जानवरों को प्यार करना किसे नही पसंद लेकिन अगर वही मरते रहेंगे तो प्यार किसे किया जाएगा। कोरोना महामारी के समय लोग घरों से भी बहार जाने से भी कतराते थे लेकिन उस समय अरावली वेटनरी कॉलेज की छात्र विभा तोमर ने उनकी देखभाल करी थी।
उन्होंने उन जानवरों कि भी मदद की जो बाहर लॉकडॉउन के चलते खाली सड़कों पर घूमने लगे, जिससे लॉकडॉउन के खुलते ही सभी सड़कें जाम हो गई थी। उस समय कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि जानवरों कि आज़ादी छिन गयी है।
अब बात करें विभा तोमर ने काफी अच्छे कदम उठाए हैं। उन्होंने जानवरों को खाना ही नहीं बल्की उनकी जान बचाने का प्रयास भी किया।
वहीं इस बात पर गौर फरमाएं तो हाल ही में राजस्थान के कई शहरों में पशुओं की जानें जा रही हैं। आपको बता दें कि इसका कारण स्पष्ट है कि वहा महामारी का दौर हैं।
राजस्थान में लंपी स्किन डिजीज का कहर बरस रहा हैं। राजस्थान में अब तक 1000 से ज़्यादा पशुओं कि जान जा चुकी हैं। चुरु के इलाकों में बीमार पशुओं को आकड़ा 500 से अधिक जा चुका हैं। वहीं हाल ही में 3 पशुओं कि मृत्यु हो चुकी हैं। इस बीमारी ने पशुपालकों को हिला कर रख दिया है।
साथ ही साथ गुजरात के 17 जिलों में लंपी का कहर बरस रहा हैं। गुजरात के 33 में से 17 जिलों में अभी तक 1200 से अधिक मृत्यु हो चुकी हैं। आज के युग में भारत को सबसे अधिक मुनाफा डेरी फार्मिंग से होती हैं। अगर ऐसे चलता रहा तो भारत का होने वाला मुनाफा घट जाएगा।
अब अगर जीवन कि बात करे तो वह भी आवश्यक है क्योंकि एक प्रकृति ही है जो राक्षस को इंसान बना देती है। अगर प्रकृति नहीं बचेगी तो जीवन कि परिभाषा खत्म हो जाएगी।
हमारे आज के लिए हुए फेसलों से प्रकृति पर प्रभाव पड़ रहा है।
आज इंसान के लिए हुए फैसलों पर सवाल उठता है कि क्या जो भी बत्त सुलूक वह जानवरों के साथ करता है क्या वो सही हैं? क्या कोई विभा जैसा मसीहा आएगा जो कहे “हर जानवर का जीवन मान्य हैं”।