राम मंदिर आंदोलन के प्रमुख योद्धा रहे कल्याण सिंह अब प्रभु श्रीराम के चरणों में विलीन हो चुके हैं। बेशक राम मंदिर आंदोलन ने कई सरकारें बनाई हों लेकिन कल्याण सिंह वह इकलौते मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्होंने राम काज में सहर्ष अपनी सरकार कुर्बान कर दी थी। हिंदुत्व के ऐसे बेमिसाल नायक को सुदर्शन न्यूज़ की हार्दिक श्रद्धांजलि।
जब उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुस्लिम तुष्टिकरण अपने चरम पर था, तब उत्तर प्रदेश की राजनीति में उदय हुए हिंदुत्व के इस सूर्य ने न सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण के घटाटोप अंधकार को छिन्न भिन्न किया बल्कि ऐसी अलख जगाई जिसने फिर कभी उस उस तुष्टिकरण की काली रात के वापस आने की संभावना को ही समाप्त कर डाला।
जब कारसेवकों पर गोली चलवाकर यूपी की सत्ता बाबरी ढांचे की रक्षा कर रही थी। मुस्लिम आक्रांताओं की साजिशों की कैद में रामलला जकड़े थे। तब कल्याण सिंह ही वह देवदूत थे जिन्होंने रामलला के अनुयायियों को उस विवादित ढांचे को ढहाने का अवसर दिया। उसी एक अवसर ने आज के राम मंदिर निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
कल्याण सिंह ने पहली बार अतरौली विधान सभा इलाके से 1967 में चुनाव जीता और लगातार 1980 तक विधायक रहे। 1980 के विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह को कांग्रेस के टिकट पर अनवर खां ने पहली बार पराजित किया। लेकिन भाजपा की टिकट पर कल्याण सिंह ने 1985 के विधानसभा चुनाव में फिर कामयाबी हासिल की। तब से लेकर 2004 के विधानसभा चुनाव तक कल्याण सिंह अतरौली से विधायक रहे। साथ ही दो बार सांसद बनने का भी उन्हें अवसर मिला।
1991 में यूपी में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह नकल अध्यादेश की वजह से सारे देश में जाने गए। इसी के दम पर वो गुड गवर्नेंस की बात करते थे। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और राजनाथ सिंह शिक्षा मंत्री। बोर्ड परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जाने वालों को जेल भेजने के इस कानून ने कल्याण को सख्त प्रशासक बना दिया। यूपी में किताब रख के चीटिंग करने वालों के लिए ये अध्यादेश काल बन गया था।