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हिंदुओं का महापर्व छठ

जब विश्व की सभ्यता की स्त्रियां अपने संपूर्ण वैभव के साथ सज धज कर अपने आंचल में फल लेकर निकलती है तो लगता है जैसे संस्कृति स्वयं समय को चुनौती देती हुई कह रही हो देखो ! तुम्हारे असंख्य झंझावातो को सहन करने के बाद भी हमारा वैभव कम नहीं हुआ है । हम सनातन हैं हम भारत हैं, हम तब से हैं जब से तुम हो , और जब तक तुम रहोगे तब तक हम भी रहेंगे।

राघवेन्द्र कुमार मिश्र
  • Nov 10 2021 12:20AM

जब घुटने भर जल में खड़ी वृत्ति की सिपुली में बालक सूर्य की किरणें उतरती है तो लगता है जैसे स्वयं सूर्य बालक बनकर उसकी गोद में खेलने उतर  रहे हैं । स्त्री का सबसे भव्य सबसे वैभवशाली स्वरूप यही है । इस धारा को भारत माता कहने वाले बुजुर्ग के मन में स्त्री का यही स्वरूप रहा होगा कभी ध्यान से देखिएगा छठ के दिन जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ दे रही किसी स्त्री को आपके मन में मोह नहीं श्रद्धा उपजेगी।

छठ वह  प्राचीन पर्व है जिसमें राजा और रंक एक घाट पर माथा टेक ते हैं और एक बराबर आशीर्वाद पाते हैं।  धन और पद का  लोभ मनुष्य को मनुष्य से दूर करता है पर धर्म उन्हें साथ लाता है।

अपने धर्म के साथ होने का सबसे बड़ा लाभ यह होता है  कि आप अपने समस्त पुरखों के आशीर्वाद की छाया में होते हैं छठ के दिन नाक से माथे तक सिंदूर लगाकर घाट पर बैठी स्त्री अपने हजारों पीढ़ी की अजिया सास ननियासास की छाया में होती है। बल्कि वह उन्हीं का स्वरूप होती है ।वह सामान्य स्त्री सी नहीं अन्नपूर्णा से दिखाएं देती है । ध्यान से देखिए आपको कौशल्या दिखेगी उनमें मैत्रेई दिखेंगे सावित्री दिखेंगी उनमें पद्मावती दिखेंगी उनमें लक्ष्मीबाई दिखेंगी उनमें भारत माता दिखेंगी इसमें कोई संदेह नहीं कि उनके आंचल में बंधकर ही सभ्यता अगले हजारों वर्षों का सफर तय कर लेगी।

 छठ डूबते सूर्य की आराधना का पर्व है।  डूबता सूर्य इतिहास होता है ,और कोई भी सभ्यता तभी दीर्घ जीवी होती है , जब वह अपने इतिहास को पूजे ।और इतिहास के समस्त योद्धाओं को पूजे। और इतिहास में अपने विरुद्ध हुए सारे आक्रमणों और षड्यंत्र को याद रखें। 

छठ उगते सूर्य की आराधना का पर्व है उगता सूर्य भविष्य होता है और किसी भी सभ्यता के यशस्वी होने के लिए आवश्यक है तो वह अपने भविष्य को पूजा जैसी श्रद्धा और निष्ठा से सवारे हमारी आज की पीढ़ी यही करने में चूक रही है पर उसे यह करना ही होगा यही छठ व्रत का मूल भाव है।

मैं खुश होता हूं घाट जाती स्त्रियों को देखकर मैं खुश होता हूं उनके लिए राह बुहारते पुरुषों को देखकर मैं खुश होता हूं उत्साह से लबरेज बच्चों को देखकर सच पूछिए तो यह मेरी खुशी नहीं मेरी मिट्टी मेरे देश मेरी सभ्यता की खुशी है।

मेरे देश की माताओं कल जब आदित्य आपकी सिपुली में उतरें तो उनसे कहिए गा की इस देश , इस संस्कृति पर अपनी कृपा बनाए रखें । ताकि हजारों वर्ष बाद भी हमारी पुत्रवधुयें यूं ही सज धज कर गंगा के जल में खड़ी हो कर कहे --

उग हो सुरुज देव ,भइले अरघ  के वेर ।

जय हिंद जय भारत जय गंगा माता।

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