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एक "प्यादे" से जरायम की दुनिया का "मुख्तार" बनने की दिलचस्प कहानी...

जरायम की दुनिया का एक साधारण अपराधी मुख्तार अंसारी कैसे बना आतंक का दूसरा नाम... जानिए मुख्तार के गैंगेस्टर बनने की पूरी कहानी...

रजत मिश्र, उत्तर प्रदेश , Twitter: rajatkmishra1
  • Aug 29 2020 4:16PM

मुख्तार अंसारी... अपराध की दुनिया का एक ऐसा नाम जो दहशत का ही दूसरा नाम है। ये नाम रातों रात अपराध की दुनिया का मुख्तार नहीं बना। 1970 में यह नाम एक प्यादे से ज्यादा कुछ नही था, जब मुख्तार अंसारी पूर्वांचल के एक छोटे से बाहुबली मक़नू सिंह का शागिर्द हुआ करता था। मक़नू और साहिब सिंह गैंग में तनातनी जग जाहिर थी। आज का कुख्यात दूसरा बाहुबली ब्रजेश साहिब सिंह गैंग का शागिर्द था।

कुछ सालों बाद दोनों (मुख्तार और ब्रजेश) अपने अपने आकाओं की शागिर्दी को दरकिनार कर अपना खुद का वजूद बनाने के लिए काम करने लगे। अपना वजूद कायम करने के लिए दोनों गैंगों में आये दिन गैंगवार होने लगी। 1990 आते आते गाजीपुर और उसके आसपास के जिलों से बाहर निकलकर, अब इन दोनों बाहुबलियों की कहानियां यूपी और बिहार के सभी जिलों तक अपनी पहुच बना चुकी थी। 1995 के करीब मुख़्तार अंसारी पॉलिटिक्स में उतर आया। चार बार मऊ से विधायक बना। पहला बसपा से और आगे के दो चुनाव न सिर्फ निर्दलीय लड़ा...बल्कि जीता भी। 

मुख़्तार अंसारी की छवि ‘रॉबिनहुड’ सरीखी बन चुकी थी। लड़की की शादी के लिए पैसा चाहिए, लड़के को सरकारी नौकरी दिलानी हो या कोई सरकारी ऑफिस में बार-बार दौड़ा रहा हो, तो आम आदमी मुख़्तार के पास जा सकता था। और तो और लड़की की शादी में दूल्हा कतरा रहा हो तो दूल्हा उठवाने तक का काम मुख्तार से हाथ जोड़कर करवा सकता था।

मऊ, बनारस और गाजीपुर में बुनकर उद्योग के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी भारी बिजली कटौती। मुख़्तार ने इस मामले को सीरियसली लिया और कुछ ही दिनों में ये समस्या काफी हद तक सुलझ गई। मुख़्तार बड़ा क्रिमिनल तो था... मार-काट करता था, लेकिन आम आदमी का कुछ नहीं बिगाड़ता था, बल्कि बड़े पॉलिटिकल दांव-पेच के बीच उनका भला ही हो जाता था। इसी वजह से मुख्तार अंसारी की पॉलिटिकल ताकत बढ़ती गई।

अब जब मुख्तार को राजनीतिक संररक्षण हासिल हो चुका था, तब ब्रजेश को अपनी कमजोरी खलने लगी और वो सालों तक अंडरग्राउंड होकर अपनी गतिविधि चलाता रहा। ब्रजेश सिंह भी आखिर कब तक के डर से अंडर ग्राउंड रहता। वह सालों बाद जरायम की दुनिया मे खुलकर वापस आया। अब उस पर भी एक राजनीतिक शख्सियत का वरदहस्त था। और वह शख्सियत थी कृष्णानंद राय।

समय बदला... अब कृष्णानंद राय और ब्रजेश सिंह का तालमेल मुख्तार की नींद उड़ाने लगा। 2002 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इसी तालमेल ने मुख्तार और उसके भाई अफजाल को चुनाव हरा दिया। कृष्णानंद राय विधायक चुने गए, जिसमें ब्रजेश सिंह का योगदान जगजाहिर था। अब गाजीपुर-मऊ इलाके में हिंन्दू-मुस्लिम वोट बैंक बनने लगे और आए दिन सांप्रदायिक लड़ाइयां होने लगीं। ऐसे ही एक मामले में मुख़्तार गिरफ़्तार हो गया।

