ज्ञानवापी परिसर को लेकर कई तरीके की बाते निकल के सामने आ
रही है, जो ये प्रमाणित करती है कि हिन्दु आस्धा हिन्दु विश्वास को कुचल कर वहां
मस्जिद का निर्माण मुगल आक्रांता के द्वारा करवाया गया। अब ज्ञानवापी के मुक्ती की
बारी है। जिसके लिए समस्त सनातन एक जुट और एकता के बंधन में बंधता नजर आ रहा है।
इसी बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले को
सिविल जज से जिला जज वाराणसी को ट्रांसफर करने का आदेश दिया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, सूर्यकांत और पीएस नरसिम्हा की
पीठ ने आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के एक "वरिष्ठ और
अनुभवी" न्यायिक अधिकारी को मामले की जांच करनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि जिला जज को ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ में
दीवानी मुकदमे की सुनवाई प्राथमिकता के आधार पर तय करनी चाहिए, जैसा कि प्रबंधन समिति अंजुमन
इंतेजामिया मस्जिद वाराणसी ने मांगा था।
विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख आलोक कुमार ने दावा किया कि हिंदू
पक्ष यह साबित करने में सक्षम होगा कि पाया गया शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। उन्होंने
कहा, "हम मानते हैं कि यह शिवलिंग है क्योंकि नंदी इसे देख रहे हैं और
स्थान से पता चलता है कि यह मूल ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मुगलों ने मंदिर पर
हमला किया। हम इसे अदालत में साबित करने में सक्षम होंगे और सुप्रीम कोर्ट इस
मामले का फैसला करेगा। न्यायाधीश को स्थानीय आयुक्त की रिपोर्ट लेने के लिए अधिकृत
किया गया है और हम साबित करेंगे कि यह मूल ज्योतिर्लिंग है।"
उन्होंने कहा, "हम सुप्रीम कोर्ट से सहमत हैं
कि यह मामला जटिल है और इसके लिए एक गंभीर और अनुभवी जज की जरूरत है। कोर्ट ने कहा
है कि जिला अदालत इस पर गौर करेगी। हम सुप्रीम कोर्ट से सहमत हैं।" विहिप
प्रमुख ने कहा कि वे यह साबित करने में सक्षम होंगे कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर
पाया गया 'शिवलिंग' ज्योतिर्लिंगों में से एक है। विहिप
नेता ने आगे दावा किया कि 1991 का अधिनियम ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर लागू नहीं होगा।