आज मजदूर दिवस है। आज ही के दिन गरीब तबके थे उन श्रमिकों को देश और दुनिया अपनी तरफ से याद भी कर रही है और सम्मान भी दे रही, जिन्होंने अपने परिश्रम के दम पर इस या किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाए रखा। किसी भी देश के उद्योग जगत की रीढ़ उस देश के श्रमिक अर्थात मजदूर ही माने जाते हैं. उद्योग जगत ही किसी भी देश का आर्थिक आधार माना जाता है और उद्योग धंधे किसी देश की अर्थव्यवस्था की धमनिया कही जाती है जिससे ना सिर्फ वह विकासशील देश विकसित देशों की दौड़ में शामिल होता है बल्कि अनगिनत लोगोंं को बेरोजगारी नाम के दंश से मुक्त् भी करता है..
देश की अर्थव्यवस्था की रीड के आधार स्तंभ मजदूरों का दिवस आज हर कहीं पूरे शिद्दत से मनाया जा रहा है। लेकिन सुदर्शन न्यूज़ आज श्रद्धांजलि समर्पित कर रहा है उन निरीह और निर्दोष मजदूरों को जिन्हें कश्मीर में उनके धार्मिक आधार को आगे रखकर बेरहमी से इस्लामिक आतंकियों ने अक्टूबर 2017 में कत्ल कर दिया था। यह इतिहास के विरले उदाहरण ही थे जिसमें श्रमिकों का भी धर्म देखा गया था जबकि वह सिर्फ रोटी को अपना धर्म मानकर इंसानियत पर विश्वास करके कश्मीर अपना श्रमदान करने गए थे।।
पहले कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को वहां से जाने के लिए मजबूर किया गया, उनके घर तबाह कर दिए गए। अपना घर होते हुए भी बेसहारा की ज़िन्दगी जीने पर मजबूर कर दिए गए। जिसके बाद कश्मीर मुस्लिम बहुल बन गया और जब वहां कुछ गैरमुस्लिम रोजी रोटी कमाने के लिए कार्य करने के लिए गए थे तो उनका भी कत्ल कर दिया गया। ये घटना सवाल उठा रही थी कि क्या कश्मीर में मुसलमानो के अलावा और कोई मज़हब के व्यक्ति का होना आतंकियों को बर्दाश नहीं किया जाएगा ? इन आतंकियों की बंदूकें राज्य के बाहर से आने वाले प्रवासी श्रमिकों की ओर मुड़ने लगी थी.. यद्यपि इस दर्द से भारत की वर्तमान सरकार में सदा के लिए मुक्ति दिलाई और धारा 370 को हटाकर साफ संदेश दिया कि अब सिर्फ मजदूर ही नहीं कश्मीर हर कोई सुरक्षित है और रहेगा और मजदूरों के साथ किया गया ऐसा कृत्य दोबारा नहीं दोहराया जाएगा।
यही नहीं उस समय कश्मीर के उसी इलाके में बाहरी श्रमिकों को कश्मीर छोड़ने के लिए आतंकियों द्वारा जारी धमकी भरे पोस्टर भी मिले थे। अक्टूबर 2017 के उस रविवार को अनंतनाग के अरवनी क्षेत्र में आतंकियों ने एक श्रमिक को गोली मार दी थी इससे बाकी श्रमिकों में डर बैठ गया था। घाटी में रोजी-रोटी कमाने के लिए गए मजदूर तब अपना बोरिया-बिस्तर समेटने लगे थे कुछ श्रमिकों ने जहां श्रीनगर जैसे मुख्य कस्बों का रुख कर लिया था तो वहीं कई श्रमिक अपने घरों को लौटने की तैयारियां करने लगे थे. बताया गया था कि जिस श्रमिक को गोली मारी गई थी वह वर्षों से वहीं पर काम रहा था।
मजदूर की हत्या के अगले दिन अरवनी के बाछी इलाके में सोमवार को कई श्रमिक अपने घरों की तैयारियां करते दिखे थे। यह डर इतना बढ़ गया था कि अरवनी में रविवार को जो हुआ था वो उनके साथ भी हो सकता था. फिलहाल बाहरी राज्य के श्रमिक कश्मीर में नहीं ठहरना चाहते थे। यह डर लोगों में इतना बढ़ गया था कि कुछ श्रमिकों ने अपने बयान के द्वारा कहा कि उन्हें हालत ठीक ना लगते हुए वह जिला छोड़ना होगा। इससे वाले समय में घेरा बढ़ता चला जायेगा और लोग इसी तरह डर के साये से बाहर आने के लिए कश्मीर को छोड़ दूसरे स्थानों में जाते रहेंगे ।
इस मामले में सबसे खास बात यह है कि उस समय धर्मनिरपेक्षता और गरीबी का मुकाबला जैसा हो गया था और मजदूर इस बात को लेकर आश्वस्त था कि भारत के तमाम तथाकथित मजदूरों की चिंता करने वाले नेता इस्लामिक आतंकियों के किए गए इस कृत्य पर मुखर होकर बोलेंगे और आखिरकार मजदूरों की आवाज को बल मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। उस समय मजदूरों की चिंता के बजाय कायम रखे गए थे भारत की स्पेशल सेकुलर सिद्धांत को और आज मजदूर दिवस पर बढ़ चढ़कर बयान दे रहे तमाम नेताओं ने उन आतंकियों का एक बार भी मुखर विरोध नहीं किया था प। टि्वटर के ट्वीट में भी सांप्रदायिकता देखने वाले भारत के बड़े-बड़े धर्मनिरपेक्ष नेता वामपंथी वर्ग मजदूरों में भी मजहब खोज कर नरसंहार की इस घटना पर चुप थे। यदि किसी ने मुखर आवाज उठाई थी तो वह सुदर्शन न्यूज़ जो आगे भी सत्य को सामने लाते हुए न्याय की लड़ाई को जारी रखेगा। आज मजदूर दिवस पर कश्मीर में बलिदान हुए उन मजदूरों को सुदर्शन परिवार का शत शत नमन वंदन।