जबलपुर। लोगो में यह भ्रांति है कि भांग सिर्फ नशे के लिए उपयोग होती है जबकि सच्चाई यह है कि भांग के बीज, तने व छाल से २५००० वस्तुओ का उत्पादन किया जा सकता है, यह पौधा पर्यावरण संरक्षण करता है, भांग से कपड़ा , काग़ज़, दवाइयां, कार्पेट, फर्नीचर, कंस्ट्रक्शन मटेरियल, ईंट जैसे अहम वस्तुयें बनायी जाती हैं।
वर्तमान में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने इसकी विशेषताओं को देखते हुए राज्य में भांग की खेती को कुछ शर्तों के साथ अनुमति दे रखी है।
मध्य प्रदेश की जमीन भी भांग उत्पादन के लिए अनुकूल है और अगर सरकार चाहे तो दवाई , रिसर्च व अन्य उत्पदो के लिए भांग की खेती के लिए अनुमति देकर, मध्य प्रदेश का स्वर्णिम भविष्य लिख सकती है।
उक्त विचार प्रदेश भर में ऑर्गेनिक वूमेन नाम से प्रचलित हुई ७१ वर्ष की आयु में स्टार्ट उप चलाने वाली भांग उत्पादक श्रीमती विजयलक्ष्मी अवस्थी ने सुदर्शन न्यूज के साथ विशेष मुलाकात में साझा किए।
भांग के उत्पादों का वैश्विक औद्योगिक बाजार का आकार सन 2019 में 471 बिलियन अमरीकी डॉलर था और यह हर वर्ष 15.8% की दर से बढ़ रहा है।
ऑटोमोटिव, कंस्ट्रक्शन, फूड एंड बेवरेज, पर्सनल केयर, मेडिसिन, न्यूट्रसटीकल और टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में भांग के पौधे की बढ़ती माँग के कारण इस पौधे से प्रदेश और देश अच्छी ख़ासी विदेशी मुद्रा , राजस्व और रोज़गार प्राप्त हो सकता है; विशेष रूप से यूरोप और अमेरिकी देशों में इसकी काफी मांग है। तेल, पेंट, वार्निश, मुद्रण स्याही, ईंधन, सॉल्वैंट्स, शाकाहारी प्रोटीन, बायो प्लास्टिक और बायो फ़्यूल की बढ़ती मांग से भांग और फ़ायदेमंद हो जाती है।
भांग के वैश्विक निर्यात में चीन का हिस्सा ७७% है, करोना के कारण वैश्विक राजनीति में चीन के विरोध से विश्व बाज़ार में एक निर्वात उत्पन्न हुआ है जिसे भारत आसानी से भर सकता है।
३३० बिलियन डॉलर की इंडस्ट्री का टॉप एक्सपोर्टर है चीन
हेंप यानी भांग की विशेषताओं को आज सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व ने पहचाना है यही कारण है कि वर्तमान में यह इंडस्ट्री ४७१ बिलियन डॉलर की हो चुकी है।
दुर्भाग्य यह है की भारत की भांग विश्व में सर्वश्रेष्ठ होने के बावजूद भी सरकारी नीतियों के कारण आज उपेक्षित है, भांग उत्पादन प्रतिबंधित होने के कारण, हमारा देश विश्व का टॉप एक्सपोर्टर नहीं बन सका, जबकि भांग हमारे देश की फसल है और वैदिक काल से हम इसे उगा रहे थे।
वही हमारा पड़ोसी देश चीन पिछले ५० सालो से भांग उगा रहा है और आज विश्व भर में अकेले ७७ प्रतिशत भांग का एक्सपोर्ट करता है।
इस्राएल, अमेरिका और जर्मनी भांग से बनी दवाओं से केन्सर, पर्किंसन, अल्ज़ाइमर जैसी बीमारियाँ ठीक कर रहे हैं और दवाए निर्यात कर विदेशी मुद्रा कमा रहे हैं जबकि हमारी सुश्रुत संहिता में भांग से बनने वाली ४०० दवाओं का वर्णन है, फिर भी हमने अमेरिकी दबाव में भांग प्रतिबंधित कर रखी है,
१९८५ के पहले ५००० सालो तक, भारत में यह पौधा शिवप्रिया/ विजया/ भांग पूज्य था यजुर्वेद में इसे विजया कहा गया है, सिर्फ़ ३५ साल पहले १९८५ में राजीव गांधी सरकार ने, अमेरिकी सरकार के दबाव में आकर इसे प्रतिबंधित कर बदनाम कर दिया और आज वही अमेरिका भांग को वैध कर चुका है यू एन ओ ने भी इसे प्रतिबंधित नशे की लिस्ट से निकल दिया है।
अब मध्य प्रदेश सरकार चाहे तो १९८५ की गलती सुधार कर, उत्तराखंड की तर्ज़ पर भांग को वैध कर सकती है और रोज़गार, किसानो की आय और राजस्व प्राप्ति में अमूल चूल बढ़ोतरी कर सकती है।
मध्य प्रदेश उन राज्यों में शामिल हो सकता था, जिन्होंने फाइबर और दवाओं के लिए भांग की खेती को वैध बनाया है।
२०१९ में कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश उन राज्यों में शामिल हो सकता था, जिन्होंने फाइबर और दवाओं के लिए भांग की खेती को वैध बनाया है। तत्कालीन कानून और जनसंपर्क मंत्री पी सी शर्मा ने कहा था कि राज्य सरकार ने भांग की खेती को वैध बनाने का फैसला किया है, लेकिन यह नशे के लिए नहीं है, इसका इस्तेमाल कपड़े और कैंसर के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं को बनाने में किया जाएगा।पूर्ववर्ती सरकार के फैसले पर वर्तमान मध्य प्रदेश सरकार को ध्यान देना चाहिए और करोना के बाद की विषम परिस्तिथियो को ध्यान में रखते हुए किसानो की आय ४ गुनी करने, राजस्व बढ़ाने और युवाओं को रोजगार देने के लिए एक बेहतरीन भांग नीति बनाने पर पुनर्विचार करना चाहिए।