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24 जनवरी- जन्मजयंती क्रांतिकारी पुलिन बिहारी दास जी.. काकोरी क्रान्ति की तरह "बारा क्रान्ति" के थे सूत्रधार और क्रूर ब्रिटिश अफसर एलन पर चलाई थी गोली

विस्मृत किये गए लोगो में एक हैं आज ही जन्म लेने वाले पुलिन बिहारी दास जी .. इनके द्वारा संचालित बारा क्रान्ति शायद ही किसी की जानकारी में रहा हो.

Rahul Pandey
  • Jan 24 2021 1:56PM

यकीनन ये नाम भी आपके लिए नया होगा ..खैर बताएगा भी कौन ?? वो तो कदापि नही जिन्होंने इस बात पर अपनी मुहर लगा रखी है कि भारत की आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल मिली है और 2 या 4 लोगों ने ही इस आज़ादी को दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है .. 

उसी 2 या 4 लोगो को इतना चमकाया गया कि आखिरकार वही बन बैठे भारत भाग्य विधाता और बाकी सब के सब कर दिए गए विस्मृत..उन्ही विस्मृत किये गए लोगो में एक हैं आज ही जन्म लेने वाले पुलिन बिहारी दास जी .. इनके द्वारा संचालित बारा क्रान्ति शायद ही किसी की जानकारी में रहा हो ..

यहाँ ये ध्यान रखने योग्य जरूर है कि काकोरी और बारा के साथ क्रांति शब्द सुदर्शन न्यूज़ के इतिहास में आपको मिलेगा. वामपंथी और चाटुकार इतिहासकार इन गौरवशाली पलों को हर कहीं क्रांति के बजाय काण्ड बोलते हैं और संतोष देते हैं अपने उन आकाओं को जिनके इशारे पर उन्होंने इतिहास को विकृत किया है.

पुलिन बिहारी दास का जन्म 24 जनवरी सन 1877 को बंगाल के फ़रीदपुर ज़िले में लोनसिंह नामक गाँव में एक मध्यम-वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था. उनके पिता नबा कुमार दास मदारीपुर के सब-डिविजनल कोर्ट में वकील थे. उनके एक चाचा डिप्टी मजिस्ट्रेट व एक चाचा मुंसिफ थे. 

उन्होंने फ़रीदपुर ज़िला स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए ढाका कॉलेज में प्रवेश लिया. कॉलेज की पढ़ाई के दोरान ही वह लेबोरटरी असिस्टेंट व निर्देशक बन गए थे. उन्हें बचपन से ही शारीरिक संवर्धन का बहुत शौक था और वह बहुत अच्छी लाठी चला लेते थे. 

कलकत्ता में सरला देवी के अखाड़े की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने भी सन 1903 में तिकतुली में अपना अखाड़ा खोल लिया. सन 1905 में उन्होंने मशहूर लठियल लाठी चलाने में माहिर से लाठी खेल और घेराबंदी का प्रशिक्षण लिया. सितम्बर, 1906 में बिपिन चन्द्र पाल और प्रमथ नाथ मित्र पूर्वी बंगाल और असम के नए बने प्रान्त का दोरा करने गए. वहां प्रमथ नाथ ने जब जनता से आह्वान किया कि - 

" जो लोग देश के लिए अपना जीवन देने को तैयार हैं, वह आगे आयें."

तो पुलिन बिहारी दास तुरंत आगे बढ़ गए. बाद में उन्हें अनुशीलन समिति की ढाका इकाई का संगठन करने का दायित्व भी सौंपा गया और अक्टूबर में उन्होंने 80 युवाओं के साथ ढाका अनुशीलन समिति की स्थापना की. पुलिन बिहारी दास उत्कृष्ट संगठनकर्ता थे और उनके प्रयासों से जल्द ही प्रान्त में समिति की 500 से भी ज्यादा शाखाएं हो गयीं. 

क्रांतिकारी युवाओं को प्रशिक्षण आदि देने के लिए पुलिन बिहारी दास ने ढाका में नेशनल स्कूल की स्थापना की. इसमें नौजवानों को शुरू में लाठी और लकड़ी की तलवारों से लड़ने की कला सिखाई जाती थी और बाद में उन्हें खंजर चलाने और अंतत: पिस्तोल और रिवॉल्वर चलाने की भी शिक्षा दी जाती थी.

