वक्ताओं की ताकत भाषा,
लेखक का अभिमान हैं भाषा,
भाषाओं के शीर्ष पर बैठी,
मेरी अपनी हिंदी भाषा।
हिंदी दिवस यानी वो दिन जब हिन्दुस्तान अपनी भाषा यानी "हिंदी" का जश्न मनाता है। लेकिन फिर कभी कभी ये सवाल भी उठता है कि क्या हिंदी सच में भारत की भाषा है या नहीं ? क्या हम हिंदी को जो सम्मान, जो स्नेह उसे मिलना चाहिए वो दे पाए है या उसे प्रदान करने में असमर्थ हो गए है। कहीं पाश्चात्य दिनचर्या या पाश्चात्य "स्टाइल" से हम इतना प्रेरित हो गए की अपनी "भाषा", अपनी "संस्कृति" से कोसो दूर निकलते जा रहे है.... आधुनिकीकरण का मतलब अपनी भाषा या अपनी संस्कृति को भूल कर आगे बढ़ना नहीं, बल्कि उसको साथ लेकर, उसे अपना गौरव बनाकर चलना है।
देश (India) में हिंदी दिवस (Hindi Diwas) को लेकर कई तरह की बातें की जाती हैं. कई लोग इसे मनाने के औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर देते हैं तो कुछ लोग हिंदी को उसका यथोचित सम्मान दिलाने के लिए हिंदी दिवस को एक अवसर के रूप में देखते हैं. वही एक दलील यह भी दी जाती है कि एक भाषा के रूप में ही हिंदी इतनी संपन्न और समृद्ध कि उसे पहचानने और समझने के लिए हिदीं को केवल दिवस, सप्ताह या पखवाड़े के तौर पर मनाना काफी नहीं होगा.
आज़ाद "हिन्द" की तरह आज़ाद "हिंदी" का भी इतिहास बहुत पुराना।
साल 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो देश के सामने राजभाषा को लेकर एक सवाल खड़ा हो गया है. क्योंकि भारत विविधताओं का देश है, यहां सैकड़ों भाषा और बोलियां बोली जाती है. राष्ट्रभाषा के रूप में किस भाषा को चुना जाए ये बड़ा प्रश्न था. काफी विचार के बाद हिंदी और अंग्रेजी को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया.
14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से निर्णय लिया कि हिंदी भारत की राजभाषा होगी. प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व देखते हुए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने का ऐलान किया था. पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया था.
हिंदी ने देखे कई दौर.....
पिछले 72 सालों में हिंदी दिवस ने कई दौर देखे हैं. आजादी के बाद हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करवाने के लिए बहुत प्रयास किए गए. साल 1965 को भाषा संशोधन विधेयक में अंग्रेजी को अनिवार्य कर दिया गया. इसके बाद हिंदी और अंग्रेजी साथ साथ चलते दिखे. 1990 के दशक में उदारी करण और अंतरराष्ट्रीयकरण के दौर में अंग्रेजी के हावी होने की बात सुर्खियों में बनी रही. जानिए सदगुरू से आसानी से क्यों जुड़ जाते हैं युवा 21वीं सदी में हिंदी अंग्रेजी पर बहस तो जारी रही. कई बार इस बात की आशंकाएं जताई गई कि अंग्रेजी हिंदी को खा जाएगी, लेकिन अंग्रेजी ने हिंदी ने भी अपने पैर पसारे. आज इंटरनेट, मोबाइल पर हिंदी की खासी उपस्थिति है, अंतरराष्ट्रीय बाजार की नजर इस भाषा की संभावनाओं पर है. भारत का इतिहास, हिंदी साहित्य के साथ पौराणिक साहित्य आदि हिंदी में उपलब्ध हैं. आज हिंदी पहले से प्रासंगिक होने के साथ ज्यादा प्रभावी होती दिख रही है.