आज देश में बना हुआ माहौल और परिस्थितियां कहीं न कहीं इतिहास की कुछ चूको की तरफ इशारा करती हैं। उन तमाम चोको में एक चुके भी मानी जा सकती है कि परम पूज्य गुरु गोलवलकर जी के सिद्धांतों का पूर्णतया पालन नहीं किया गया और देश के तत्कालीन नेताओं ने खुद को ढके रखा एक अदृश्य सेकुलरिज्म के आवरण में जिसका कहीं न कहीं वीभत्स रूप आज ना सिर्फ इंसानों के नरसंहार बल्कि पशु पक्षियों हाथी याद की हत्या के रूप में देखने को साफ-साफ मिल रहा है। चाहे कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार हो या केरल में हाथी की हत्या इन सब की तरफ पढ़ो इशारा कर गए थे परम पूज्य गुरु गोलवलकर जी। आइए जानते हैं उनकी कुछ अमूल्य शिक्षाओं को-
श्री गुरू जी ने अपनी पुस्तक ”बंच ऑफ थॉट्स”, (अध्याय XVI, आन्तरिक खतरा-१. मुसलमान, पृ. १७७-१८७, १९६६) में कहा :-
१. मुस्लिम मानसिकता-”क्या (पाकिस्तान बनने के बाद) जो मुसलमान भारत में रह गए हैं, उनकी मानसिकता तनिक भी बदल गई है ? क्या उनकी पुरानी शत्रुता और हत्या करने की मनस्थिति जिसके फलस्वरूप १९४६-५७ में व्यापक मात्रा में दंगे, लूट, आगजनी, बलात्कार और विभिन्न प्रकार की लम्पटताएं अभूतपूव्र स्तर पर हुईं, अब समाप्त हो गई ? ऐसा भ्रम से भी विश्वास कर लेना कि पाकिस्तान बनने के बाद वे रातोंरात राष्ट्र भक्त हो गए हैं, आत्मघाती होगी। इसके विपरीत पाकिस्तान बन जाने के कारण मुस्लिम खतरा सैंकड़ों गुना और बढ़ गया है क्योंकि पाकिस्तान हमारे देश पर समस्त भावी आक्रामक कार्यवाहियों के लिए कए स्थायी आधार बन गया है.” (पृ. १७८)..
२. भारीय मुसलमानों की दोहरी आक्रामक नीतियाँ-”उनकी आक्रामक रणनीति सदैव दोहरी रही है : पहली ‘सीधा आक्रमण’ ..स्वतंत्रता पूर्व जिन्ना नपे इसे ‘डाईरेक्ट एक्शन’ या ‘सीधी कार्यवाही’ कहा जिसके पहले झटके के फलस्वरूप उन्हें पाकिस्तन मिला.” (पृ. १७८)….. ”उनके आक्रमण का दूसरा मोहरा हमारे देश के संवदेशनील क्षेत्रों में तेजी से अपनी जनसंखया बढ़ाना है. कश्मीर के बाद इनका दूसरा निशाना आसाम है. वे पिछले अनेक वर्षों से नियोजित ढंग से आसाम, त्रिपुरा ओर शेष बंगाल में तेजी से घुस पैंठ कर रहे हैं. ऐसा, हमारी तरह कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में अकाल का प्रकोप है, इसलिए लोग वहाँ से आसाम और पश्चिमी बंगाल में आ रहे हैं. पाकिस्तानी मुसलमान तो पिछले पन्द्रह वर्षों (१९५१) से आसाम में घुस पैठ कर रहे हैं। क्या इसका यह अर्थ है कि अकाल इन्हें पिछले 15 वर्षों से अकाल उन्हें धकेतला रहा है ? ” (पृ. १७९).
३. फिर १९४६-५७ जैसी स्थिति-”इस बात के स्पष्ट लक्षण हैं कि भारत में १९४६-४७ जैसी विस्फोटक स्थिति फिर तेजी से पनप रही हे और पता नहीं विस्फोट कब हो जाए. दिल्ली से लेकर रामपुर औरल खनऊ तक मुसिलम खतरनाक षड्यंत्रों जैसे हथियारों की जमाखोरी और अपने लोगों को लामबंद करने में व्यस्त हैं और सम्भवतः वे अन्दर से आक्रमण करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब पाकिस्तान हमारे देश पर सशस्त्र हमला करने का फैसला करें.” (पृ. १८१)
४. अनेक भारतीय मुसलमान पाकिस्तान के सम्पर्क में-”सार की बात यह है कि व्यवहार में प्रत्येक जगह एसे मुसलमान हैं जो कि पाकिस्तान के साथ ट्रान्समिटर के द्वारा लगातार सम्पर्क में रहते हैं. ऐसा करते हुए वे न केवल एक सामान्य नागरिक के अधिकारों का प्रयोग कर रहे हैं बल्कि कुछ विशेष रिययतें और कुछ विशेष अधिकार भी क्योंकि वे ‘अल्पसंखयक’ हैं. हमारा गुप्तचर विभाग ऐसे लोगों, जो हमारे देश के अस्तित्व को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं, की अपेक्षा राष्ट्र भक्त लागों के बारे में ज्यादा सतर्क प्रतीत होते हैं.” (पृ. १८५).
५. वास्तविकता का सामना करो-”मुसलमान, आज भी चाहे किसी ऊँचे सरकारी पद पर हों या बाहर हों, राष्ट्रविरोधी गोष्ठियों में खुल्लम खुल्ला भाग लेते हैं उनके भाषणों में विरोध और अवज्ञा सुस्पष्ट दिखाई देती है. एक केन्द्रीय मंत्री ने एक ऐसी ही गोष्ठी के मंच से बोलते हुएधमकी दी जब तक कि मुसलमानों के हितों को सुरक्षित नहीं रखा गया यहाँ भी स्पेन जैसी स्थिति दुहराई जाएगी जिसका अर्थ है कि वे सशस्त्र क्रांति के लिए उठ खड़े होंगे. अब हम और रोना-धोना बंद करें जब तक कि बहुत देर न हो जाए; और देश की सुरक्षा और अखंडता को सर्वोत्तम प्राथमिकता देते हुए इस लम्बी आत्मघाती चली आई मानसिकता का सामना करने के लिए तैयार हो जाओ.” (पृ. १८६-१८७).