1 सितम्बर – कारगिल से घुसपैठियों को खदेड़ते हुए आज ही बलिदान हुए थे योद्धा कृष्ण कुमार यादव.. अंतिम सांस लेने से पहले मारी थी अंतिम गोली इस्लामिक आंतकियो को
इनके नाम से आज भी गौरवान्वित होने वाले गाँव का नाम सातडिया (सिंघाना) है जहाँ आज भी बच्चे बच्चे की जुबान पर सैनिक कृष्ण कुमार यादव का नाम है.
आज से ठीक 19 साल पहले भारतीय सेना ने कारगिल में जेहादी व मज़हबी विचारधारा के पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़कर भारतीय जमीन से बाहर कर दिया था, जिसे हर वर्ष विजयदिवस के रूप में मनाया जाता है । ऑपरेशन विजय नाम के इस मिशन में भारत के सैकड़ों वीर सपूतों ने सीमा की रक्षा करते हुए अपनी जानें गंवाई थी । आज ही दिन देश के जांबाज सैनिकों ने पाकिस्तान को परास्त करके करगिल पर तिरंगा लहराया था ।
इस युद्ध में लगभग 527 जवान वीरगति को प्राप्त हुए तथा 1363 जवान घायल हुए ! ये युद्ध संसार के सबसे दुर्गम इलाके में लड़ा गया था जिसमे शत्रु ऊपर था और रक्षक नीचे. उन्ही तमाम ज्ञात अज्ञात बलिदानियों में से एक थे आज ही के दिन अमरता को प्राप्त करने वाले वीर योद्धा कृष्ण कुमार यादव. ये योद्धा वीरभूमि राजस्थान के झुंझुनूं जिले के रहने वाले थे .
इनके नाम से आज भी गौरवान्वित होने वाले गाँव का नाम सातडिया (सिंघाना) है जहाँ आज भी बच्चे बच्चे की जुबान पर सैनिक कृष्ण कुमार यादव का नाम है. इनकी वीरता की कहानी बच्चो को सुनाई जाती है जो कारगिल में चट्टान की ओट में छिपे पाकिस्तानी घुसपैठियों से आमने सामने का युद्ध करते हुए आज ही के दिन अर्थात 1 सितम्बर 1999 को सदा सदा के लिए भारत भूमि में अमर हो गये थे ..
इस वीर बलिदानी का जन्म 1 दिसम्बर 1974 को हुआ था जो अपनी देशभक्ति की भावना से सेना में किसी भी हाल में जाने के लिए आतुर थे . बचपन से ही इन्हें देश के खिलाफ कुछ कट्टरपंथियों द्वारा रची जा रही साजिश का आभास हो गया था और उसको ही निष्फल करने के लिए इन्होने सेना में जाने की तमाम तैयारियां करनी शुरू कर दी थी . अपने तमाम प्रयासों के बाद आख़िरकार इन्हें सफलता 12 अगस्त 1993 को मिली और कृष्ण कुमार यादव भारत की गौरवशाली सेना में भर्ती हुए थे.
सेना में ये 13 कुमाऊ रेजिमेंट के सदस्य बने जो कारगिल से पहले भी देश के लिए बलिदान देती आई है. आखिरकार कारगिल के रजागंला तुरर्तक सब सेक्टर हनिब में तैनाती के आक्रान्ताओं को भारत की भूमि से पीछे धकेलते हुए ये योद्धा सदा सदा के लिए वीरगति को प्राप्त हुआ . अपनी अंतिम सांस और अंतिम गोली तक दुश्मनों से लड़ता ये वीर बलिदानी अपनी बटालियन के लिए बन गया था एक प्रेरणा का स्रोत ..
बलिदानी के परिवार में कृष्ण कुमार के पिता प्रभुदयाल और माता चावली देवी गांव में ही खेतीबाड़ी का कार्य करते हैं और इनकी कल्याणी पत्नी वीरांगना संतरा देवी जयपुर में रह रही हैं. इस वीर योद्धा के २ बेटे हैं जो अपनी पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन दोनों का मन सैनिक अधिकारी बन कर अपने पिता के अधूरे कार्यों को पूरा करना है . आज उस वीरता के शक्तिपुंज कृष्ण कुमार यादव को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी गौरवगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प लेता है .
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