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21 जून: पुण्यतिथि संस्थापक तथा प्रथम सरसंघचालक परमपूज्य डॉ. हेडगेवार जी, जिनका रोपा पौधा “संघ” आज वटवृक्ष बन कर छाँव दे रहा राष्ट्रभक्तों को

वंदनीय हेडगेवार जी आज ही सिधार गए थे देवलोक.

Rahul Pandey
  • Jun 21 2020 8:05AM
संगठन केवल व्याख्यान से उत्पन्न नहीं होता बल्कि उसमें सजीव अंतःकरणों को एक साँचे में ढालना होता है. एक ही ध्येय के लिए, एक ही मार्ग पर चलनेवाले लाखों तरुणों को एक ही सूत्र में बाँधना होता है. संघ के स्वयंसेवकों का बंधुत्व तथा ऐक्य-भाव अन्य स्थानों में कदाचित् ही मिलेगा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक परमपूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार अपने सामने बचपन से ही एक उच्चतम ध्येय रखकर काम करते रहे. अठारह वर्ष लगातार विचार तथा तपश्चर्या करने के पश्चात् उन्होंने एक विचार-प्रणाली निश्चित कर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की.

हिंदू राष्ट्र को वैभव के शिखर पर पहुँचानेवाले इस महान् कार्य को उन्होंने केवल पाँच स्वयंसेवकों के साथ आरंभ किया, आज इनकी संख्या करोड़ों में है. संघ-कार्य का जैसे-जैसे विस्तारित हुआ, समाज में देशभक्ति, एकता की भावना, आत्मविश्वास और राष्ट्रीय गौरवबोध जैसे गुणों की वृद्धि हुई, यद्यपि अभी वे पर्याप्त मात्रा में आ गए नहीं कहा जा सकता, उनके लिए अभी और अधिक परिश्रम करना होगा. फिर भी ये तो ऐसे गुण हैं जिनसे संघ-कार्य का सीधा संबंध है, किंतु रोचक बात यह है कि संघ के परोक्ष प्रभाव से समाज में नैतिक परिवर्तन आता भी स्पष्ट देखा जा सकता है.

राष्ट्र-जीवन के विविध क्षेत्रों में स्वयंसेवकों ने जो कार्य प्रारंभ किए हैं उन्होंने तो उन-उन क्षेत्रों में न्यूनाधिक ही सही, विचार-क्रांति ला दी है. आज का दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार को समर्पित है जिन्होंने अपने अत्यल्प संसाधनों से ऐसे गुणश्रेष्ठ दीर्घकाय संघ का गठन कर दिया, जो रहती मानवता तक इसका संबल और पथ-दर्शक रहेगा. आपको बता दें कि आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक और प्रथम सर संघचालक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार की पुण्यतिथि है. परमपूज्य डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर के एक गरीब ब्राह्मण परिवार के बलिराम पन्त हेडगेवार के घर हुआ था. इनकी माता का नाम रेवतीबाई था. उनके दो बड़े भाई भी थे, जिनका नाम महादेव और सीताराम था.

पिता बलिराम वेद-शास्त्र के विद्वान थे एवं वैदिक कर्मकाण्ड (पण्डिताई) से परिवार का भरण-पोषण चलाते थे. केशव के सबसे बड़े भाई महादेव क्रान्तिकारी विचारों के थे. जिसका परिणाम यह हुआ कि वे डॉक्टरी पढ़ने के लिये कलकत्ता गये और वहाँ से उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से प्रथम श्रेणी में डॉक्टरी की परीक्षा भी उत्तीर्ण की परन्तु घर वालों की इच्छा के विरुद्ध देश-सेवा के लिए नौकरी का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया. डॉक्टरी करते करते ही उनकी तीव्र नेतृत्व प्रतिभा को भांप कर उन्हें हिन्दू महासभा बंगाल प्रदेश का उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया. वह बचपन से ही क्रांतिकारी प्रवृति के थे और उन्हें भारत भूमि पर जबरन और कुछ गद्दारों के दम पर कब्ज़ा किये बैठे अंग्रेज शासको से घृणा थी.

अभी वंदनीय डा. केशव राव बलीराम हेडगेवार स्कूल में ही पढ़ते थे कि अंग्रेज इंस्पेक्टर के स्कूल में निरिक्षण के लिए आने पर केशव राव ने अपने कुछ सहपाठियों के साथ उनका “वन्दे मातरम” जयघोष से स्वागत किया जिस पर वह बिफर गया और उसके आदेश पर केशव राव को स्कूल से निकाल दिया गया. तब उन्होंने मैट्रिक तक की अपनी पढाई पूना के नेशनल स्कूल में पूरी की. ये शब्द उनके ही हैं कि – ‘हिंदू संस्कृति, हिंदुस्तान की धड़कन है. इसलिए ये साफ़ है कि अगर हिंदुस्तान की सुरक्षा करनी है तो पहले हमें हिंदू संस्कृति को संवारना होगा’ इसी में जोड़ते हुए बोले गए कि ‘ये याद रखा जाना ज़रूरी है कि ताक़त संगठन के ज़रिए आती है. इसलिए ये हर हिंदू का कर्तव्य है कि वो हिंदू समाज को मज़बूत बनाने के लिए हरसंभव कोशिश करे.’

डॉ० हेडगेवार ने यह स्पष्ट किया कि “हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है.” हिन्दुओं ने ही अपने पुरुषार्थ के बल पर इस देश को ‘सोने की चिड़िया’ बनाया. जाति-पांति एवं छुआछूत के भेद का शिकार होकर असंगठित दुर्बल होने के कारण हिन्दू समाज को मुट्‌ठी भर लुटेरों के हाथों हार खानी पड़ी. हमारी मां-बहिनों को घोर अपमान सहना पड़ा और हमें गुलामी का अभिशाप. उन्होंने निर्भीक स्वर में हिन्दू राष्ट्र की घोषणा की. आज ही के दिन अर्थात 21 जून 1940 को शरीर छोड़ने से पूर्व श्री गुरुजी को सरसंघ चालक का दायित्व देकर देश और समाज के प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति की.

डॉ. साहब कहते थे कि राष्ट्र को सुदृढ़ बनाने के साथ-साथ हिन्दू समाज को संगठित, अनुशासित एवं शक्तिशाली बनाकर खड़े करना अत्यन्त आवश्यक है. हिन्दू समाज के स्वार्थी जीवन, छुआछूत, ऊंच-नीच की भावना, परस्पर सहयोग की भावना की कमी, स्थानीय नेताओं के संकुचित दृष्टिकोण को वे एक भयंकर बीमारी मानते थे. इन सब बुराइयों से दूर होकर देश के प्रत्येक व्यक्ति को चरित्र निर्माण और देश सेवा के लिए संगठित करना ही संघ-शाखा का उद्देश्य है. हिन्दुत्व के साथ-साथ देशाभिमान का स्वप्न लेकर आज देश-भर में इसकी शाखाएं लगती हैं, जिसमें सेवाव्रती लाखों स्वयंसेवक संगठन के कार्य में जुटे हैं. आज उन पावन व्यक्तित्व वंदनीय हेडगेवार जी की पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन करते हुए उनके पावन जीवन का दर्शन जनमानस को करवाते रहने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

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