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23 सितंबर : बलिदान दिवस पर नमन कीजिए वीर सेनानायक बदलू सिंह जी... जिन्होंने तलवार से किया था दुश्मन की मशीन गन का सामना

वीर सेनानायक बदलू सिंह जी को पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए जन जन तक पहुंचाने का संकल्प लेता है.

Sumant Kashyap
  • Sep 23 2024 8:00AM

देश के इतिहास में ऐसे योद्धाओं की गाथाओं से भरा पड़ा है, जो अपने शौर्य और अदम्‍य साहस के चलते अमर हो गए. ऐसे ही एक वीर थे रिसालदार बदलू सिंह जी, जिन्‍होंने बेहद मुश्किल परिस्थितयों में भी गजब की बहादुरी द‍िखाते हुए दुश्‍मनों को घुटने पर ला दिया. उनकी बहादुरी से जन-जन को रूबरू कराया जाता है. आज हम एक ऐसे ही महान योद्धा से आपको रूबरू कराने जा रहे हैं, जिन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अपने अदम्य साहस और बहादुरी का परिचय देते हुए तुर्की सेना को बुरी तरह से परास्त किया और आत्मसमर्पण करने को मजबूर कर दिया था. 

आज यानी 23 सितंबर को उनके पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहें हैं. वहीं, पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए जन जन तक पहुंचाने का संकल्प लेता है.जानकारी के लिए बता दें कि दुश्मन सेना के आत्मसमर्पण के तुरंत बाद रिसालदार बदलू सिंह जी घायल योद्धा भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे, जिन्हें मरणोपरांत विक्टोरिया क्रॉस से सम्मानित किया गया. हम जिक्र कर रहे हैं झज्जर जिले के ढाकला गांव में पैदा हुए रिसलदार बदलू सिंह की बहादुरी का. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्हें और उनकी रेजिमेंट को ब्रिटिश भारतीय सेना ने फिलिस्तीन की जॉर्डन घाटी में तैनात किया.

वहीं, तुर्की सेना लगातार हमले कर रही थी और उन्हें रोकने के लिए 12वीं केवलरी ब्रिगेड को जिम्मेदारी दी गई, जिसमें बदलू सिंह बतौर रिसलदार शामिल थे. बता दें कि 23 सितंबर 1918 को तुर्की सेना की सातवीं और आठवीं आर्मी के रास्ते को अवरुद्ध करने का काम इन्हें सौंपा गया था. तुर्की सेना के पास अत्याधुनिक हथियारों के अलावा सैनिकों का संख्या बल भी इनसे ज्यादा था. तुर्की सेना की मशीन गन लगातार इनकी रेजिमेंट पर हमला कर रही थी, जिससे काफी सैनिक मारे जा रहे थे. इन्हें जॉर्डन नदी के किनारे स्थित दुश्मन सेना के एक मजबूत ठिकाने पर आक्रमण करने का आदेश मिला.

रिसलदार बदलू सिंह अपने स्क्वाड्रन के साथ अपने लक्ष्य को निशाना बनाकर आगे बढ़ रहे थे. लेकिन इसी दौरान उन्होंने देखा कि इनकी बाई तरफ पहाड़ी पर 200 तुर्क सैनिक सैन्य साजो समान और मशीन गन के साथ मोर्चा संभाले हुए हैं. मशीनगन से लगातार फायर हो रहे थे, जिस कारण इनके कई साथी उसकी चपेट में आ गए, ऐसे हालात से बाहर नहीं निकला जा सकता था, इसलिए बबलू सिंह ने तुरंत एक बड़ा रिस्क लिया.

अपने लक्ष्‍य की तरफ बढ़ते हुए बदलू सिंह ने पाया कि बांई ओर एक छोटी सी पहाड़ी से तुर्की सैनिक मशीनगन से गोलियां बरसा रहे हैं. उन्‍होंने एक भी पल गंवाए बिना अपने 6 और साथियों के साथ उसी पहाड़ी पर धावा बोल दिया. बरसती गोलियां सीने पर खाकर बदलू सिंह और उनके साथी पहाड़ी पर पहुंचे और अपनी तलवारों से दुश्‍मनों के सिर उड़ाने लगे. उनके इस हमले से दुश्‍मन आत्‍मसमर्पण करने को मजबूर हो गए.वहीं, पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें बारंबार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए जन जन तक पहुंचाने का संकल्प लेता है.

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