेताजी की जीवन को समझने के बाद बिना किसी संदेह के मिल जाते हैं. 23 जनवरी को उनकी जयंती पर यह मनन करने का अच्छा अवसर है.

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