ये मामला है DPS हैदराबाद का. सवाल ये भी है कि क्या इस स्कूल पर किसी भी प्रकार का सरकारी आदेश लागू नहीं होगा ? या आम लोगों की विपत्ति काल में मजबूरी का फायदा उठाना लक्ष्य बना डाला गया है. कोरोना कहर के बीच केंद्र सरकार, राज्य सरकारें और स्वयंसेवी संस्थाएं जहां लोगों की सेवा और मदद के लिए कार्य कर रही है वहीं पब्लिक स्कूल अपना-अपना खजाना भरने में जुटी है। लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों के काम करने वाले अभिभावकां की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के कंपनियों से बार-बार आग्रह करने के बावजूद कंपनियां अपने कर्मचारियों की ना सिर्फ सैलरी कट कर रही है बल्कि उन्हें नौकरी से भी निकाल रही है। यह स्थिति कमोबेश पूरे देश में है। इस महामारी के संकट के बीच स्कूलों के फीस बढ़ाने का फैसला कहीं से भी तर्कसंगत नहीं दिखता।
स्कूल पिछले तीन महीनों से बंद है और लॉकडाउन खुलने के तत्काल बाद भी इसके खुलने के आसार कम ही है। डीपीएस जैसे बड़े ब्रांड ना सिर्फ फीस वसूली के लिए रिमाइंडर भेज रहे हैं बल्कि फीस बढ़ोतरी के साथ वसूली के लिए रिमाइंडर भी भेज रहे हैं। इतना ही नहीं बढ़ी हुई फीस के साथ-साथ स्कूल की तरफ से बस का किराया भी मांगा जा रहा है जबकि सभी को पता है कि तीन महीनों से स्कूल बंद है और यह कब खुलेगा ये किसी को पता नहीं है। डीपीएस हैदराबाद के सभी ब्रांच ब्रांच से अभिभावकों को लगातार फीस बढ़ोतरी के लिए रिमाइंडर भेजा जा रहा है। परेशान अभिभावक कोर्ट में जाने की तैयारी भी कर रहे हैं।
बिहार और दिल्ली सरकार ने अपने यहां के निजी स्कूल प्रबंधन से फीस बढ़ोतरी और वसूली पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। लेकिन इन निर्देशों का पालन होता नहीं दिख रहा है। केंद्र सरकार और सीबीएसई के हस्तक्षेप से कुछ बात जरूर बन सकती है लेकिन असल फैसला तो स्कूल प्रबंधन को ही लेना है। स्कूल प्रबंधन से पेरेंट्स एसोशिएशन ने इस बावत बात की है लेकिन अभी तक कहीं से भी कोई निर्णायक फैसला सामने नहीं ंआया है। कोरोना महामारी के दौरान स्कूल प्रबंधन के इस क्रूर रवैये की चौतरफा निंदा हो रही है। लेकिन स्कूल प्रशासन के कानो पर जूं तक नहीं रेंग रहा है। अब अभिभावकों की उम्मीद प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप पर टिकी है।