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धर्म शुद्धि : हिंदुत्व और हिंदुस्थान है, इस्लामिक कुचक्रो का कब्रिस्तान...

हर लड़ाई हारी, कुचक्र फिर भी जारी, खुरासान और गज़वा ए हिन्द है इस्लामियत का असली चेहरा

रजत मिश्र, उत्तर प्रदेश, ट्विटर- @rajatkmishra1
  • May 23 2020 5:21PM
भारतीय उप महाद्वीप में इस्लाम के प्रसार में हिंदुत्व सबसे बड़ी बाधा है। इतिहास गवाह है कि इस्लाम ने अपनी इस बाधा को रास्ते से हटाने के लिए हमेशा ही कुचक्र रचे हैं। इसी नापाक कुचक्र ने हिंदुस्थान को काटकर इस्लामी पाकिस्तान बना डाला, फिर भी हिंदुत्व के खिलाफ इन विधर्मियों के मन की कालिख न मिट सकी।

कभी आईएसएस अपने इस्लामी राष्ट्र का ख्वाबी नक्शा पेश करता है, जिसमें भारत को खुरासान की जद में पेश करता है, तो कभी अरब और उसके गुलाम देश पाकिस्तान अपनी गज़वा ए हिन्द का ख्याली पुलाव परोसते हुए हिंदुत्व और हिंदुस्थान पर शासन करने का खाका खीचते हैं। जाहिर बात यह है कि इनके मंसूबे तभी चकनाचूर होते हैं जब हकीकत के विशाल व महान धर्म हिंदुत्व, औऱ हिंदुस्तान से टकराते हैं। राष्ट्र के रूप में हिंदुस्थान अगर इनकी राह का रोड़ा है तो धर्म के रूप में हिंदुत्व इनके नापाक मंसूबों का कब्रिस्तान साबित होता है।

सनातन संस्कृति को दूषित करने का नया कुचक्र - 

हम सब ठीक से वाकिफ हैं कि कश्मीर में कैसे इन इस्लामी नर पिशाचों ने निर्दोष कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित कर उन्हें हिंदुस्तान में ही शरणार्थी बना डाला। अब इन विधर्मियों ने हिंदुत्व को कलंकित करने और इस्लामियत को महिमा मंडित करने के लिए एक नया कुचक्र रचना शुरू कर दिया है। इस कुचक्र में इस्लामी देश पाकिस्तान, अरब देशों का पेट्रो डॉलर और हिंदुत्व के कुछ अज्ञानी, लालची कथा वाचक शामिल हैं। ये वह कथा वाचक हैं जो कि धर्म से ज्यादा धन को महत्व देते हैं। इसी धन की चाह में वह अपने धर्म को भूलकर इस्लामियत का प्रचार कर रहे हैं। ताकि हिंदुत्व पर इस्लामियत को थोपा जा सके।
 
कथा वाचको को इस्लामचार्य बनाने के पीछे मकसद-

कथाएं हिंदुत्व का सबसे मजबूत आधार स्तंभ हैं। ये कथाओं और कथावाचकों का ही प्रभाव था कि अनेंक अत्याचारी मुगल शासकों के अत्याचार के बाद भी हिंदुत्व का अस्तित्व आज भी कायम है। अन्यथा हिंदुत्व कब का अपना अस्तित्व खो चुका होता। अब इसी आधार पर चोट करने के लिए इन हिंदुत्व विरोधी शक्तियों ने तथाकथित कथा वाचकों को अपना मोहरा बना लिया है। धर्म विरोधियों के इस कुचक्र से हम इतना विचलित नहीं है जितना कि अपने ही कुछ धर्माचार्यों के जाने अनजाने किये जाने वाले कृत्य से शर्मसार हैं।

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