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3 अगस्त: निर्वाण दिवस, स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती, जिन्होंने केरल से निकल कर सम्पूर्ण विश्व में फहराई धर्मध्वजा

जीवनी एक ऐसे महापुरुष की जिनका जीवन समर्पित रहा सत्य सनातन के प्रचार प्रसार में.

Abhay Pratap
  • Aug 3 2021 9:08AM
हिंदुत्व की पताका पूरी दुनिया में फैलाने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती का जन्म- 8 मई, 1916 को एर्नाकुलम केरल में हुआ था . . स्वामी जी भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक तथा वेदान्त दर्शन के विश्व प्रसिद्ध विद्वान थे. इनका मूल नाम ‘बालकृष्ण मेनन’ था. इन्होंने सारे भारत में भ्रमण करते हुए देखा कि देश में धर्मसंबंधी अनेक भ्रांतियां फैली हैं. उनका निवारण कर शुद्ध धर्म की स्थापना करने के लिए स्वामी चिन्मयानंद जी ने ‘गीता ज्ञान-यज्ञ’ प्रारम्भ किया और 1953 में ‘चिन्मय मिशन’ की स्थापना की. स्वामी चिन्मयानंद के प्रवचन बड़े ही तर्कसंगत और प्रेरणादायी होते थे. उनको सुनने के लिए काफ़ी भीड़ एकत्र हो जाती थी.

हिंदुत्व की पताका पूरी दुनिया में फैलाने वाले स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती का जन्म- 8 मई, 1916 को एर्नाकुलम केरल में हुआ था .. . स्वामी जी भारत के प्रसिद्ध आध्यात्मिक चिंतक तथा वेदान्त दर्शन के विश्व प्रसिद्ध विद्वान थे. इनका मूल नाम ‘बालकृष्ण मेनन’ था. इन्होंने सारे भारत में भ्रमण करते हुए देखा कि देश में धर्मसंबंधी अनेक भ्रांतियां फैली हैं. उनका निवारण कर शुद्ध धर्म की स्थापना करने के लिए स्वामी चिन्मयानंद जी ने ‘गीता ज्ञान-यज्ञ’ प्रारम्भ किया और 1953 में ‘चिन्मय मिशन’ की स्थापना की. स्वामी चिन्मयानंद के प्रवचन बड़े ही तर्कसंगत और प्रेरणादायी होते थे. उनको सुनने के लिए काफ़ी भीड़ एकत्र हो जाती थी.

आगे की शिक्षा के लिए वालकृष्ण मेनन ने ‘महाराजा कॉलेज’ में प्रवेश लिया. वे कॉलेज में विज्ञान के छात्र थे. जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और रसायन शास्त्र उनके विषय थे. यहाँ से इण्टर पास कर लेने पर उनके पिता का स्थानान्तरण त्रिचूर के लिए हो गया. यहाँ उन्होंने विज्ञान विषय छोड़ कर कला के विषय ले लिये. बाद में उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने 1940 में ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ में प्रवेश ले लिया. यहाँ उन्होंने विधि और अंग्रेज़ी साहित्य का अध्ययन किया. विविध रूचियों वाले बालकृष्ण मेनन विश्वविद्यालय स्तर पर अध्ययन के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी संलग्न रहते थे.

1942 में वे आज़ादी के राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए और इन्हें कई महीने जेल में रहना पड़ा. स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने नई दिल्ली के समाचार पत्र ‘नेशनल हेरॉल्ड’ में पत्रकार की नौकरी कर ली तथा विभिन्न विषयों पर लिखने लगे. व्यावसायिक रूप से अच्छे प्रदर्शन के बाबजूद मेनन अपने तात्कालिक जीवन से असंतुष्ट व बेचैन थे तथा जीवन एवं मृत्यु और आध्यात्मिकता के वास्तविक अर्थ के शाश्वत प्रश्नों से घिरे हुए थे.

अपने प्रश्नों के उत्तर ढूंढ़ने के लिए बालकृष्ण मेनन ने भारतीय तथा यूरोपीय, दोनों दर्शनशास्त्रों का गहन अध्ययन शुरू किया. स्वामी शिवानंद के लेखन से गहन रूप से प्रभावित होकर मेनन ने सांसारिकता का परित्याग कर दिया और1949 में शिवानंद के आश्रम में शामिल हो गए. वहां उनका नामकरण “स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती” किया गया, जिसका अर्थ था “पूर्ण चेतना के आनंद से परिपूर्ण व्यक्ति”.  अगले आठ वर्षो का समय उन्होंने वेदांत गुरु स्वामी तपोवन के निर्देशक में प्राचीन दार्शनिक साहित्य और अभिलेखों के अध्ययन में बिताया. इस दौरान चिन्मयानंद को अनुभूति हुई कि उनके जीवन का उद्देश्य वेदांत के संदेश का प्रसार और भारत में आध्यात्मिक पुनर्जागरण लाना है.

पुणे से आरंभ करके चिन्मयानंद सरस्वती ने सभी मुख्य नगरों में ज्ञान-यज्ञ करना शुरू किया. आरंभ में पुरोहित वर्ग ने उपनिषदों और भगवद्गीता के पवित्र ज्ञान के मुक्त प्रसार का विरोध किया, क्योंकि उस समय तक यह ज्ञान ब्राह्मणों के लिए सुरक्षित था. चिन्मयानंद तक हर व्यक्ति की पहुंच थी. वह सत्संगों (धार्मिक सभाओं) में पुरुषों और स्त्रियों से मिलते तथा उन्हें आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते. उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वेदांत का उद्देश्य मनुष्य के दैनंदिन जीवन में उसे क्रमश: अधिक सुखी और संतुष्ट बनाना है, जो व्यक्ति को भीतर से स्वत: आध्यात्मिक जागरण की ओर प्रवृत्त करता है. दैनिक जीवन के उदाहरणों की सहायता से वह गूढ़ दर्शन को सामान्य और तर्कपूर्ण ढंग से समझाते थे.

स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने ‘चिन्मय मिशन’ की स्थापना की, जो दुनिया भर में वेदांत के ज्ञान के प्रसार में संलग्न है. साथ ही यह संस्था कई सांस्कृतिक, शैक्षिक और सामाजिक कार्यों की गतिविधियों की भी देखरेख करती है. 1993 में शिकागों में विश्व धर्म संसद में चिन्मयानंद सरस्वती ने हिन्दू धर्म का प्रतिनिधित्व किया. एक शताब्दीपहले स्वामी विवेकानंद को यह सम्मान मिला था. आज ही के दिन अर्थात 3 अगस्त १९९३ को कैलिफ़ोर्निया में सैन डियागो में दिल का घातक दौरा पड़ने से स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने महासमाधि प्राप्त की और सांसारिक जीवन से मुक्त हो गए. जीवन पर्यन्त वैदिक धर्म प्रचार हेतु कार्य करने वाले ऐसे महान विभूति को आज उनके निर्वाण दिवस पर सुदर्शन न्यूज बारम्बार नमन वन्दन और अभिनंदन करता है.

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