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अहिंसा के अंधाधुंध प्रचार पर बलिदानी क्रांतिवीर सुखदेव ने फाँसी से पहले कांग्रेस को लिखा था एक पत्र.. लेकिन उसे छुपा लिया गया

जानिए था था वीर बलिदानी के उस पत्र में ?

Sudarshan News
  • May 15 2020 10:34AM

यदि आप समझते हैं कि देशवासियों से सिर्फ ऐतिहासिक तथ्य ही छिपाए गए तो आप ही संभवतया भूल होगी। इस देश से वीरता और बलिदान की कई जीवंत निशानियां को मिटाया और छिपाया गया तो पूरा प्रयास किया गया यह बात साबित हो जाए कि देश को आजादी बिना खडग और बिना ढाल मिली थी लेकिन धन्य है वह पुण्य आत्माएं जिन्होंने इस विपरीत काल में भी सत्य को बचाए रखा और आज वही किसी न किसी रूप में लोगों के सामने आ ही जाता है।

सुदर्शन न्यूज़ ने इससे पहले भी ऑपरेशन इतिहास के माध्यम से सामने लाए हैं कई ऐसे तथ्य जिन्हें झूठ के रंग में इतना रंग दिया गया था कई लोग उसे सच मानने लगे थे। लेकिन तथ्यों तर्कों और प्रमाणों के साथ जब सुदर्शन न्यूज़ ने उसकी सच्चाई बताइए यह मानना पड़ा कि उन्हें गलत इतिहास पढ़ाया गया। उदाहरण के लिए टीपू सुल्तान का गुणगान हर किसी के मुंह से सुना जाता था लेकिन सुरेश चौहान जी ने बिंदास बोल के माध्यम से पूरी दुनिया के आगे यह साबित कर दिया था कि टीपू सुल्तान एक निहायत ही क्रूर शासक था जिसे हिंदुओं से अथाह नफरत थी। सच बताने की उसी कड़ी में आज जानिए सुखदेव जी का कांग्रेस को संदेश जिसे उन्होंने अपनी फांसी से पहले एक पत्र के माध्यम से उनकी अहिंसा नीति पर कटाक्ष करते हुए लिखा था।

किशोरावस्था से ही सुखदेव ब्रिटिशो द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अत्याचारों से चिर-परिचित थे|उस समय ब्रिटिश भारतीय लोगो के साथ गुलाम की तरह व्यवहार करते थे और भारतीयों लोगो को घृणा की नजरो से देखते थे|सन 1919 में पंजाब के अनेक शहरों में मार्शल ला जारी था। उस समय आपकी आयु बारह वर्ष की थी और सांतवी श्रेणी में पढ़ते थे। आपके चाचा इसी मार्शल ला में गिरफ्तार कर लिए गये। बालक सुखदेव पर इस घटना का विशेष प्रभाव पड़ा। आपके चाचा अचिन्तराम का कहना है कि जब मैं जेल में था, तब सुखदेव मुझ से मिलने आता था। तब पूछता था की मैं तो किसी को भी नमस्ते तक नहीं करूँगा।

इन्ही कारणों से सुखदेव जी क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हुए और भारत को ब्रिटिश राज से मुक्त कराने की कोशिश करते रहे और बाद में सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब के कुछ क्रांतिकारी संगठनो में शामिल हुए|वे एक देशप्रेमी क्रांतिकारी और नेता थे जिन्होंने लाहौर में नेशनल कॉलेज के विद्यार्थियों को पढाया भी था और समृद्ध भारत के इतिहास के बारे में बताकर विद्यार्थियों को वे हमेशा प्रेरित करते रहते थे|इसके बाद सुखदेव ने दुसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” की स्थापना भारत में की|इस संस्था ने बहुत से क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लिया था और आज़ादी के लिये संघर्ष भी किया था|..

सुखदेव ने अन्य क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर लाहौर में नौजवान भारत सभा शुरू की। यह एक ऐसा संगठन था जो युवकों को स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित करता था। वह खुद भी क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उनका नाम 1928 की उस घटना के लिए प्रमुखता से जाना जाता है जब क्रांतिकारियों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए गोरी हुकूमत के कारिन्दे पुलिस उपाधीक्षक जेपी सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया था। सुखदेव को गांधी की अहिंसक नीति पर जरा भी भरोसा नहीं था। उन्होंने  गांधी को जेल से एक पत्र लिखा जो आज भी एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। सुखदेव ने कांग्रेस पर कटाक्ष करते हुए लिखा था “मात्र भावुकता के आधार पर की गई अपीलों का क्रांतिकारी संघर्षों में कोई अधिक महत्व नहीं होता और न ही हो सकता है।” यह एक ऐसा संदेश था जो यदि उस समय प्रचारित कर दिया जाता तो देश के अधिकांश युवा अंग्रेजों के विरुद्ध हथियार उठा लेते लेकिन इसे तब से लेकर अब तक जानबूझकर छुपाया गया। इस पत्र में सुखदेव जी ने अन्य भी कई बातें लिखें जो देश से प्यार करने वाले युवाओं को एक बड़ा और कड़ा संदेश दे सकती थी लेकिन अभी भी इस पत्र के बहुत छोटे से ही अंश से दुनिया परिचित है। उम्मीद है कि यह पत्र सरकार द्वारा दुनिया को स्वयं पर दिखाया और बताया जाएगा जिससे भारत का समाज समझ सके कि आजादी कैसे आई।

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