पुलिन बिहारी दास ने ढाका के दुष्ट पूर्व ज़िला मजिस्ट्रेट बासिल कोप्लेस्टन एलन की हत्या की योजना बनायी. 23 दिसंबर सन 1907 को जब एलन वापस इंग्लैंड जा रहा था, तभी गोलान्दो रेलवे स्टेशन पर उसे गोली मार दी गयी, किन्तु दुर्भाग्य से वह बच गया. 

धन की व्यवस्था करने के लिए सन 1908 के प्रारंभ में पुलिन बिहारी दास ने सनसनी खेज बारा डकैती कांड को अंजाम दिया. इस साहसी डकैती को वीर युवकों ने अपनी जान पर खेलकर दिन-दहाड़े डाला था और यह बारा के ज़मींदार के घर पर डाली गयी थी न की गरीबों के घर.

 इस से प्राप्त धन से क्रांतिकारियों ने हथियार ख़रीदे. सन 1908 में अंग्रेज़ सरकार ने पुलिन बिहारी दास को भूपेश चन्द्र नाग, श्याम सुन्दर चक्रवर्ती, क्रिशन कुमार मित्र, सुबोध मालिक और अश्विनी कुमार दत्त के साथ गिरफ्तार कर लिया और मोंटगोमरी जेल में कैद कर दिया. 

लेकिन अंग्रेज़ सरकार उन्हें झुका नहीं सकी और सन 1910 में जेल से रिहा होने के बाद वह दोबारा क्रांतिकारी गतिविधियों को तेज करने में लग गए. इस समय तक, प्रमथ नाथ मित्र की मृत्यु के पश्चात, ढाका समूह कलकत्ता समूह से अलग हो चुका था. 

परन्तु अंग्रेज़ सरकार ने ढाका षड्यंत्र केस में पुलिन बिहारी दास व उनके 46 साथियों को जुलाई सन 1910 को दोबारा गिरफ्तार कर लिया. बाद में उनके 44 अन्य साथियों को भी पकड़ लिया गया. इस केस में पुलिन बिहारी दास को कालेपानी, आजीवन कारावास की सजा हुई और उन्हें कुख्यात सेल्यूलर जेल में भेज दिया गया. 

यहाँ उनकी भेंट अपने ही जैसे वीर क्रांतिकारियों से हुई, जैसे- हेमचन्द्र दास, बारीन्द्र कुमार घोष और विनायक दामोदर सावरकर. प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर पुलिन बिहारी दास की सजा कम कर दी गयी और सन 1918 में उन्हें रिहा कर दिया गया.

लेकिन फिर भी उन्हें एक वर्ष तक गृह-बंदी में रखा गया. अंग्रेज़ सरकार के दमन और अत्याचारों के बाद भी 1919 में पूरी तरह रिहा होते ही उन्होंने एक बार फिर से समिति की गतिविधियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास शुरू कर दिया. लेकिन सरकार द्वारा समिति को गैर-कानूनी घोषित करने और उसके सदस्यों के बिखर जाने से उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी. 

असहयोग आन्दोलन प्रारंभ होने से अनेक युवाओं में नयी उमंग उठी और उन्होंने उसे अपना समर्थन दिया, किन्तु पुलिन बिहारी दास अभी भी अपने आदर्शों और अपने मार्ग पर अडिग रहे. सरकार द्वारा समिति को गैर-कानूनी घोषित करने के कारण उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों को संचालित करने के लिए 1920 में "भारत सेवक संघ" की स्थापना की. 

क्रांतिकारी विचारधारा को फैलाने के लिए पुलिन बिहारी दास ने एस.आर.दास के सानिध्य में "हक़ कथा" और "स्वराज" नामक दो पत्रिकाएँ भी निकालीं. सन 1928 में उन्होंने कलकत्ता के मच्चुबाज़ार में "वांग्य व्यायाम समिति" की स्थापना की. यह शारीरिक शिक्षा का संस्थान व अखाड़ा था, जहाँ वह युवकों को लाठी चलाने, तलवारबाज़ी और कुश्ती की ट्रेनिंग देने लगे. 

बाद में पुलिन बिहारी दास ने विवाह कर लिया. उनके तीन पुत्र व दो पुत्रियाँ हुईं. बाद में एक योगी के संपर्क में आने से उनकी अनासक्ति भाव में प्रवर्ति हुई. इसी समय स्वामी सत्यानन्द गिरी और उनके मित्र पुलिन बिहारी बोस के निवास पर जाते और वहां सत्संग आदि किया करते थे. 

पुलिन बिहारी दास का 17 अगस्त सन 1949 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में निधन हुआ. आज वीरता के उन शक्तिपुंज को उनकी जयंती पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है..

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