अंग्रेजों के सुरक्षित गढ़ कही जाने वाली कसौली छावनी में भारतीय सैनिकों द्वारा सेंध लगाए जाने से अंग्रेज भय से कांप गए थे जिसके बाद उन्होंने अतिरिक्त सेना भेज कर कई क्रांतिवीरों को फांसी पर चढ़ा दिया था। कसौली से इतनी बड़ी आजादी की लड़ाई लड़ी गई। लेकिन दु:ख का विषय है की कसौली की क्रांति के इतिहास को बहुत ही कम लोग जानते हैं और युवा पीढ़ी को तो इस क्रांति और अमर हुए क्रांतिवीरों के बारे में कुछ भी पता नहीं।कसौली में क्रांति की ज्वाला से भड़की चिंगारी ने पूरे हिमाचल को अपने आगोश में लेकर लोगों के मनों में आजादी की अलख जगा दी थी।
कसौली के बाद डगशाई, सुबाथू, कालका और जतोग छावनियों समेत पूरे हिमाचल में क्रांति की लहर फैल गई। अंग्रेजों ने मेरठ, दिल्ली और अंबाला में भी विद्रोह की सूचना मिलते ही कसौली छावनी के सैनिकों को अंबाला कूच करने के आदेश दिए, जिसे भारतीय सैनिकों ने नहीं माना और खुले तौर पर विद्रोह करके बंदूकें उठा लीं। कसौली की नसीरी बटालियन (गोरखा रेजिमेंट) ने भी ब्रिटिश अधिकारियों के अंबाला कूच करने के निर्देश नहीं माना और खुलेआम आज़ादी का उद्घोष कर दिया था.. आज आज़ादी के उन तमाम ज्ञात अज्ञात वीर बलिदानियों को सुदर्शन न्यूज इस शौर्य दिवस पर बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है और सवाल करता है उन्हें भुलाने की साज़िश करने वाले तथाकथित इतिहासकारों से कि क्या सच मे मिली हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल..?