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खत्म होने की कगार पर आ चुके हिंदुओं को दर्जा नही अल्पसंख्यक का... सनातनियों की कितनी अग्निपरीक्षा ?

देश के आठ राज्यो में हाशिये पर हिन्दू, अश्वनी की याचिका से बिगड़ सकता है कट्टरपंथीयो का दिमागी संतुलन

Sudarshan News
  • Oct 26 2020 6:37PM
देश में अल्पसंख्यक को लेकर हर साल बहस छिड़ती रहती है। और लगातार हिंदुस्तान के अंदर कट्टरपंथी मौलाना अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए छोटी छोटी घटना को धर्म के चश्मे से देखकर अल्पसंख्यक उत्पीड़न का आरोप लगाते हैं लेकिन भारत में 8 राज्य ऐसे भी है जहाँ हिन्दू  खुद अल्पसंख्यक  हो गए हैं ।जहा  वे लोग अपनी परंपरा का निर्वहन नही कर पाते हैं औरअल्पसंख्यक को मिलने वाले फायदे से भी वंचित  रहते है। जहा अल्पसंख्यक  लोगो की बहुतायत है वहा उन्हें अल्पसंख्यक माना जाता है। इन सब मुद्दों को लेकर देश के विभिन्न हाइकोर्ट में लंबित पड़ी याचिकाओं को शीर्ष कोर्ट में भेजनी की अपील की गयी है। इस अपील मे केंद्र की26 साल पुरानी उस अधिसूचना की संवैधानिक वैद्यता को चुनोती दी गई है।जिस अधिसूचना के तहत देश के पांच समुदायों को अल्पसंख्यक घोषित किया गया है।जिनमे इशाई मुसलमान जैनशिक बौद्ध पारसी है।

बीजेपी नेता और अधिवक्ता अश्विन कुमार उपाध्याय द्वाराद्वारा दायर याचिका में दिल्ली, मेघालय और गौहाटी हाई कोर्ट में लंबित उन मामलों के स्थानांतरण का अनुरोध किया गया है जिनमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम,1992 की धारा 2(सी) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है जिसके तहत 23 अक्टूबर, 1993 को अधिसूचना जारी की गई थी।याचिका में कहा गया कि हिंदू समुदाय उन राज्यों में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मिलने वाले फायदों से वंचित है और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को इस संदर्भ में अल्पसंख्यकों की परिभाषा पर फिर से विचार करना चाहिए।
 
संविधान के अनुच्छेद 29 30 में अल्पसंख्यक के बारे वर्णन किया गया है अनुच्छेद 30 की धारा (1)के अनुसार अल्पसंख्यक अपनी मर्जी के अनुरूप शिक्षण संस्थानों का निर्माण व धर्म के आधार पर संचालन करने का हक दिया गया है ।अनुच्छेद 30(2) में उनकी शिक्षण संस्थान को मदद देने में इस आधार पर भेदभाव नही कर सकेगी की वह संस्थान भिन्न समुदाय के संबंध से है ।29 अनुच्छेद मे अल्पसंख्यक के अधिकारों की रक्षा करता है जिसके तहत अल्पसंख्यक देश के किसी भी समुदाय को अपनी भाषा सेली व परंपरा के संरक्षण का अधिकार होगा।  इन दोनों अनुच्छेद के तहत देश की एकता अखंडता बनाये रखने के लिए अल्पसंख्यक को सुरक्षा दी गयी है । लेकिन अफसोस है कि आज तक अल्पसंख्यक की परिभाषा तय नहीं की गई है।

वर्ष 1992 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून बना। इसमें कुछ धार्मिक समुदायों के हाशिये पर होने के कारणों की पड़ताल पर बल दिया गया। इसके आधार पर मई 1993 में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग गठित हुआ। हालांकि, इस कानून में भी अल्पसंख्यक शब्द के मायने तय नहीं किए गए और संबंधित समुदायों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित करने का अधिकार केंद्र सरकार को दे दिया गया।

अधिकार मिलने के बाद केंद्र की तत्कालीन सरकार ने 1993 में 5 धर्मो को अल्पसंख्यक सूची शामिल कर दिया गया जिनमे बौद्ध  शिक ईसाई मुसलमान व पारसी को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया लेकिन सन20014 में मोदी सरकार ने जैन समुदाय को अल्पसंख्यक सूची शामिल किया गया ।अल्पसंख्यक का दर्जा पूरे देश में लागू होता है।अल्पसंख्यक आयोग ने अल्पसंख्यक वर्ग की संवैधानिक व्यख्या व सरकार की तरफ से 1993 में जारी की गयी  लेकिन इस कानून मैं आबादी का लिहाज नही रखा गया है। अगर किसी राज्य में अल्पसंख्यक बहुल  है ।भी तो भी वह  अल्पसंख्यक भी तो भी वह  अल्पसंख्यक का अधिकार का फायदा उठाता रहेगा।

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