अभी कुछ दिन पहले ही छत्तीसगढ़ के जशपुर क्षेत्र से एक गर्भवती महिला को कांधे में खाट में डालकर और हाथ में मशाल लेकर ले जाती तस्वीर ने व्यवस्था को धिक्कारा था। उस तस्वीर ने दिखाया था कि किस तरह से छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में अभी भी लोग सड़क और पुल जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं।
एक बार फिर व्यवस्था की पोल खोलने की तस्वीर सामने आई है, छत्तीसगढ़ का शिमला कहलाने वाले मैनपाट क्षेत्र के कदनई गाँव से, जहां पर कदनई गांव में रहने वाली ससीता को प्रसव पीड़ा हुई, तो गर्भवती महिला को कच्ची सड़क की पगडंडियों पर चलते हुए लोग ठीक जशपुर की घटना की तरह ही ससीता को झेलगी के सहारे ढोकर ले कर गए और बड़ी मुश्किल से नदी पार कराकर महतारी एक्सप्रेस के सहारे उन्हें अस्पताल भेजा गया।
ये घटना मैनपाट विकासखंड के लगभग 1000 की आबादी वाले गाँव कदनई की है। आपको बता दें कि मैनपाट के आसपास के 6 से ज्यादा गाँव सुपलगा, करमहा, घटगांव आदि और पूरा क्षेत्र सड़क और पुल के लिए तरस रहा है। पुल और सड़क को लेकर के सियासत भी तेज होती है। हर बार चुनाव में इन्हें वादों का झुनझुना पकड़ा जाता है। लेकिन बारिश का समय आने पर इनकी जान जोखिम में डाल दी जाती है।
लोग बताते हैं की बरसात का मौसम आने पर यह बाढ़ की स्थिति बन जाती है और पुल नहीं होने की वजह से कई लोग वह कर अपनी जान भी गवां बैठे हैं। जनप्रतिनिधियों को शायद फुर्सत नहीं है और अगर फुरसत है, तो उनके पास इनकी तकलीफ को पढ़ने और उसके समाधान करने के लिए उद्देश्य नहीं है।
एक बार फिर इस वाकये ने छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में आज भी तरसती हुई व्यवस्था की सच्चाई उजागर की है। यह तस्वीरें बताती है कि किस तरह से आज भी लोग विकास से कोसों दूर हैं और लोग सरकार को कोसते नजर आते हैं।