भारत की आज़ादी का ठेका कोई भी किसी बहाने से ले पर भारत की अखंडता को बचाये रखने के लिए उन वीरों ने योगदान दिया है. जिन्होंने कभी भी उसका राजनैतिक या आर्थिक लाभ लेने की कोशिश नहीं की अपितु उन्होंने तो जन्म ही लिया था. भारत माता की सेवा के लिए और वो उसको कर गए .. उन्ही लाखों ज्ञात अज्ञात वीरों में से एक हैं मेजर सत्यप्रकाश जी. जिन्होंने सन 1965 के पाकिस्तान युद्ध में अपनी वीरता और शौर्य का वो प्रदर्शन किया था. इस्लामिक मुल्क पाकिस्तान की सेनाएं दुम दबा कर भाग खड़ी हुयी थी.
गांव जठेड़ी के बहादुर बेटे सतप्रकाश वर्मा जी ने वर्ष 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. मेजर सतप्रकाश वर्मा जी 3-4 सितंबर, 1965 की रात को भारतीय सेना की अग्रणी कंपनी के कमांडर थे. कंपनी को जम्मू और कश्मीर में संजोई चौकी पर आक्रमण की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इस चौकी तक पहुंचने के लिए एक पत्थर से बनी ऊंची दीवार को पार करना था. जब भारतीय कंपनी का आक्रमण अस्थायी तौर पर शत्रु द्वारा रोक दिया गया तो उन्होंने अपने रॉकेट लांचर का रुख पत्थर की दीवार व शत्रु के बंकर की ओर मोड़ दिया था.
मेजर सत्यप्रकाश जी ने पत्थर की दीवार में दरार कर रास्ता बना दिया था. इसके पश्चात उन्होंने दुश्मन को उनकी चौकियों से खदेड़ दिया. भारी गोलाबारी के बीच वह बहादुरी से अपने सैनिको के साथ आगे बढ़ते रहे. एक-एक कर दुश्मनों के सभी बंकरों को उन्होंने आगे रहते हुए ध्वस्त कर दिया था. इतने में पाकिस्तान के दो सिपाहियों ने अचानक उन पर हमला बोल दिया था. उन्होंने दोनों को अपनी खुखरी से मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि दुश्मनों के हमले में उनके पेट में दो एमएमजी के बर्स्ट लग गए फिर भी वे अपने जवानों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे.
अंतत: भारतीय सैनिक अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल रहे, लेकिन मेजर सतप्रकाश वर्मा जी इस अभियान में अमर हो गए थे. ऐसे शूरवीरों , निडर , गौरशाली , कर्तव्य परायण बलिदानियों के चरणों में सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन , वंदन और अभिनन्दन करता है साथ ही आजादी और अखंडता की ऐसी प्रतिमूर्तियों की गौरवगाथा को समय समय पर जनमानस के बीच लाने का अपना पुराना संकल्प भी दोहराता है. मेजर सत्यप्रकाश वर्मा जी अमर रहें, जय हिन्द की सेना.