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रिज़वान जहीर का मानवाधिकार पर नीरज कुमार पर अत्याचार.. त्रिपुरा DM जैसी हरकत एक जगह और

जानिए पूरे मामले को और देखिए प्रशासनिक पक्षपात को.

सुदर्शन न्यूज़ डेस्क
  • May 11 2021 6:26AM
निश्चित रूप से यह पुरानी सरकारों की परंपरा हुआ करती थी. जिस सत्ता में मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद, शहाबुद्दीन और खुद रिजवान जहीर जैसे कुख्यात प्रशासनिक छत्रछाया में पलते थे..

इतना ही नहीं उनके जुल्मों के शिकार पीड़ित न्याय के लिए दर-दर भटका का करते थे। लगभग 4 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का शासन आया और उन्होंने जिस चीज पर सबसे सबसे पहली लगाम लगाई वह था पारंपरिक तुष्टीकरण। इसके सार्थक और सकारात्मक परिणाम भी दिखने शुरू हुए .

इन्ही परिणामो के चलते मुख्तार अतीक की बात दूर, आजम खान जैसों को भी अपने को कुकर्मों का दंड भुगतना पड़ा. लेकिन इस कार्यवाही के दायरे में कहीं कोई छूट गया तो वह था कई मामलों में नामजद रह चुका रिजवान जहीर।

अभी हाल के ही पंचायत चुनाव में कांग्रेस नेता दीपांकर पर जानलेवा हमला करके रिजवान जहीर और उसके समर्थकों ने खुद से बेखबर बलरामपुर प्रशासन को सोते से जगाया और बताया कि वह पुराने अंदाज में ही रहना चाहता है। 

शुरू में रिजवान जहीर की हिंसक गतिविधियों को भरसक दबाया गया लेकिन बाद में पूरा मामला मीडिया में आ जाने के बाद रिजवान जहीर उसके साथियों रिश्तेदारों पर कार्यवाही होने के लिए बलरामपुर प्रशासन को बाध्य होना पड़ा। 

रिजवान जहीर को और उनके तमाम साथी, समर्थकों को जेल भेजे जाने से पहले जब बलरामपुर की पुलिस कस्टडी में बिठाया गया था तब उनके मानवाधिकार और खाने-पीने इत्यादि का पूरा ध्यान बलरामपुर पुलिस द्वारा रखा गया था। हमला, आगजनी के आरोपी उनमें से किसी एक को भी किसी भी स्तर के पुलिस अधिकारी द्वारा कोई भी बदतमीजी या अपशब्द भी नहीं बोलें गए..

लेकिन उसी बलरामपुर पुलिस ने जब एक अन्य मामले में नीरज तिवारी नाम के युवक को पकड़ा तो क्रूरता की सभी सीमाओं को पार कर दिया। ऐसा लगा ही नहीं कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का शासन है . बरसते पट्टों के बीच में कोतवाली नगर पुलिस बल अट्टहास लगा रहा था और ऐसा रूप दिखा रहा था जैसे उसने समाज को इस कृत्य से भयमुक्त कर दिया हो। 

बलरामपुर पुलिस के इस स्वरूप को विकृत करने में सबसे ज्यादा सक्रियता दिखाई है बलरामपुर कोतवाली के वर्तमान थानेदार और भगवती गंज चौकी प्रभारी ने। इन्होंने उच्चाधिकारियों को किस प्रकार गुमराह रखा इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इनकी हिंसक गतिविधियों का वीडियो लोगों के सामने आने में 1 माह लग गए।

 जिस अंदाज में थाने के अंदर एक युवक पर पट्टे बरस रहे थे उससे साफ लग रहा था कि भारत की पुलिस वास्तव में 1861 पुलिस एक्ट से संचालित होती है और तमाम अधिकारियों में अभी भी ब्रिटिश शासन के अंश कहीं न कहीं बचे हैं। मानवाधिकार के मामले में रिजवान जहीर की तरह भाग्यशाली न रहे नीरज तिवारी नाम के युवक द्वारा प्राप्त तस्वीरों और मेडिकल रिपोर्ट की भयावहता इसी बात से समझी जा सकती है कि उसके शरीर के पिछले हिस्से की चमड़ी उतर गई है।

इस पूरे मामले में नीरज तिवारी ने अपराध क्या किया अभी तक यह भी पुलिस नहीं बता पाई और उन्हें किस व्यक्तिगत खुन्नस में थाने में बुलाकर मारा गया यह स्पष्ट नहीं हो पाया.. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या अब अज्ञात कारणों से भी प्रताड़ना शुरू होगी ?

अधिकारी गण 1 माह पुराना वीडियो बता कर कार्यवाही से कहीं न कहीं स्वयं को बचाते दिखे पर इस बात का किसी भी अधिकारी के पास कोई जवाब नहीं है कि मानवाधिकार के सरासर उल्लंघन पर उन्होंने क्या एक्शन लिया ?

यहां बड़ा सवाल यह भी बनता है कि क्या अब जनपद बलरामपुर में मात्र रिजवान जहीर और उनके साथियों का ही मानवाधिकार सुरक्षित है  ? या 1 माह हो जाने से पिछले अपराध में छूट मिल।जाती है ? सवाल ये भी है कि क्या कल कोई मुलजिम भी बलरामपुर पुलिस से ये कह कर छूट नही मांग सकता कि जब आप।अपने पुलिस अधिकारी को 1 माह पुराने अपराध को देरी का आधार बना कर मुक्त कर सकते हो तो मुझे ये छूट क्यों नहीं ?

क्या अब बलरामपुर में अपराध की एक्सपायरी डेट 1 माह तय हो चुकी है ?  या कहीं न कहीं किसी न किसी अधिकारी की पूरी तैयारी है योगी सरकार को पुराने स्वरूप में बदनाम करने की ? फिलहाल इन सभी प्रश्नों का जवाब बलरामपुर पुलिस के प्रमुख द्वारा की गई कार्यवाही से समाज को मिलेगा।

त्रिपुरा के DM जैसे बनते जा रहे इस मामले में ब्राह्मण संगठनों ने भी अपने आक्रोश को सामने रखना शुरू कर दिया है और यदि जल्द ही कोई कार्यवाही न की गई  तो यह मुद्दा प्रदेश स्तर पर सत्ता की किरकिरी करा सकता है।

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