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बलिदान दिवस विशेष- गांधी और नेहरू ने ये सब कहा था ऊधम सिंह के शौर्य पर.. वो शब्द जो नहीं बोले गए अफ़ज़ल और कसाब को भी

वो दौर अहिंसा का था , ठीक जैसे आज कल है धर्मनिरपेक्षता का.

Rahul Pandey
  • Jul 31 2020 9:22AM
यह ठीक उसी प्रकार का समय था जब अहिंसा का ऐसा बोलबाला था जैसे आजकल भारत में सेक्युलरिज्म का बोलबाला है । जिस प्रकार आज सेकुलर ना होना देशद्रोही होने की निशानी बता दिया जाता है ठीक वैसे ही उस समय अहिंसक ना होना लगभग उसी प्रकार से था। भगत सिंह , चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल के साथ इस पूरे मामले में जो बलि चढ़ा महावीर का नाम उधम सिंह का है जिनका आज बलिदान दिवस है .

वो समय भारत के लिए किसी भी हाल में पर्व से कम नहीं था जब भारत का एक सिंह अंग्रेजो की धरती पर जा कर उनके ही बीच में अपने एक गुनाहगार को मार देता है और उसके बाद वो वहीँ खड़ा हो जाता है क्योकि उसको लगता है कि उसका संकल्प पूरा हो चुका है . जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 में, उधमसिंह को अपने हजारों भाई-बहनों की मृत्यु का बदला लेने का मौका मिल ही गया. रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर ( जनरल डायर )भी वक्ताओं में से एक था. वीर उधम सिंह भी एक मोटी किताब में रिवाल्वर छुपाकर घटना स्थल पर पहुँच गये. किताब को इस तरह से काटा था कि उसमे जनरल डायर के मौत का पैगाम ( पिस्तौल ) आसानी से छिपाई जा सके.

सभा की बैठक ख़त्म होने के बाद दीवार के पीछे से उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलिया दाग़ दी. दो गोलियाँ डायर को लगी जिससे तत्काल वो हत्यारा धूल चाट गया था .वो शौर्य का दिन आज ही का अर्थात १३ मार्च था इसलिए आज जानिये वो इतिहास जिसे छिपाया गया झोलाछाप इतिहासकारों द्वारा . जनरल डायर को गोली मारने के बाद, उधम सिंह वहाँ से भागने की कोशिश नही की और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद उन मुकदमा चला और उन्हें हत्या का दोषी ठहराते हुए, 31 जुलाई 1940 को फाँसी दे दी गई. सब कुछ तो नियति के अनुसार ही चल रहा था लेकिन अचानक ही भारत के तत्कालीन दो सबसे बड़े चेहरे जवाहर लाल नेहरु और गांधी उतर गये थे ऊधम सिंह के खिलाफ और अंग्रेजो से भी ज्यादा कड़ी निंदा कर के ऊधम सिंह के महान कार्य को निंदनीय बता दिया.

जवाहरलाल नेहरू ने उस हत्याकांड के बाद एक बार जनरल डायर के साथ ट्रेन में सफर किया था। हालांकि यह एक संयोग से हुआ घटनाक्रम था, लेकिन नेहरू ट्रेन में डायर का विरोध करने के बजाय चुपचाप लेटे रहे और उसकी बातें सुनते रहे थे। आश्चर्य कि यह सुनकर भी नेहरू ने डायर का विरोध नहीं किया, बल्कि सबकुछ सुनते रहे और दिल्ली आने पर उतर गए। मार्च 1940 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता जवाहरलाल नेहरू ने ऊधम सिंह के कार्य को समझ से परे बताया था, .. नेहरु ने कहा कि मुझे हत्या का गहरा दुख है और मै इसे शर्मनाक कृत्य मानता हूं.

इस मामले में गांधी भी पीछे नहीं थे .. जब डायर के कत्ल के बाद भारत के युवा ऊधम सिंह जिंदाबाद के नारे लगा कर ऊधम सिंह को अपना आदर्श बना रहे थे ठीक उसी समय गांधी को शायद ऊधम सिंह की मरणोपरांत यह प्रसिद्धि रास नहीं आई थी . गांधी ने अपने समाचार पत्र हरिजन में लिखा था कि मै उधमसिंह के इस कार्य से अत्यन्त दुखी हूं। माइकल ओ डायर से हमारे मतभेद हो सकते है,किन्तु क्या हमें उनकी हत्या कर देना चाहिए? ये हत्या एक पागलपन में किया गया कार्य है और अपराधी पर बहादुरी के अहं का नशा सवार है। जीटलैण्ड से हमारे मतभेद होते हुए भी उनके प्रति कोई विद्वेष की भावना नहीं है। मै इस काण्ड पर खेद व्यक्त करता हूं.

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