इनपुट-श्वेता सिंह
हम और आप सभी लोग बाहर खाने के और खासकर स्ट्रीट फूड के बड़े शौकीन होते हैं और रोज़ ही भारत में करोड़ो लोग कहीं न कहीं स्ट्रीट फूड का स्वाद बड़े चाव से लेते हैं ।
मगर क्या आप जानते हैं कि ये लज़ीज़ व्यंजनों का स्वाद कितना खतरनाक साबित हो सकता है ? शायद नहीं... लगभग 100 में से हर 90 लोग इस बात से पूरी तरह से अनभिज्ञ और अंजान है कि जिन फ़ूड ट्रकों के नज़दीक वो खडे होकर बड़े चाव से लज़ीज़ व्यंजनों का मज़ा ले रहे है यदि कहीं वो ही बम बनकर फट जाए तो उसका अंजाम कितना खतरनाक हो सकता है
आज से कुछ साल पहले ठेले खोमचों और कुछ अन्य साधनों के माध्यम से ही स्ट्रीट फूड हमें बाजार में उपलब्ध होता था , मगर होटलों की भीड़ और उसके सीमित दायरों से हटकर कुछ लोगों ने पश्चिमी देशों की तरह से ही भारत में भी वाहनों पर चलते फिरते रेस्टॉरेंट बनाकर सड़कों पर पार्कों के बाहर , बाजारों के समीप लोगों को रेस्टॉरेंट का स्वाद देना शुरू कर दिया ।
इसे बेरोजगारी के कारण , महँगी दुकानों व रेस्टॉरेंट के भारी खर्चे जे कारण या सीमित जगहों के कारण या किसी भी अन्य कारणों से हज़ारों लोगों ने अपनी आजीविका का साधन बना लिया इस बात से बिल्कुल अंजान और बेखबर कि ये कितना ख़तरनाक हो सकता है अथवा ये मोटर व्हीकल नियम के अंडर सेक्शन 52 का उल्लंघन है व दंडनीय अपराध है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी वाहन के मूल स्वरूप में किसी भी प्रकार का परिवर्तन अपनी मर्ज़ी से नहीं कर सकता है ।
दरअसल सड़क किनारे खड़े फूड ट्रक चलते फिरते वाहन बम से कम नहीं है। अक्सर शाम को गुलज़ार रहने वाले इन वाहन रेस्टोरेंट पर सिलिंडर रखे रहते हैं जो जरा सी लापरवाही से एक बड़े हादसे को अंज़ाम दे सकते हैं। यहां तरह तरह के व्यंजनों को लुत्फ उठाने के लिए आए हुए लोग भी किसी खतरे से बेखबर होकर इस वाहन के आसपास ही खड़े रहते हैं और न तो ये सुरक्षा उपकरणों से सुसज्जित होते हैं और न ही ये पेशेवर होते हैं। ऐसे में यदि कहीं किसी गाड़ी के उपयोग होने वाले सिलेंडर में कहीं आग पकड़ लेती है और गाड़ी में भरा सैकड़ो लीटर डीज़ल पेट्रोल अथवा गैस कितना बड़ा हादसा पैदा कर सकते हैं इसका अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल है ।
राजधानी लखनऊ में ऐसे चलते फिरते वाहन बम हर जगह दिखना अब आम हैं । चाहे कोई महत्वपुर्ण सरकारी इमारत हो अथवा निज़ी कार्यालय , बहुमंजिला इमारत हो या व्यस्त बाजार गैर कानूनी फ़ूड ट्रक हर तरफ देखे जा सकते हैं । यहाँ सबसे ज़्यादा भीड़ भी परिवारों संग निकले लोगों , युवाओं और बच्चों की ही रहती है ऐसे में कोई भी छोटा हादसा भी जान माल की बड़ी हानि कर सकता है ।
आश्चर्य की बात है कि इतना कुछ राजधानी लखनऊ में तब हो रहा है जबकि बड़े भारी प्रशासनिक अमले से राजधानी सुसज्जित है । लोगों को सीट बेल्ट , हेलमेट और बाहरी नम्बर की गाड़ी देखकर चालान काटने वाली राजधानी की ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ का भारी अमला भी इसे लेकर पूरी तरह से आंख कान बन्द करके बैठा हुआ है और किसी किस्म की कोई भी कार्यवाही नहीं करता । सुदर्शन चैनल के माध्यम से हमने सरकार का ध्यान इस तरफ आकर्षित करने का प्रयास किया है देखना ये है कि सुदर्शन पर खबर चलने के बाद क्या आरटीओ और ट्रैफिक पुलिस की कुम्भकर्णी नींद इसपर खुलती है या चलते फिरते वाहन बमों को किसी बड़ी दुर्घटना के लिए यहाँ वहाँ घूमने की इजाज़त वर्तमान जैसी ही जारी रहेगी ।