इनका नाम लेना व लिखना झोलाछाप इतिहासकार और नकली कलमकारों को पसंद नही था .. मुख्य कारण यह था कि ये लड़े थे क्रूर, लुटेरे, हत्यारे दिलेर खान नामक विधर्मी से, इसलिए इनकी तारीफ करने से उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ जाती.. यद्दपि वो वामपंथी मानसिकता आज पूरी तरह से सुदर्शन न्यूज़ व् अन्य धर्मरक्षको के प्रयासों से पूरी तरह से बेनकाब हो चुकी है जो चरमपंथी उन्माद की संरक्षक है.
उसी सेक्युलरिज़्म के नकली आवरण से बने सिद्धांत के चलते वो आज भी राष्ट्र के सैनिको की गौरवगाथा लिखने के बजाय पत्थरबाज़ों की गोद मे बैठ कर अपनी बिकी कलम से उन नापाक पत्थरबाजों की मासूमियत बता रहे हैं.. ये घटना तब की है जब हत्यारे, लुटेरे दिलेर खान द्वारा संचालित मुगल सेना ने पुरन्दर किले को घेर लिया।
वह निकटवर्ती गाँवों में लूटपाट कर आतंक फैलाने लगी। पुरन्दर किला दो चोटियों पर बना था। मुख्य किला 2,500 फुट ऊँची चोटी पर था, जबकि 2,100 फुट वाली चोटी पर वज्रगढ़ बना था। जब कई दिन के बाद भी मुगलों को किले को हथियाने में सफलता नहीं मिली, तो उन्होंने वज्रगढ़ की ओर से तोपें चढ़ानी प्रारम्भ कर दीं।
मराठा वीरों ने कई बार उन्हें पीछे धकेला; पर अन्ततः मुगल वहाँ तोप चढ़ाने में सफल हो गये। इस युद्ध में हजारों मराठा सैनिक बलिदान हो गये. पुरन्दर किले में मराठा सेना का नेतृत्व मुरारबाजी देशपाण्डे कर रहे थे। उनके पास 6,000 सैनिक थे, जबकि मुगल सेना 10,000 की संख्या में थी और फिर उनके पास तोपें भी थीं।
अधिकांश हिन्दू सैनिक मारे जा चुके थे। शिवाजी ने समाचार पाते ही नेताजी पालकर को किले में गोला-बारूद पहुँचाने को कहा। उन्होंने पिछले भाग में हल्ला बोलकर इस काम में सफलता पाई; पर वे स्वयं किले में नहीं पहुँच सके। इससे किले पर दबाव तो कुछ कम हुआ; पर किला अब भी पूरी तरह असुरक्षित था.
किले के मराठा सैनिकों को अब आशा की कोई किरण नजर नहीं आ रही थी। मुरारबाजी को भी कुछ सूझ नहीं रहा था। अन्ततः उन्होंने आत्माहुति का मार्ग अपनाते हुए निर्णायक युद्ध लड़ने का निर्णय लिया। किले का मुख्य द्वार खोल दिया गया। बचे हुए 700 सैनिक हाथ में तलवार लेकर मुगलों पर टूट पड़े। अधर्मी मुगलों उस समय हिन्दू वीरों के रूप में साक्षात अपनी मृत्यु दिख रही थी.
इस आत्मबलिदानी दल का नेतृत्व स्वयं मुरारबाजी कर रहे थे। उनके पीछे 200 घुड़सवार सैनिक भी थे। भयानक मारकाट प्रारम्भ हो गयी. यह ऐतिहासिक युद्ध 22 मई, 1665 को हुआ था। मुरारबाजी ने जीवित रहते मुगलों को किले में घुसने नहीं दिया। दुनिया भर के तमाम अन्य देशों की युद्धरत सेनायें भी हतप्रभ थीं हिन्दू मराठा वीरों के इस पराक्रम से और ये युद्ध उनके लिए प्रेरणा बन गया.
ऐसे वीरों के बल पर ही छत्रपति शिवाजी क्रूर विदेशी और विधर्मी मुगल शासन की जड़ें हिलाकर हिन्दू साम्राज्य’ की स्थापना कर सके। देश भर के तमाम हिस्सों में हमलावर आक्रान्ताओं के चमचमाते मकबरे स्वतः दिख जायेंगे परन्तु ऐसे वीरों के स्मारक खोजने में शायद महीनो लग जाएँ तब जा कर उनके अंश मात्र के दर्शन हो पायें .
यद्दपि इन वीरों की स्मृतियों को सहेज कर न रखने का खामियाजा आज राष्ट्रभक्त और धर्मरक्षक समाज को कहीं न कहीं मजहबी उन्माद की तपिश झेल कर भुगतना पड़ रहा है.. लेकिन जब जागो तब ही सबेरा की एक कहावत के अनुसार यदि अभी ये और इसी समय से इसका निश्चय कर लिया जाय तो बहुत कुछ बदला जा सकता है.
आज उस दिन विशेष पर अप्रितम वीरता के उन चरम बिंदु मुराबाजी देशपाण्डे महान जी को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन और वन्दन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प दोहराता है ..मुरारबाजी देशपाण्डे अमर रहें …