27 अगस्त: बलिदान दिवस पर नमन है त्रिपुरा में हिंदुत्व के रक्षक स्वामी शांति काली जी महाराज को... जिन्हें आज ही के दिन मिशनरियों ने मार डाला
धर्म ,न्याय और नीति की रक्षा कर के सदा के लिए अमर हो गए स्वामी शान्ति काली महराज जी को आज उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन, वंदन और अभिनंदन करता है
ये धर्म की दहकती मशाल यू ही नहीं जल रही है. इस मशाल में जो ईंधन है असल में वो तेल नहीं है अपितु उन तमाम ज्ञात और अज्ञात वीर बलिदानियों का लहू है जो कुछ को दिखाई देता है. कुछ को दिखाई नहीं देता पर वो देखना चाहते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो देखना ही नहीं चाहते. यद्दपि ये उनका दुर्भाग्य है जो भी ऐसे धर्मवीरों और उनके बलिदान की उपेक्षा करे ..
धर्म की मशाल को अपने रक्त के ईंधन से सींचने वाले उन तमाम ज्ञात और अज्ञात बलिदानियों में से एक हैं स्वामी शान्ति काली महराज जी महराज जिनका आज बलिदान दिवस है. ये स्वामी काली जी महराज वो महान हिन्दू संत थे जिन्हें संघर्ष जन्म से ही मिला. वो चाहते तो इस से मुह मोड़ कर अपना जीवन आराम से बिता सकते थे.
पर उन्होंने अपनी आँखों के आगे हो रहे धर्मांतरण के नंगे नाच को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और निकल पड़े मिशनरियों की उस सत्ता को अपने बाहुबल से धकेलने जो उनके जज्बे और संकल्प की पहाड़ जैसी मजबूती को दर्शाता है . इनका जन्म पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा के सुब्रुम जिले में हुआ, धर्म के हालत को देख कर इन्होने काफी कम आयु में ही घर छोड़ दिया और पूरे भारत का भ्रमण किया ।
भारत भ्रमण से वापस आने के बाद में त्रिपुरा लौटकर शांति काली आश्रम की स्थापना की । यहाँ इन्होने हिंदुत्व से दूर हो रहे जनमानस और जनजातीय इलाकों में गरीब लोगों के लिए विद्यालय ,अस्पताल खुलवाए । इन्होंने गरीब लोगों की भरपूर मदद की ताकि जनजातीय लोग ईसाई मिशनरी के चंगुल में ना फंसे।
इस प्रकार ईसाई मिशनरी के लिए स्वामी जी रास्ते का रोड़ा बन गए थे । उन्होंने उन्हें किसी भी प्रकार से मार्ग से हटाने की ठान ली और उसके लिए उन्होंने हत्यारों का इंतजाम भी कर लिया और सारी रूप रेखा भी बनवा ली .
आज ही अर्थात 27 अगस्त 2000 को स्वामी जी अपने आश्रम में अपने कुछ अनुयायियों के साथ बैठे थे . वहां धर्म आदि के प्रचार और प्रसार की चर्चा चल ही रही थी कि अचानक ही उन पर मिशनरी समर्थित NLFT के आतंकियों ने हमला कर दिया . स्वामी जी का शरीर गोलियों से बिंध गया.
इसी के साथ स्वामी जी अपने ही आश्रम में उस विशाल धर्मान्तरित करने वाले तंत्र से लड़ कर वीरगति पाए .. ट्रेन में सीट के झगडे को अन्तराष्ट्रीय स्वरूप देने वाले कुछ तथाकथित समाचार माध्यम इस क्रूर , न्रिशंश कत्ल पर ऐसे खामोश बने रहे जैसे उधर कुछ हुआ ही नहीं हो .. असल में ऐसा उनकी हिन्दू विरोधी सोच के चलते हुआ और कुछ ने अपने सत्ता के आकाओं के प्रति अपनी वफादारी दिखाई .
धर्म ,न्याय और नीति की रक्षा कर के सदा के लिए अमर हो गए स्वामी शान्ति काली महराज जी को आज अर्थात 27 अगस्त को उनके बलिदान दिवस पर सुदर्शन परिवार बारम्बार नमन, वंदन और अभिनंदन करता है साथ ही ऐसे अमर बलिदानियों की अमरता की गाथा को समय समय पर दुनिया के आगे लाते रहने का संकल्प एक बार फिर से दोहराता है . वास्तविक संत की परिभाषा है जो सन्यास मार्ग पर आने की कोशिश कर रहे तमाम के लिए सर्वोच्च प्रेरणा बन सकता है .
स्वामी शान्ति काली महाराज जी अमर रहें ..
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