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बलिदान दिवस विशेष- मुग़ल कभी मार न पाते महायोद्धा मुरारबाजी देशपांडे जी को अगर उन मुगलों का साथ न दे रहा होता एक गद्दार हिंदू राजा

जानिए कौन था वो गद्दार जिसके अंश आज भी मौजूद हैं हिन्दू समाज मे.

Sudarshan News
  • May 22 2020 7:40AM

यदि आप समय काल और परिस्थिति को देखें तो यह पाएंगे कि धर्म का सबसे ज्यादा नुकसान कुछ गद्दारों ने किया है अन्यथा विधर्मी यों में इतना साहस कभी नहीं था कि वाह इसे क्षति पहुंचा सके। यदि आप आज भी अपने आसपास नजर घुमा कर देखें तो अपने ही धर्म अपने ही देश को खोखला करने वाले लोग आपके आसपास किसी न किसी माध्यम से दिखाई पड़ जाएंगे। यह परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है जिसके चलते हिंदू साम्राज्य पूरे विश्व से सिमटता हुआ अब एक बहुत ही छोटे भूभाग तक चलाया आया है।

इतिहास को बार बार पढ़ कर के भी हमने गद्दारों से सबक नहीं लिया । जयचंद के समय देशपांडे जी के समय जो कुछ भी हुआ उसका खामियाजा आज तक हिंदू समाज भुगत रहा है और आगे कितना भुगते गा यह भी तय नहीं है जबकि भविष्य में और अधिक नुकसान का अनुमान लगाया जा रहा है क्योंकि आज के समय जयचंद के मानसिकता वालों की अधिकता है जो अपने ही देश में टुकड़े-टुकड़े का नारा लगाते हुए विदेशी ताकतों की तारीफ करने के साथ अपने ही देश के शासकों के खिलाफ आए दिन किसी न किसी प्रकार का षड्यंत्र लगातार रस्ते जा रहे हैं।

कुछ ऐसा ही हुआ था मोरारजी देशपांडे जी के साथ जिन्होंने  6 हजार हिन्दुओ संग 10 हजार मुगलों से लड़ कर पाई थी वीरगति क्योंकि मुगलो का साथ दे रहा था एक गद्दार..इन्होंने न सिर्फ एक विधर्मी से जंग लड़ी थी अपितु उस विधर्मी का साथ देने वाले एक गद्दार के खिलाफ भी हथियार उठाया , जिस गद्दार से मिलते जुलते उन झोलाछाप इतिहासकारो के कुकर्म हैं ..वीरता का इतिहास भारत मे जितना पुराना रहा उतना ही पुराना यहां गद्दारों का भी इतिहास रहा था ..इस घटना से साबित हो जाएगा अन्यथा हिंदवी साम्राज्य स्थापित करने में जुटा एक महायोद्धा अपने हिन्दू समाज के ही एक गद्दार से लड़ कर वीरगति को न प्राप्त हुआ होता  . घटना पांच जनवरी, 1665 की है , ये अवसर था सूर्यग्रहण का जब शिवाजी महाराज ने माता जीजाबाई के साथ महाबलेश्वर मन्दिर में पूजा की। फिर वे दक्षिण के विजय अभियान पर निकल गये , हिन्दुओ के हिंदवी साम्राज्य की स्थापना के लक्ष्य को ले कर।

तभी उन्हें सूचना मिली कि मतांतरित, धर्मांतरित गद्दार मिर्जा राजा जयसिंह और दिलेर खाँ पूना में पुरन्दर किले की ओर बढ़ रहे हैं। शिवाजी दक्षिण अभियान को स्थगित करना नहीं चाहते थे; पर इन्हें रोकना भी आवश्यक था। कुछ ही समय में हत्यारे, लुटेरे दिलेर खान द्वारा संचालित मुगल सेना ने पुरन्दर किले को घेर लिया। वह निकटवर्ती गाँवों में लूटपाट कर आतंक फैलाने लगी। इससे शिवाजी ने मुगलों की चाकरी कर रहे मिर्जा राजा जयसिंह को एक लम्बा पत्र लिखा, जो अब एक ऐतिहासिक विरासत है, इस पत्र में उन्होंने उनका हिंदुत्व का गौरवशाली इतिहास याद दिलाया और हिन्दुओ के साथ दिलेर खान जैसे न जाने कितने लुटेरों के कुकृत्यों को याद कराया..

लेकिन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि में ढल चुके पर जयसिंह पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। उल्टे पुरन्दर किले पर हमले और तेज हो गये. जयसिंह मिर्जा जैसे तमाम राष्ट्र धर्म के गद्दार आज के भारत मे भी आसानी से देखने को मिल जाते हैं. मुरारबाजी मुगलों को काटते हुए सेना के बीच तक पहुँच गये। उनकी आँखें दिलेर खाँ को तलाश रही थीं। वे उसे जहन्नुम में पहुँचाना चाहते थे; पर वह सेना के पिछले भाग में हाथी पर एक हौदे में बैठा था। मुरारबाजी ने एक मुगल घुड़सवार को काटकर उसका घोड़ा छीना और उस पर सवार होकर दिलेर खाँ की ओर बढ़ गये। दिलेर खाँ ने यह देखकर एक तीर चलाया, जो मुरारबाजी के सीने में लगा। इसके बाद भी उन्होंने आगे बढ़कर दिलेर खाँ की ओर अपना भाला फेंककर मारा।

तब तक एक और तीर ने उनकी गर्दन को बींध दिया। वे घोड़े से निर्जीव होकर गिर पड़े.यह ऐतिहासिक युद्ध 22 मई, 1665 को हुआ था। मुरारबाजी ने जीवित रहते मुगलों को किले में घुसने नहीं दिया। आज मुगलों के संघ आरक लेकिन हिंदूू राजा जय सिंह से गद्दारी से बलिदान हुए देशपांडे जी को शत शत नमन और संकल्पप लेने का समय समाज में छिपे जयचंद और जैसे-जैसे गद्दारों को पहचान कर इसी देश में मौजूद वर्तमान योद्धाओंं की रक्षा करने का। एक कहावत ऐसे मामलों में सटीक बैठती है कि

"हिंदू कभी नही डरा था".

दुश्मन की तलवारों से..

जब भी उसकी हार हुई तो..

घर के ही गद्दारों से...

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