रांच: झारखण्ड का सियासत गरमाने लगा है, राज्यसभा चुनाव को ले कर सियासी पार्टियों में घमासान मचने की पूरी सम्भावना दिखने लगी है, दरअसल झारखंड में 2 सीटों पर होने वाले राज्यसभा चुनाव अपने अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचा है। कोरोना वायरस महामारी के बीच देशभर में लागू लॉकडाउन के खुलने के साथ ही चुनाव की तारीख का एलान कर दिया गया है। 19 जून को इसके लिए वोटिंग होगी। यूपीए की ओर से चुनाव मैदान में गुरुजी शिबू सोरेन के अलावा शहजादा अनवर हैं। जबकि भाजपा की ओर से प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश रण में उतरे हैं।
राज्यसभा चुनाव के लिए झारखंड कोटे से खाली हो रही दो सीटें की जीत का गणित तनिक उलझा हुआ जरूर दिखता है, बावजूद इसके यह माना जा रहा है कि भाजपा इस उलझन से आसानी से निपट लेगी। वजह, आजसू का साथ बताया जा रहा है। जाहिर है झारखंड में चुनाव से पहले ही एक सीट शिबू सोरेन के रूप में यूपीए तो दूसरी दीपक प्रकाश के रूप में एनडीए के खेमे में जाती दिखने लगी है। स्पष्ट है कांग्रेस मझधार में फंस गई है।
बता दें कि झारखंड में राज्यसभा चुनाव के लिए मौजूदा 79 विधायक ही अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और जीत के लिए एक प्रत्याशी को 27 विधायकों का समर्थन चाहिए। यदि पूरी 81 की विधानसभा होती तो जीत के लिए 28 विधायकों के समर्थन की आवश्यकता होती। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के दुमका सीट छोडऩे के बाद भी झामुमो विधायकों की संख्या 29 है।
जाहिर है झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन को उच्च सदन पहुंंचने से कोई नहीं रोक सकता। वहीं, भाजपा की बात करें तो बाबूलाल मरांडी के साथ आने के बाद उनके विधायकों की संख्या बढ़कर 26 हो गई है। आजसू के दो विधायकों का सहयोग मिलना भी तय है। भाजपा प्रत्याशी दीपक प्रकाश के नामांकन पत्र में आजसू विधायक लंबोदर महतो ने बतौर प्रस्तावक हस्ताक्षर भी किए थे।
इसके अलावा निर्दलीय अमित यादव ने भी पूर्व में भाजपा प्रत्याशी के नामांकन पत्र पर हस्ताक्षर कर अपनी स्थिति साफ कर दी थी। इन्हें साथ ले लें तो भाजपा को 29 विधायकों का समर्थन स्पष्ट दिखाई दे रहा है। अब कांग्रेस की मौजूदा स्थिति की बात करते हैं। बेरमो विधायक राजेंद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के खुद के विधायकों की संख्या 15 हो गई है।
झाविमो छोड़कर कांग्रेस में आए प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को भी इस गणित में शामिल कर लें तो इनकी संख्या 17 होती है, राजद के साथ आने से आंकड़ा 18 पहुंच जाता है। फिर भी मंजिल नौ विधायक दूर है। ऐसे में एनसीपी और माले का सहयोग भी कांग्रेस की नैया पार नहीं लगा सकता।