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22 अक्टूबर : बलिदान दिवस विट्ठलभाई पटेल जी... जिन्होंने स्वाधीनता आन्दोलन में गांधी के कई विचार का खुलकर किया था विरोध

स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन

Sumant Kashyap
  • Oct 22 2024 7:54AM

आज़ादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारे में नही बताया होगा. बिना खड्ग बिना ढाल के आज़ादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने तो दूर, सदा के लिए मिटाने की कोशिश की है. आज उन लाखों सशस्त्र क्रांतिवीरों में से एक विट्ठलभाई पटेल जी की पुण्‍यतिथि है. जिसे शायद ही कोई जानता होगा जिसके हिसाब से हर बलिदान उसी के परिवार के आस पास घूमता है. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है. 

बता दें कि विट्ठलभाई पटेल जी स्वाधीनता आन्दोलन के एक प्रमुख नेता, विधानवेत्ता और लौहपुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल जी के बड़े भाई थे. वे केन्द्रीय असेंबली के सदस्य और बाद में अध्यक्ष भी बने. कांग्रेस छोड़कर उन्होंने ‘स्वराज पार्टी’ की स्थापना भी की. इंग्लैंड से बैरिस्टर बनने के बाद उन्होंने वकालत के पेशे में अपनी अच्छी पहचान बना ली थी परन्तु शीघ्र ही राष्ट्रिय स्वाधीनता आन्दोलन में शामिल हो गए. विट्ठलभाई पटेल जी एक बेहतरीन वक्ता भी थे. कांग्रेस पार्टी के अन्दर उन्हें एक उग्र नेता के रूप में जाना जाता था. उनके और गांधी  के विचार एकदम भिन्न थे इसी कारण कई मुद्दों पर उनके मध्य मतभेद भी रहे.

विट्ठलभाई पटेल जी जन्म सन् 1871 ईसवी में गुजरात के खेड़ा जिला के अंतर्गत "करमसद" गांव में हुआ था. आपकी प्रारभिक शिक्षादीक्षा करमसद और नड़ियाद में हुई. इसके बाद आप कानून की शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड गए. वहां से वैरिस्टरी की परीक्षा में उत्तीर्ण होकर आप स्वदेश आए और वकालत प्रारंभ की. आपके आकर्षक एवं प्रभावशाली व्यक्तित्व तथा कानून के पांडित्य ने, अल्पकाल में ही अपको इस क्षेत्र में प्रसिद्ध कर दिया तथा आपने पर्याप्त धन भी अर्जित किया. इसी बीच धर्मपत्नी की मृत्यु ने आपके जीवन में परिवर्तन किया और आप शीघ्र ही सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगे.

सर्वप्रथम आपके बंबई कारपोरेशन, बंबई धारासभा तथा कांग्रेस में महत्वपूर्ण कार्य किया. 24 अगस्त 1925 ईसवी को आप धारासभा के अध्यक्ष चुने गए. यहीं से विट्ठलभाई पटेल जी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय प्रारंभ होता है. आपकी निष्पक्ष, निर्भीक विचारधारा ने धरातल में आपके व्यक्तित्व की अमिट छाप अंकित की. संसदीय विधि विधानों के आप प्रकाण्ड पंडित थे. यही कारण है कि आप सदन में सभी दलों के आदर एवं श्रद्धा के पात्र थे और आपकी दी हुई विद्वत्तापूर्ण व्यवस्था सभी लोगों को मान्य हुआ करती थी. केंद्रीय धारासभा के अध्यक्ष के रूप में आप भारत में ही नहीं विदेशों में भी विख्यात हुए. विधि विषयक अपने सूक्ष्म ज्ञान से आप तत्कालीन सरकार को भी परेशानी में डाल दिया करते थे. अपने कार्य तथा देश को आपको सहज अभिमान था.

वहीं, पत्नी के निधन के बाद विट्ठलभाई पटेल जी की रूचि सामाजिक और राजनैतिक कार्यों में बढ़ी. हालांकि वे गांधी के राजनैतिक दर्शन, सिद्धांतों और नेतृत्व से पूरी तरह कभी भी सहमत नहीं थे फिर भी देश की आजादी में अपना योगदान देने के लिए उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली. हालांकि जन-साधारण में उनकी बड़ी पैठ नहीं थी पर अपने जोशीले और तार्किक भाषणों और लेखों के माध्यम से उन्होंने लोगों का ध्यान खींचा.

उन्होंने असहयोग आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया पर जब चौरी-चौरा कांड के बाद गांधी ने परामर्श किये बगैर असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया तब विट्ठल भाई पटेल जी ने कांग्रेस से त्यागपत्र दे दिया और चित्तरंजन दास जी और मोतीलाल नेहरु के सहयोग से ‘स्वराज’ पार्टी की स्थापना की. स्वराज पार्टी का मुख्य उद्देश्य था विधान परिषदों में प्रवेश कर सरकार के काम-काज को बाधित करना. स्वराज पार्टी ने कांग्रेस के भीतर दरार पैदा कर दिया था पर अपने लक्ष्यों में बहुत सफल नही हो सकी. विट्ठल भाई पटेल जी बॉम्बे विधान परिषद् के लिए चुने गए जहाँ उन्हें देश की आजादी से सम्बन्धित कोई कार्य करने का अवसर नहीं मिला परन्तु उन्होंने अपने भाषणों और वाकपटुता के माध्यम से अंग्रेजी अधिकारियों और सरकार की नीतियों पर खुला प्रहार किया.

सन् 1923 में वे केन्द्रीय विधान परिषद् के लिए चुने गए और 1925 में इसके अध्यक्ष बन गए. उनकी  निष्पक्ष और निर्भीक विचारधारा ने लोगों पर उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी. विट्ठल भाई संसदीय विधि विधानों के प्रकांड विद्वान थे जिसके कारण सदन में सभी दल उन्हें आदर और सम्मान देते थे और उनकी दी हुई विद्वत्तापूर्ण व्यवस्था सभी लोगों को मान्य हुआ करती थी. केंद्रीय विधान सभा के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी ख्याति अर्जित की.

विट्ठल भाई पटेल जी अपना निर्णायक मत डालकर सरकारी सार्वजनिक सुरक्षा बिल को अस्वीकृत करा दिया और अधिवेशन के दौरान पुलिस को केन्द्रीय असेम्बली हॉल में प्रवेश करने से रोक दिया. विट्ठल भाई पटेल जी 1930 ई. में कांग्रेस नेताओं के नज़रबंद कर दिये जाने के विरोधस्वरूप केन्द्रीय असेम्बली के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया और इसके बाद ही स्वयं इनको भी नज़रबंद कर दिया गया. जेल में उनका स्वास्थ्य चौपट हो गया और वे स्वास्थ्य सुधार के लिए यूरोप चले गए.

बता दें कि  जेल से रिहा होने के बाद विट्ठल भाई पटेल जी इलाज के लिया ऑस्ट्रिया के शहर वियना चले गए. वहां उनकी मुलाकात नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जी से हुई, जो खुद भी स्वास्थ्य लाभ के लिए वहां गए हुए थे. नेताजी का स्वास्थ्य तो सुधर रहा था पर विट्ठल भाई पटेल जी का स्वास्थ्य गिरता गया और 22 अक्टूबर 1933 को जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में उनकी मृत्यु हो गई. उनका अंतिम संस्कार 10 नवम्बर 1933 को बॉम्बे में किया गया. वहीं, आज स्वतंत्रता के उस महानायक को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनके यशगान को सदा-सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार दोहराता है.

 

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