कोरोना संकट के चलते रोजगार पर सबसे अधिक मार पड़ने जा रही है। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए लॉकडाउन में राहत के बावजूद भी कंपनियों को सामाजिक दूरी का ध्यान रखते हुए काम करना पड़ रहा है। ऐसे में वह नई तकनीक अपनाने पर मजबूर होंगी। इससे भारत में कम से कम 20 फीसदी नौकरियां घट सकती हैं। इसमें सबसे अधिक मुश्किल मैन्युफैक्चरिंग और ऑटो इंडस्ट्री के लिए होगी। उद्योग मंडल फिक्की ने एक रिपोर्ट में यह बात कही है। सूचना प्रौद्योगिक संस्था नैस्कॉम और वित्तीय शोध संस्था अर्नेस्ट एंड यंग के साथ मिलकर फिक्की यह रिपोर्ट तैयार की है। इसमें कहा गया है कि कोरोना के बाद काम के तरीके में बड़ा बदलाव होने जा रहा है जिसका असर रोजगार पर पड़ेगा। इसमें कहा गया है कि वाहन क्षेत्र में 10 से 15 फीसदी और कपड़ा क्षेत्र में 15 से 20 फीसदी नौकरियां इस दौरान खत्म हो सकती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक इस महामारी के दौर में महज पांच से दस फीसदी नई नौकरियां पैदा होने की उम्मीद है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 तक वाहन क्षेत्र में 50 फीसदी और कपड़ा क्षेत्र में 40 फीसदी नौकरियों में तकनीक और कुशलता (स्किल) के आधार पर बदलाव होगा। इसमें कहा गया है कि कपड़ा क्षेत्र में डेटा साइंटिस्ट, पर्यावरण विशेषज्ञ और आईटी प्रॉसेस इंजीनियर के रुप में नए रोजगार के तौर पर उभरेंगे।
रिपोर्ट के मुताबिक वाहन क्षेत्र में ऑटोमोबाइल एनॉलिटिक्स इंजीनियर, साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ और थ्रीडी प्रिंटिंग टेक्निशियन की विशेषज्ञता वालों की मांग बढ़ेगी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस बदलाव में सबसे बड़ी चुनौती मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए होगी। इसमें पुराने स्तर पर उत्पादन को लाने के लिए कंपनियों को स्वास्थ्य की जांच लिए जरूरी मशीन और उसके लिए कुशल विशेषज्ञ रखने होंगे। जबकि मौजूदा समय में कोविड-19 के मद्देनजर सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए काम कराना ख़ासा मुश्किल हो रहा है। इसमें चिंता जताते हुए कहा गया है कि इस क्षेत्र में कंपनियों को भारी छंटनी करने और नई तकनीक अपनाने पर मजबूर होना पड़ेगा। इससे बेरोजगारी बढ़ने का खतरा होगा।