छत्तीसगढ़ में आज छेरछेरा त्योहार के बहाने छत्तीसगढ़ में व्याप्त मौसमी ठंड के बीच चुनावी पारा फिर चढ़ गया है। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्यपाल के संवैधानिक कर्तव्यों पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए उनके बस्तर दौरे का तो स्वागत किया, लेकिन आदिवासियों के आरक्षण में उन्हें रोड़ा बताते हुए उनपर भाजपा के इशारों पर काम करने का गंभीर आरोप लगाने से भी गुरेज़ नहीं किया।
आज मीडिया से रायपुर में चर्चा करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि भाजपा के 15 वर्षीय कार्यकाल में जितने चर्च बने उन सबका ब्योरा उनके पास है और इसलिए भाजपा को धर्मांतरण पर बोलने का कोई हक़ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा बस्तर क्षेत्र में ज़हर घोलने का काम कर रही है। भाजपा बौखलाई हुई है।
मुख्यमंत्री के बयान को उनके पद की गरिमा के विपरीत बताते हुए भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य और वरिष्ठ आईएएस रहे गणेश शंकर मिश्रा ने समाज में हिंसा को रोग फैलनेवाला बताया है। मिश्रा ने कहा कि वे बस्तर में कलेक्टर और आयुक्त दोनों रह चुके हैं और उस नाते पूर्ण जवाबदारी से कहते हैं कि बस्तर छत्तीसगढ़ में शान्ति का टापू है।
उन्होंने कहा कि जहां एक और केंद्रीय गृह मंत्रालय की नक्सल विरोधी मुहिम रंग ला रही है और नक्सली फुटप्रिंट कम हुआ है, वहीं दूसरी और कुछ एजेंडा से प्रेरित तत्व धर्म के आधार पर मासूम आदिवासियों को बरगला के उन्हें प्रताड़ित कर रहे हैं, जिसमें सरकार की अनकही सहमति किसी से छुपी नहीं हैं।
'सुकमा एसपी के इनपुट को क्यों नकारते रहे सीएम?'
मुख्यमंत्री के रमन सिंह कार्यकाल में बनाये गए चर्चों का उल्लेख करने को हास्यास्पद बताये हुए मिश्रा ने कहा कि कोई पंथ अपने आस्था अनुरूप और देश के क़ानूनी प्रक्रिया तहत अपने आस्था का कोई केंद्र स्थापित कर रहा है तो उससे हिंसा नहीं फैलती, हिंसा फैलती है मतांतरण करवा रहे दलालों को संरक्षण देने से जिसकी गंभीरता का उल्लेख करते हुए पूर्व में सुकमा ज़िले के एसपी ने सरकार को आगाह भी किया था। लेकिन मुख्यमंत्री इस मुद्दे को ग़ैरज़रूरी मानते रहे और अंततः ऐसी अप्रिय स्थिति उत्पन्न हुई।
जीएस मिश्रा ने कहा कि चुनाव के नामपर भोले आदिवासियों के साथ छल और प्रताड़ना की दोहरी रणनीति से कांग्रेस बस्तर को साधना चाहती है तो वह कभी नहीं होगा। गैज़िम्मेदारना ढंग से सामाज में हिंसा भड़काने के बजाए भूपेश बघेल को क़ानून व्यवस्था पर ज़ोर देना चाहिए जिस्म वे शुरुआत से अब तक राज्य स्तर पर फिसड्डी साबित हुए हैं। कांग्रेस पार्टी को मंथन करना चाहिए कि वे अपनी राजनैतिक रोटी सेकने के लिए कब तक छत्तीसगढ़ में धर्म, जाती आदि के आधार पर लोगों में द्वेष पैदा करेंगे। शुचिताहीन राजनीति एक राष्ट्रीय स्तर के सबसे पुराने दल को शोभा नहीं देता।