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प्लाज़्मा थेरेपी नही है इतनी आसान.. प्लाज्मा से कोरोना संक्रमितों का कैसे होता है इलाज पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट...

कोरोना से ठीक हुए मरीज के प्लाज्मा और आम इंसान के प्लाज्मा में फर्क ये होता है कि जब मरीज कोरोना से ठीक हो जाता है तो उसमें एंटीबॉडी बनते हैं. यही एंटीबॉडी दूसरे कोरोना संक्रमित के काम आते हैं, जो वायरस को नष्ट करते हैं.

रजत. के. मिश्र, Twitter- rajatkmishra1
  • Dec 18 2020 8:37PM

इनपुट-अखिल तिवारी

कोरोना से ठीक हुए मरीज के प्लाज्मा और आम इंसान के प्लाज्मा में फर्क ये होता है कि जब मरीज कोरोना से ठीक हो जाता है तो उसमें एंटीबॉडी बनते हैं. यही एंटीबॉडी दूसरे कोरोना संक्रमित के काम आते हैं, जो वायरस को नष्ट करते हैं.

मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके बेहतर रिजल्ट भी देखने को मिल रहे हैं. प्लाज्मा थेरेपी को एक रेस्क्यू ट्रीटमेंट के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में ये समझना भी जरूरी है कि प्लाज्मा क्या है, प्लाज्मा थेरेपी क्या है, कोरोना से ठीक हुए मरीज कैसे प्लाज्मा देते हैं और कोरोना वायरस मरीज को ठीक करने के लिए कैसे इसका इस्तेमाल किया जाता है. इस मसले पर सुदर्शन न्यूज़ से खास बात-चीत में लखनऊ के केजीएमयू की ब्लड बैंक प्रभारी डॉक्टर तूलिका चंद्रा ने बताया, ''ब्लड में तीन कंपोनेंट्स होते हैं. रेड ब्लड सेल्स (लाल रक्त कोशिका), प्लेटलेट्स और प्लाज्मा. पूरे शरीर के ब्लड का 55 फीसदी प्लाज्मा होता है. ब्लड में जो ऊपरी पीला तरल पदार्थ होता है, वो प्लाज्मा होता है. ये हर इंसान के अंदर पाया जाता है.

जब कोरोना संक्रमित रहे शख्स से ब्लड लिया जाता है तो मशीन से फिल्टर कर ब्लड से प्लाज्मा, रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स को अलग कर लिया जाता है. रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स उसी व्यक्ति के शरीर में वापस डाल दिया जाता है, जिसने प्लाज्मा दान किया और प्लाज्मा स्टोर कर लिया जाता है.''

कैसे लिया जाता है प्लाज्मा?

जिस भी मरीज की कोरोना रिपोर्ट पॉजटिव और ट्रीटमेंट के बाद निगेटिव हो जाये तो उसे पूरी प्रकिया के बारे में समझाया जाता है. फिर पेसेंट के सहमति से डोनर को बताया जाता है कि आप जनहित में ऐसा कर रहे हैं ताकि दूसरे दूसरे लोगों की जान बचाई जा सके. फिर डोनर की मेडिकल हिस्ट्री चेक किया जाता है  लिस्ट में वो तमाम मापदंड होते हैं, जिन्हें पूरा करने वाला शख्स ही प्लाज्मा डोनेट कर सकता है या कर सकती है. इसके तहत डोनर की मेडिकल हिस्ट्री देखी जाती है और अगर मेडिकल हिस्ट्री के हिसाब से  फिट पाया जाता है तो उसके साथ प्लाज्मा डोनेट करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ा जाता है. प्लाज्मा डोनेट करने के लिए 18-60 साल के बीच उम्र होना, 50 किलो से ज्यादा वजन होना, प्रेग्नेंसी न होना भी जरूरी है.

डॉक्टर तूलिका के मुताबिक, ''चेक लिस्ट में फिट पाने के बाद डोनर की पल्स देखी जाती है, ब्लड प्रेशर चेक किया जाता है, पूरा एग्जामिन किया जाता है. खून की मात्रा चेक की जाती है. डोनर में हीमोग्लोबिन की मात्रा 12 से ज्यादा होना जरूरी होता है. इसके साथ ही ट्राई डॉट टेस्ट भी किया जाता है ताकि ये पता चल सके कि डोनर HIV या हेपेटाइटिस से तो पीड़ित नहीं है. इस तरह के जब सभी बेसिक टेस्ट सही पाए जाते हैं तो फिर डोनर से प्लाज्मा लिया जाता है और इस प्रक्रिया में करीब 30 मिनट लगते हैं, साथ में डॉक्टर तूलिका ने यह भी बताया कि प्लाज़्मा डोनेट करने से कोई साइड इफेक्ट्स नही होता है अफवाहों पर ध्यान देंने की जरूरत नही है।

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