ये होता है वो असल बलिदान और त्याग जो राष्ट्र और ईश्वर को समर्पित कर दिया जाता है .. इसका ढोल पीट पीट कर वोट नही बटोरे, इसका हवाला दे कर गद्दी नही मांगी और न ही कभी इतिहास की किताबों में जबरन छपवाने की जिद या जद्दोजहद की ..
असल मे सत्यता कभी शब्दों की मोहताज नही होती वरना आज देश इतने नकली आडम्बरो में भी न समझ पाता कि किसने अंग्रेजों संग गुलछर्रे उड़ाए और किस ने देश के लिए प्राण दिए ..उन अमर बलिदानियों में से एक है क्रांतिवीर सुखदेव जी जिनका आज अर्थात 15 मई को जन्मदिवस है .
आपने बहुत से क्रन्तिकारी और देशभक्त का नाम सुना होगा और आपने ऐसे स्वतंत्रता सेनानी का नाम सुना होगा जिसने अपना जीवन देश की सेवा में लगाया| ऐसे ही सुखदेव जी भी थे| भारत को आजाद कराने के लिये अनेकों भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी|
ऐसे ही देशभक्त शहीदों में से एक थे सुखदेव थापर, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेंड़ियों से मुक्त कराने के लिये समर्पित कर दिया| सुखदेव जी क्रान्तिकारी भगत सिंह के बचपन के मित्र थे| दोनों साथ बड़े हुये, साथ में पढ़े और अपने देश को आजाद कराने की जंग में एक साथ भारत माँ के लिये अमरता को प्राप्त हो गये|
सुखदेव जी का जन्म 15 मई, 1907 को गोपरा, लुधियाना में हुआ था|उनके पिता का नाम रामलाल थापर था जो अपने व्यवसाय के कारण लायलपुर में रहते थे|इनकी माता रल्ला देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं| दुर्भाग्य से जब सुखदेव तीन वर्ष के थे, तभी इनके पिताजी का देहांत हो गया|
इनका लालन-पालन इनके ताऊ लाला अचिन्त राम ने किया|वे समाज सेवा व देशभक्तिपूर्ण कार्यों में अग्रसर रहते थे| इसका प्रभाव बालक सुखदेव पर भी पड़ा|.
बाद में सुखदेव हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और पंजाब के कुछ क्रांतिकारी संगठनो में शामिल हुए|वे एक देशप्रेमी क्रांतिकारी और नेता थे जिन्होंने लाहौर में नेशनल कॉलेज के विद्यार्थियों को पढाया भी था और समृद्ध भारत के इतिहास के बारे में बताकर विद्यार्थियों को वे हमेशा प्रेरित करते रहते थे|
इसके बाद सुखदेव ने दुसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर “नौजवान भारत सभा” की स्थापना भारत में की|इस संस्था ने बहुत से क्रांतिकारी आंदोलनों में भाग लिया था और आज़ादी के लिये संघर्ष भी किया था|..
सांडर्स की हत्या के मामले को ‘लाहौर षड्यंत्र’ के रूप में जाना गया। इस मामले में राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को मौत की सजा सुनाई गई। 23 मार्च 1931 को तीनों क्रांतिकारी हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए और देश के युवाओं के मन में आजादी पाने की नई ललक पैदा कर गए।
बलिदान के समय सुखदेव की उम्र मात्र 24 साल थी। आज वीरता की उस अमर गौरव गाथा सुखदेव जी को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है ..
यहां पर सवाल भारत को स्वतंत्रता दिलाने का ठेका लेने वाले उन तथाकथित मठधीशों व उनके नाम पर देश की सत्ता मांगने वालों से जरूर बनता है कि उन्होंने राष्ट्र के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले सुखदेव जैसे बलिदानी यों के परिजनों के लिए क्या किया ?
सवाल नकली कलमकारों और झोलाछाप लेखकों से भी बनता है कि सुखदेव जैसे बलिदानी को उन्होंने भारत की इतिहास की पुस्तकों में स्वर्ण के अक्षरों में अंकित क्यों नहीं किया ? सवाल यह भी बनता है कि क्या भारत की वर्तमान पता उस तरफ ध्यान देगी और उस ऐतिहासिक भूल को सुधारेगी जो तथाकथित भाईचारे के नाम पर पिछले 70 सालों से लगातार की गई और आज भी जिसे दोहराने और थोपने के प्रयास अनवरत जारी है.