उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनाव ने सपा और बसपा के संबंधों की कड़वाहट को सतह पर लाकर रख दिया है। बसपा प्रत्यशी रामजी गौतम के प्रस्तावक कई विधायकों ने पाला बदलकर बसपा में विद्रोह की चिंगारी को हवा देने का काम किया है। ये सब हुआ है समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश के इशारे पर। अब मायावती समाजवादी पार्टी और अखिलेश पर आग बबूला हैं। अखिलेश के खिलाफ अब आग बबूला मायावती अंगार उगल रही हैं।
पहले भी एक हो चुकी हैं दोनों पार्टियां
ऐसा नहीं है कि सपा-बसपा में यह स्थिति पहली बार बनी है। मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी बनाई थी। इसके एक साल बाद हुए चुनावों में उन्होंने बसपा के साथ गठबंधन कर लिया था। तब काशीराम बसपा प्रमुख थे। दोनों दलों में सीटों का बंटवारा हुआ और सत्ता भी मिल गई।
कुल 425 सीटों में से सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली। 177 सीटें जीतने के बाद भी भाजपा सरकार नहीं बना सकी थी। इसके बाद नारा भी दिया गया था कि 'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम', क्योंकि भाजपा ने राममंदिर के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था।
ज्यादा दिन नहीं चली दोस्ती
इसके बाद सपा-बसपा की सांझा सरकार बनी और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री नियुक्त हुए। हालांकि यह दोस्ती ज्यादा दिन तक नहीं टिक सकी। बसपा के समर्थन वापस लेते ही सरकार अल्पमत में आ गई।
इसके बाद एक और कांड ऐसा हुआ कि दोनों दलों में दोस्ती की रही-सही उम्मीद भी खत्म हो गई। यह था गेस्टहाउस कांड। 2 जून 1995 को मायावती लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस के कमरा नंबर एक में अपने विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं।
तभी दोपहर करीब तीन बजे कथित समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ ने अचानक गेस्ट हाउस पर हमला बोल दिया। मायावती को गंदी-गंदी गालियां दी जा रही थीं। कई घंटों तक मायावती को कमरे में बंद रहना पड़ा।
यह बात एकदम सच है कि सपा-बसपा गठबंधन का आधार हमेशा भाजपा का डर ही रहा है। बीजेपी के डर में ये दोनों पार्टियां एक हुई हैं। इस एकता के बाद ये जब भी अलग हुई हैं, इनके बीच की कड़वाहट में हमेशा बढ़ोत्तरी हुई है। इस बार भी ऐसा होने के प्रबल आसार हैं। जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में दोनों पार्टियों के बीच जंग और तेज होगी। जिसका सीधा फायदा भाजपा को होगा।