हमारे भारत देश में अनूठी आस्था का अपना एक अलग महत्व है। ऐसे ही आस्था की झलक दिखाई देती है छत्तीसगढ़ के धमतरी में।
धमतरी के अंगारमोती मंदिर में अगर निसंतान महिला को बैगा अपने पैरों से कुचलते हुए आगे बढ़े तो, महिला को संतान की प्राप्ति होती है। हर साल दीवाली के बाद पहले शुक्रवार को इसी मन्नत के साथ दूरदराज से बड़ी संख्या में महिलाएं आती हैं। और अपनी मनोकामना के लिए इस आयोजन में सम्मिलित होती हैं।
आज संतान के लिये आधुनिकतम टेस्ट ट्यूब और आईवीएफ तकनीक के दौर में ये अनूठी लेकिन सिद्ध मान्यता हैरान और आस्था के प्रति विश्वास पैदा करने वाली है।
आपको बता दें छत्तीसगढ़ का धमतरी जिला अपने बांधो के लिये जाना जाता है, लेकिन जब गंगरेल बांध नहीं बना था, तो वहां बसे गांवो में शक्ति स्वरूपा मां अंगारमोती इस इलाके की अधिष्ठात्री देवी थीं। बांध बनने के बाद वो तमाम गांव डूब में चले गए, लेकिन माता के भक्तों ने अंगारमोती की गंगरेल के तट पर फिर से स्थापना कर दी, जहां साल भर भक्त दर्शन या मन्नत करने आते हैं।
पूरे वर्ष का यह सबसे विशेष दिन
पूरे साल में एक दिन सबसे विशेष होता है। दीपावली पर्व के बाद का पहला शुक्रवार, इस दिन यहां भव्य मड़ई लगता है। सैकड़ों, हजारों लोग आते हैं। आदिवासी परंपराओ के साथ पूजा और रीतियां निभाई जाती है और इसी दिन यहां बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं आती हैं, जिनका गोद सूना है, संतान नहीं है, कोई मां कहने वाला नहीं है। ऐसी महिलाओं को मां का दर्जा अंगारमोती मां दिलवाती हैं।
औलाद की लालसा लिये पहुंची महिलाएं मंदिर को सामने हाथ में नारियल, अगरबत्ती, नींबू लिये कतार में खड़ी होती हैं। इन्हें इंतजार रहता है कि कब मुख्य बैगा मंदिर के लिये आएगा। दूसरी तरफ वो तमाम बैगा होते हैं, जिन पर मां अंगारमोती सवार होती हैं, वो झूमते झूपते थोड़े बेसुध से मंदिर की तरफ बढ़ते हैं। चारों तरफ ढोल नगाड़ों की गूंज रहती है। बैगाओ को आते देख कतार में खड़ी सारी महिलाएं पेट के बल दंडवत लेट जाती हैं और सारे बैगा उनके ऊपर से गुजरते हैं।
मान्यता है कि जिस भी महिला के ऊपर बैगा का पैर पड़ता है, उसे संतान के रूप में माता अंगार मोती का आशीर्वाद मिलता है, उनकी गोद भी हरी हो जाती है, उनके आंगन में भी किलकारी गूंजती है। कहते हैं कि जब तक स्त्री मां न बन जाए, वो अधूरी रहती है और पूर्ण स्त्री का सुख पाने महिलाएं सब कुछ सहने को तैयार रहती है।
इस पुरातन अनोखी परंपरा की शुरूआत कब हुई कोई नहीं जानता, लेकिन महिलाओं की आस्था उन्हें इस मेले में मंदिर तक खींच ले आती है।