बिहार में कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण बिहार विधानसभा चुनाव पर कोरोना ग्रहण लगने की आशंका भी बढ़ती जा रही है। बिहार में कोरोना संक्रमितो की कुल संख्या 12,525 है। अब तक कुल 2 लाख 59 हजार 277 लोगों की जांच हो चुकी है और लगातार जांच का दायरा बढ़ाया जा रहा है। इस बीच अच्छी बात ये है कि बिहार में रिकवरी रेट 76.55 प्रतिशत है जिस अच्छा माना जा सकता है। लेकिन साथ में यह भी सच है कि जैसे-जैसे जांच का दायरा बढ़ रहा है वैसे-वैसे संक्रमितों की संख्या भी बढ़ रही है। लोगों में डर घर कर रहा है। और इस डर के बीच चुनाव कराने से अधिकारी भी डरने लगे हैं। कोरोना काल में हुए विधान परिषद चुनाव में विधानसभा अध्यक्ष कोरोना के शिकार हो गए। जब विधान परिषद में जनता वोट नहीं करती इसमें केवल विधायक ही वोट करते हैं। बिहार में काफी बड़ी संख्या में अधिकारी और कर्मचारी भी संक्रमित हो रहे हैं। मुख्यमंत्री की भतीजी खुद कोरोना पाजिटिव डिटेक्ट होने के बाद एम्स में भर्ती है। पूरे मुख्यमंत्री आवास को सेनेटाइज करवाया जा रहा है। राजनीतिक पार्टियां चुनाव मोड में है वर्चुअल रैलियों का दौर जारी है कार्यकर्ताओं से डिजिटल मीटिंग की जा रही । संभव है कि बहुत जल्द फिजिकल रैलियों की अनुमति भी दे दी जाए। लेकिन विपक्ष फिलहाल मतलब कोरोना संक्रमण के दौरान चुनाव में जाने को गलत बता रहा है। वो चुनाव को टालने की मांग कर रहा है। बिहार विधानसभा में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि वो लाशों की ढेर पर चुनाव कराना चाहती है। तेजस्वी यादव यहीं नहीं रूके उन्होंने कहा कि चुनाव को आगे बढ़ा दिया जाए और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। जेडी यू नेता अफजल अब्बास ने तेजस्वी की मांग पर प्रतिक्रया देते हुए कहा कि वो चुनाव से भागना चाहती है क्योंकि उसे पता है कि परिणाम क्या होने वाले हैं। बीजेपी नेता अखिलेश सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए कह कि जो बच्चा पढ़ाई में कमजोर होता है उसे परीक्षा से डर लगता है। साथ में बीजेपी ने यह भी कहा कि चुनाव करान सरकार को काम नहीं बल्कि चुनाव आयोग का काम है और आरजेडी को चुनाव आयोग से यह मांग करनी चाहिए। बिहार विधानसभा का कार्यकाल 29 नवंबर को खत्म होने वाला है। संविधान के मुताबिक 29 नवंबर से पहले नई सरकार का गठन हो जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो राष्ट्रपति शासन लगाने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं है। जिस प्रकार से बिहार में कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है और संक्रमण के बढ़ने के साथ-साथ लोगां में डर भी घर कर रहा है उससे तो यही लगता है कि यदि चुनाव हुए भी तो वोट प्रतिशत काफी कम हो सकता है। मतदाताओं के साथ-साथ चुनाव कराने वाले बिहार के अधिकारी भी कोरोना संक्रमण काल में चुनाव को टालने के पक्ष में हैं लेकिन सरकार की मंशा को देखते हुए कुछ भी खुल कर बोलने से डर रहे हैं। चुनाव में बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों की भी आवश्यकता होती है । मतदान के दौरान कोरोना के गाइडलाइन्स का पालन करना या पालन करवाना दोनों की दुरूह कार्य है। ऐसे में यदि चुनाव करवाने है तो सरकार और चुनाव आयोग को मतदान के दूसरे उपायों पर भी विचार करना चाहिए। ताकि यदि चुनाव अवश्यमभावी हुआ तो कोरोना गाईडलाइंस के अनुरूप चुनाव संपन्न करावाया जा सके , जनता और अधिकारी दोनों की भयमुक्त माहौल में मतदान में भाग ले सके। डब्ल्युएचओ ने जिस तरह से कोरोना के हवा से भी फैलने की बात की है। उससे भी लोगां में भय व्याप्त हो गया है । बिहार में चुनाव को लेकर जिस तरह की हलचल और उत्साहा मतदाताओं और प्रत्याशियों में देखी जाती रही है वैसा उत्साह इस बार देखने को नहीं मिल रहा है। ऐसे में चुनाव को टालना ही बेहतर जान परता है।