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"तीन तलाक, हलाला प्रथा.. लेकिन तेरहवीं भोज ही कुप्रथा" - नेहरू की शिक्षाओ पर ज्यों की त्यों आगे बढते हुए कांग्रेस

असल मे ये कहना गलत नहीं होगा कि इतिहास खुद को ही दोहरा रहा है.

Rahul Pandey
  • Jul 8 2020 10:51PM

बहुत ज्यादा समय पीछे जाकर झांकने की जरूरत नहीं है यह बात उस समय की है जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पहली सरकार ने तीन तलाक जैसी कुप्रथा के खिलाफ कानून पारित किया था। तब इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ने वाले का नाम बताने की शायद जरूरत ना हो क्योंकि वह तब मीडिया और सोशल मीडिया दोनों की सुर्खियां बना था। किसी भी हाल में यह मानने के लिए उस समय कांग्रेस पार्टी तैयार नहीं थी कि तीन तलाक हलाला जैसे कायदे कानून कुप्रथा की श्रेणी में आते हैं।

राजीव गांधी के समय में किस प्रकार से ऐसे ही एक मामले में कानून बदला गया था इसे भी शायद बताने की जरूरत ना हो। उस समय सड़क से लेकर संसद तक जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक आदि बताकर चोर और कोहराम मचाया गया था उसके वीडियो आज भी आसानी से उपलब्ध हो जाएंगे। उस समय यह बताया गया था कि तीन तलाक हलाला जैसे विषय मुसलमानों के आंतरिक व मजहबी मामले हैं जिस पर कोई भी निर्णय लेने का हक मुसलमानों के मजहबी गुरुओं को है।

लेकिन अचानक ही राजस्थान में कानून पारित होता है जिसमें यह आदेश होता है कि यदि मृत्यु भोज अर्थात हिंदुओं के यहां किसी की मृत्यु के बाद 13 दिन बाद आयोजित होने वाली त्रयोदशी संस्कार के अंग भोजन अर्थात भोज को कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया जाता है। बिना विलंब किए इसको कांग्रेस शासित गहलोत सरकार ने कुप्रथा घोषित कर दिया और इसको पैसे की जबरदस्त बर्बादी माना। धर्मनिरपेक्ष शक्तियां अचानक ही खुशी से उछल पड़ी और वामपंथियों को तो जैसे कोई छिपी धरोहर मिल गई। तथाकथित सेकुलरिज्म के ठेकेदारों ने इस पर हर्ष जताया। इस निर्णय को लेने में किसी भी प्रकार से हिंदुओं की किसी साधु संत महंत या महात्मा की सलाह न ली गई ना ही राय। सबसे खास बात यह है कि इस मामले में धर्माचार्य भी चुप रहे और उन्होंने राजस्थान सरकार के इस फैसले को अपने धार्मिक मामलों के आंतरिक अतिक्रमण की संज्ञा नहीं दी।

गहलोत सरकार इसको धार्मिक मामला नहीं बल्कि अब आपराधिक मामला घोषित कर चुकी है जिसमें साफ-साफ कहा गया है कि यदि कोई भी मृत्युभोज कराता मिला तो न  सिर्फ खिलाने वाले बल्कि बल्कि उसमें खाने वालों पर भी सख्त से सख्त कार्यवाही की जाएगी और इतना ही नहीं उस क्षेत्र के प्रधान व पटवारियों पर भी कड़ा एक्शन लिया जाएगा। कुल मिलाकर के अचानक ना कोई धार्मिक मामले की दुहाई दे रहा और ना ही किसी प्रकार के मजहबी विषयों की। संभवत इसलिए क्योंकि ये मामला हिंदुओं से जुड़ा हुआ था।

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