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हर देश मे नहीं है गद्दारों को बिरयानी का प्रावधान.. देखिये ईरान में क्या हुआ

न कोई सेक्युलरिज्म का सिद्धांत और न ही कोई तथाकथित मानवाधिकार की दुहाई.

Rahul Pandey
  • Jul 24 2020 9:06AM

ना कोई भाईचारे का सिद्धांत, ना दया की दुहाई, साथ में ना मानवाधिकार का बोलबाला .. जो कुछ भी हुआ वह वहां के नियमों और कानूनों पर हुआ है। यह इस्लामिक मुल्क ईरान है जहां शिया मुसलमानों की संख्या ज्यादा है। इस देश की अमेरिका के साथ तनातनी है और इजरायल के साथ भी युद्ध के मुहाने पर खड़ा है।  उससे पहले कुछ ऐसे देशों के बारे में जानना बेहद जरूरी है जहां ना सिर्फ जासूस और गद्दारों बल्कि संसद के आतंकियों को भी बिरयानी इसलिए खिलाई जाती है कि कहीं उसके समर्थकों के वोट कट ना जाए। आतंकियों की लाशों के जनाजे को उनका संवैधानिक हक घोषित कर दिया जाता है जिससे उन्हें वोट मिले ..

फिलहाल ईरान में जो कुछ भी हुआ है वह एक बहुत बड़ा संदेश है उन तमाम तथाकथित Secularism के ठेकेदारों के लिए जो वोट और देश में वोट को आगे रखते हैं। अमेरिका से चल रही तनातनी के बीच ईरान ने लिया है बहुत बड़ा फैसला.. ईरान सरकार ने रिवॉल्युशनरी गार्ड के जनरल कासिम सुलेमानी के बारे में खुफ‍िया सूचना देने वाले अमेरिका और इजराइल के जासूस को आज फां’सी पर लटका दिया। सरकारी मीडिया ने सोमवार को माजिद को सजा दिए जाने पुष्टि की।

जानकारी के अनुसार, बीते महीने कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तार महमूद मोस्वी-मज्द ने रिवॉल्युशनरी गार्ड के कमांडर कासिल सुलेमानी की जासूसी की थी। वह सीआईए और इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद से जुड़ा था। माजिद को पिछले महीने सजा-ए-मौ’त सुनाई गई थी। इसके बाद ईरान के कानून मंत्रालय के प्रवक्ता हुसैन इस्माइल ने कहा था “माजिद कुद्स सेना प्रमुख की लोकेशन और मूवमेंट की जानकारी हमारे दुश्मन अमेरिका को देता था। इसके बदले उसे अमेरिकी डॉलर मिलते थे। हमने उसे सजा-ए-मौ’त सुनाई है।”

इससे पहले ईरानी न्यायपालिका ने रक्षा मंत्रालय के उस पूर्व कर्मचारी रेजा असगरी को मौ’त के घाट उतार दिया जिन्हें अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए जासूसी करने का दोषी पाया गया था। इससे पहले ईरानी न्यायपालिका ने रक्षा मंत्रालय के उस पूर्व कर्मचारी रेजा असगरी को मौत के घाट उतार दिया जिन्हें अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के लिए जासूसी करने का दोषी पाया गया था।

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