वह मांग है जिसके लिए राष्ट्रवादी एक लंबे समय से आवाज उठा रहे हैं। इसके तमाम हानिकारक प्रभावों को एक एक करके कई बार सामने रखा जा चुका है लेकिन उसके बावजूद भी इस पर अब तक पूर्ण प्रतिबंध ना लगना निश्चित रूप से देश के युवाओं के लिए चिंता का विषय है। आखिरकार इस चिंता का समाधान करने के लिए अब युवा खुद ही सामने आ गए हैं और उन्होंने सोशल मीडिया पर टिक टॉक को बैन करने के लिए एक बड़ी व्यापक मुहिम छेड़ दी है। इस मुहिम का आम जनमानस द्वारा भारी समर्थन किया जा रहा है और चलाई गई ऑनलाइन पिटिशन को कई लोगों द्वारा भरा जा रहा है.
पेटिशन का विवरण - https://www.change.org/tik-tok-ban
टिक-टॉक' एक सोशल मीडिया ऐप्लिकेशन है जिसके जरिए स्मार्टफोन यूजर छोटे-छोटे वीडियो (15 सेकेंड तक के) बना और शेयर कर सकते हैं। 'बाइट डान्स' इसके स्वामित्व वाली कंपनी है जिसने चीन में सितंबर, 2016 में 'टिक-टॉक' लॉन्च किया था। वैसे तो टिक टॉक का विरोध भारत में पहले से ही हो रहा है इसके कई कारण है। भारत और पूरी दुनिया इस कोरोना वायरस का दंश भुगतने को मजबूर है जिसे अब ‘चाइनीज़ वायरस’ कहा जा रहा है। भारत में चीन के खिलाफ भावनाएं उभर रही हैं और इसके साथ ही भारत सरकार से ‘टिक टॉक’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी उठने लगी है।
प्राइवेसी के लिहाज़ से टिक-टॉक ख़तरों से खाली नहीं है। क्योंकि इसमें सिर्फ़ दो प्राइवेसी सेटिंग की जा सकती है- ' पब्लिक ' और ' ओनली '। आप वीडियो देखने वालों में कोई फ़िल्टर नहीं लगा सकते. या तो आपके वीडियो सिर्फ़ आप देख सकेंगे या फिर हर वो शख़्स जिसके पास इंटरनेट है। अगर कोई यूज़र अपना टिक-टॉक अकाउंट डिलीट करना चाहता है तो वो ख़ुद से ऐसा नहीं कर सकता. इसके लिए उसे टिक-टॉक से रिक्वेस्ट करनी पड़ती है।
चूंकि ये पूरी तरह सार्वजनिक है इसलिए कोई भी किसी को भी फ़ॉलो कर सकता है , मेसेज कर सकता है. ऐसे में कोई आपराधिक या असामाजिक प्रवृत्ति के लोग छोटी उम्र के बच्चे या किशोरों को आसानी से गुमराह कर सकते हैं । कई टिक-टॉक अकाउंट अडल्ट कॉन्टेंट से भरे पड़े हैं और चूंकि इनमें कोई फ़िल्टर नहीं है , हर टिक-टॉक यूज़र इन्हें देख सकता है , यहां तक कि बच्चे भी।
' साइबर बुलिंग ' भी बड़ी समस्या है. साइबर बुलिंग यानी इंटरनेट पर लोगों का मज़ाक उड़ाना , उन्हें नीचा दिखाना , बुरा-भला कहना और ट्रोल करना टिकटोक से सरल हो गया है. हम जब कोई ऐप डाउनलोड करते हैं तो प्राइवेसी की शर्तों पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते. बस ' यस ' और ' अलाउ ' पर टिक करते चले जाते हैं. हम अपनी फ़ोटो गैलरी , लोकेशन और कॉन्टैक्ट नंबर...इन सबका एक्सेस दे देते हैं. इसके बाद हमारा डेटा कहां जा रहा , इसका क्या इस्तेमाल हो रहा है , हमें कुछ पता नहीं चलता."
ज़्यादातर ऐप्स ' आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस ' की मदद से काम करते हैं. ऐसे में अगर आप इन्हें एक बार भी इस्तेमाल करते हैं तो ये आपसे जुड़ी कई जानकारियां अपने पास हमेशा के लिए जुटा लेते हैं इसलिए इन्हें लेकर ज़्यादा सतर्क होने की ज़रूरत है. जुलाई , 2018 में इंडोनेशिया ने टिक-टॉक पर बैन लगा दिया था क्योंकि किशोरों की एक बड़ी संख्या इसका इस्तेमाल पोर्नोग्रैफ़िक सामग्री अपलोड और शेयर करने के लिए कर रही थी. बाद में कुछ बदलावों और शर्तों के बाद इसे दोबारा लाया गया."
भारत में फ़ेक न्यूज़ जिस तेज़ी से फल-फूल रहा है उसे देखते हुए भी टिक-टॉक जैसे ऐप्लीकेशन्स पर लगाम लगाने की ज़रूरत है। टिकटोक से हमारा महत्वपूर्ण डेटा चीन जा रहा है जिसे साइबर अपराध का खतरा बढ़ गया है। पिछले वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आर्थिक शाखा स्वदेशी जागरण मंच ने भी चीनी सोशल मीडिया ऐप टिकटोक पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। उत्तर प्रदेश सरकार में भाजपा के सूचना प्रौद्योगिकी एवं प्रचार रणनीतिकार श्विशाल त्रिवेदी ने भी टिक टॉक बैन की मांग की है।