अब मुख्तार ब्रजेश सिंह से ज्यादा विधायक कृष्णानंद से चिढ़ा हुआ था। अब मुख्तार ने कृष्णानंद को रास्ते से हटाने की ठान चुका था। उसकी इसी सनक ने एक ऐसे कांड को अंजाम दिया, जिसकी दहशत ने मुख्तार को जरायम की दुनिया का मुख्तार घोषित कर दिया। 2005 में मुख़्तार जेल में था, जब कृष्णानंद राय को उसने खुली सड़क पर मरवा दिया। AK-47 से करीब 400 गोलियां चलीं और कृष्णानंद राय समेत सात लोग मारे गए। उन सात लाशों पर 67 गोलियों के निशान थे। दिन-दहाड़े ऐसी घटना से बीजेपी के खेमे में दहशत फैल गई। FIR दर्ज हुई, लेकिन वहां के SP ने इस मामले में कुछ भी करने से साफ इनकार कर दिया। और तो और बीजेपी के कुछ बड़े नेताओं की मांग के बावजूद सरकार CBI जांच कराने से कतरा गई। इस विभत्स घटना को मुख्तार ने मुन्ना बजरंगी उसके गुर्गों द्वारा अंजाम दिया था। वही मुन्ना बजरंगी जिसकी अभी कुछ महीने पहले जेल में हत्या हो चुकी है।

कृष्णानंद राय की हत्या के बाद ब्रजेश सिंह गाजीपुर-मऊ इलाके से फिर फ़रार हो गया। 2008 में वह ओडिशा से गिरफ़्तार कर लिया गया और कुछ समय बाद प्रगतिशील मानव समाज पार्टी का हिस्सा बन गया। 2008 में मुख़्तार अंसारी ने बसपा की ओर वापस रुख़ किया और दावा किया कि उसे अपराध के केस में फंसाया गया था। मायावती ने मुख़्तार को ‘गरीबों का मसीहा’ बताया और ज़ोर-शोर से चुनाव प्रचार शुरू हो गया।

यही वो वक्त था, जब मुख़्तार की ‘रॉबिनहुड’ इमेज पर बसपा ने बहुत ज़ोर दिया। 2009 के लोक सभा चुनाव में मुख़्तार बनारस से खड़ा हुआ और बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी से हार गया। ताज़्ज़ुब की बात तो यह थी कि मुख़्तार ने ये पूरा चुनाव जेल के अंदर से ही संचालित किया। मुख़्तार जब गाजीपुर की जेल में था तभी एक दिन पुलिस रेड में पता चला कि उसकी ज़िंदगी बाहर से भी ज़्यादा आलीशान और आरामदायक चल रही है। अंदर फ्रिज, टीवी से लेकर खाना बनाने के बर्तन तक मौजूद थे। तब उसे मथुरा जेल में भेज दिया गया।

मुरली मनोहर के खिलाफ चुनाव लड़ने के बाद मुख्तार के हौसले सातवें आसमान पर थे। फिर जब 2014 में नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ने को तैयार थे, तब मुख्तार ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का एलान कर सबको सकते में डाल दिया था। फिर वह अपने एलान से यह कहते हुए पलट गया कि इससे वोटों का साम्प्रदायिक आधार पर बंटवारा हो जाएगा।

अब यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार है। योगी सरकार का अपराध और अपराधियों के खिलाफ रुख जगजाहिर है। यूपी सरकार जिस तरह से मुख्तार और उसके गुर्गों के खिलाफ एक्शन में दिख रही है, उसने इस गैंग की पेशानी पर दबाव कायम कर रखा है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि विकास दुबे के इनकाउंटर के बाद मुख्तार को अपने खात्मे का डर सताने लगा है। मुन्ना बजरंगी की जेल में हुई हत्या को मुख्तार समर्थक कृष्णानंद राय की हत्या का बदला समझ रहे हैं। इससे लगता है कि अब इस सरगना उसके गैंग का अस्तित्व अब समाप्ति के कगार पर है।

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