इस भूमी
में कहीं भी किसी भी मस्जिद का नाम संस्कृत में नहीं है। तो सबसे बड़ा सवाल यही
खड़ा होता है कि ज्ञानवापी फिर क्यों संस्कृत नाम पर है? यह एक मंदिर था जिसको तुड़वा कर मस्जिद में तबदील कर दिया गया। और
इसके ऐतिहासिक तथ्य उन किताबों में आज भी दर्ज हैं, जिन्हें
मुस्लिम आक्रांतायों अपनी कट्टरता और बहादुरी दिखाने के लिए खुद दर्ज भी कराते
थे।
आपको बता दे पहले तो की औरंगजेब ने कई जगहों के नाम भी बदल दिए
है। कही मंदिर तौड़ मस्जिद बनाया है, तो कई राज्यों के नामों में परिवर्तन किया
है।ऐसे ही काशी का नाम औरंगाबाद भी कर दिया था। कथित ज्ञानवापी मस्जिद उसी के समय
की देन है। मंदिर को जल्दी-जल्दी में तोड़ने के क्रम में उसी के गुंबद को मस्जिद
के गुंबद जैसा बना दिया गया। नंदी वहीं रह गए। शिव के अरघे और शिवलिंग भी आक्रांता
नहीं तोड़ सके। 1752 में मराठा
सरदार दत्ता जी सिंधिया और मल्हार राव होलकर ने मंदिर मुक्ति का प्रयास किया, लेकिन हल नहीं निकला। 1835 में महाराजा रणजीत सिंह ने प्रयास किया तो उनकी
लड़ाई को दंगे का नाम दे दिया गया।
इसके अलावा, दो
और चीजें स्थापित तथ्य हैं, जैसे- पहला ये कि नंदी महाराज का मुख
किसी भी शिवालय में शिवलिंग की ओर रहता है। दूसरा ये कि मंदिर की दीवारों पर
देवी-देवताओं के चिह्न होते हैं और मस्जिदों पर चित्रकारी करना जायज नहीं है। अब
देखिए कि नंदी महाराज का मुंह उसी ओर है, जिस
ओर अभी यह कथित ज्ञानवापी मस्जिद है। इस कथित मस्जिद पर शृंगार गौरी, हनुमान जी समेत तमाम देवी-देवताओं के चित्र हैं।
इसके तहखाने में अब भी कई शिवलिंग हैं, जिन्हें
आक्रांता तोड़ नहीं सके। रंग-रोगन से कई अवशेष मिटाए गए, लेकिन वह उभर सकते हैं।