जिस महारष्ट्र पुलिस ने अपनी आँखों से साधुओ को पिटते और अंत में अंतिम सांस लेते अपनी आँखों से देखा है और यहाँ तक कि उन्हें खुद ही भीड़ के हवाले कर दिया उसके बाद ऐसे शासन और प्रशासन के खिलाफ इस प्रकार की बयानबाजी सम्भावित भी थी और आखिरकार वो सब होना शुरू हो गया है. जिस शिवसेना को कभी भारत का सबसे आक्रामक दल और शेरो का समूह कहा जाता था, जिस शिवसेना के पोस्टर और बैनरों पर आज भी चीतों की तस्वीर हुआ करती है उसी शिवसेना के मुख्यमंत्री और हिन्दू हृदय सम्राट देवलोक वासी बाला साहब ठाकरे के पुत्र और वर्तमान में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के शासन में एक मुफ़्ती ने सीधे सीधे महाराष्ट्र सरकार को फरमान दिया है जिसको सलाह किसी भी रूप में नही मानी जा सकती है.
यहाँ सीधे सीधे कहा गया है कि जब तक रमजान चल रहे हैं तब तक किसी भी मौलाना, मौलवी या किसी अन्य इस्लामिक जानकार को गिरफ्तार न किया जाय.. गिरफ्तारी की बात तो बहुत दूर है, यहाँ सीधे सीधे ये भी कहा गया है कि किसी मौलाना या मौलवी को महाराष्ट्र पुलिस हाथ भी न लगाये और उनसे दूरी बनाये रहे.. ये अजीब मांग रूपी फरमान है जिसकी कम से कम महाराष्ट्र की न्यायप्रिय जनता उम्मीद भी नहीं कर सकती थी. गौर करने योग्य है कि देश ही नही बल्कि दुनिया भर में चल रहे लॉकडाउन के दौरान ही रमजान का महीना शुरू हो गया है. यहाँ बातों बातों में मुफ़्ती ने "बेवजह" शब्द का इस्तेमाल जरूर किया है लेकिन सवाल ये उठता है कि पुलिस बेवजह कब और किस को परेशान करती है ?
उद्धव सरकार और महाराष्ट्र पुलिस को ये फरमान देने वाले का नाम इस्लामिक मजहबी मुफ़्ती हुफैज़ा कासमी है जो मुंबई के भिवंडी का रहने वाला है.. महाराष्ट्र सरकार को सम्बोधित करते हुए इस हुजैफा कासमी ने महाराष्ट्र पुलिस से भी कहा है कि वह लॉकडाउन के दौरान अगर कोई इमाम, हाफिज रोड पर जाते हुए मिलता है तो उस पर हाथ ना उठाएं. एक सलाह देते हुए मुफ़्ती ने चेतावनी के अंदाज़ में आगे कहा कि पहले उसकी पहचान करें क्योंकि रमजान महीने में अगर किसी मौलवी, हाफिज या इमाम पर पुलिस वाले हाथ उठाते हैं तो माहौल बिगड़ सकता है. इसी मुफ़्ती ने महाराष्ट्र पुलिस से यह भी कहा है कि मुस्लिम इमाम, हाफिज जैसे लोगों के लिए जो मस्जिदों में जाकर रमजान के महीने में नमाज पढ़ने का काम करेंगे और उनके सडको पर आने पर किसी भी प्रकार की परेशानी न हो इसका खास ध्यान महाराष्ट्र पुलिस रखे..