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23 फरवरी : जन्मजंयती सरदार अजीत सिंह जी की... जिनको श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था की ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं

भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह जी जो देश के वीर सपूत भगत सिंहे के चाचा थे. उन महान सपूत का आज यानी की 23 फरवरी को देश के जन्म जयंती है.

Sumant Kashyap
  • Feb 23 2024 9:12AM
भारत के सुप्रसिद्ध राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी सरदार अजीत सिंह जी जो देश के वीर सपूत भगत सिंहे के चाचा थे. उन महान सपूत का आज यानी की 23 फरवरी को जन्म जयंती है. इनका जन्म  23 फरवरी 1881 को पंजाब के जालंधर के खटकड़ कलां गांव में हुआ था. यह शहीद भगत सिंह के पिता किशन सिंह के बड़े भाई थे.

जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर देश को आजादी दिलाई. हालांकि हमारे एजुकेशन सिस्टम में बहुत सीमित क्रांतिकारियों और आंदोलनकारियों को जगह दी गई जिससे बेहद कम लोगों को इनके बारे में जानकारी है.  इनके बारे में कभी श्री बाल गंगाधर तिलक ने कहा था ये स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने योग्य हैं . 

जब तिलक ने ये कहा था तब सरदार अजीत सिंह की उम्र केवल 25 साल थी. 1909 में सरदार अपना घर बार छोड़ कर देश सेवा के लिए विदेश यात्रा पर निकल चुके थे, उस समय उनकी उम्र 28 वर्ष की थी. इरान के रास्ते तुर्की, जर्मनी, ब्राजील, स्विट्जरलैंड, इटली, जापान आदि देशों में रहकर उन्होंने क्रांति का बीज बोया और आजाद हिन्द फौज की स्थापना की.

सरदार अजीत सिंह भारत में ब्रिटेन शासन को भी चुनौती दी तथा भारत के औपनिवेशिक शासन की आलोचना की और खुलकर विरोध भी किया. उन्हें राजनीतिक 'विद्रोही' घोषित कर दिया गया था. उनका अधिकांश जीवन जेल में बीता. 1906 में लाला लाजपत राय जी के साथ ही साथ उन्हें भी देश निकाले का दण्ड दिया गया था.

नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी से मिलाया. मुसोलिनी तो उनके व्यक्तित्व के मुरीद थे. इन दिनों में उन्होंने 40 भाषाओं पर अधिकार प्राप्त कर ली थी. रोम रेडियो को तो उन्होंने नया नाम दे दिया था, 'आजाद हिन्द रेडियो' तथा इसके माध्यम से क्रांति का प्रचार प्रसार किया. मार्च 1947 में वे भारत वापस लौटे.भारत लौटने पर पत्नी ने पहचान के लिए कई सवाल पूछे, जिनका सही जवाब मिलने के बाद भी उनकी पत्नी को विश्वास नही. 

15 अगस्त 1947 को ली अंतीम सांस

इतनी भाषाओं के ज्ञानी हो चुके थे सरदार, कि पहचानना बहुत ही मुश्किल था. 40 साल तक एकाकी और तपस्वी जीवन बिताने वाली श्रीमती हरनाम कौर भी वैसे ही जीवत व्यक्तित्व वाली महिला थीं. भारत के विभाजन से वे इतने व्यथित थे कि 15 अगस्त 1947 के सुबह 4 बजे उन्होंने उसके पूरे परिवार को जगाया, और जय हिन्द कह कर दुनिया से विदा ले ली।

शहीद भगत सिंह पर था अपने चाचा अजीत सिंह का प्रभाव

सरदार अजीत सिंह ने अपनी शुरुआती पढ़ाई जालंधर से करने के बाद बरेली के लॉ कॉलेज से आगे की पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान ही वह भारत के स्वाधीनता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और अपनी कानून की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ दिया. अजीत सिंह और उनका परिवार आर्य समाज से खासा प्रभावित था और इसका प्रभाव भगत सिंह पर भी पड़ा. अजीत सिंह पंजाब के उन पहले आंदोलनकारियों में से एक थे, जिन्होंने खुले तौर पर ब्रिटिश शासन को चुनौती दी. अपने भतीजे भगत सिंह के लिए भी उन्होंने क्रांति की नींव रखने का काम किया। 

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