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13 फरवरी : बलिदान दिवस महान क्रांतिकारी बुधु भगत जी... जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के लिए शुरू किया था लरका विद्रोह

आज महान क्रांतिकारी बुधु भगत जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

Sumant Kashyap
  • Feb 13 2024 9:26AM

ये वो इतिहास है जिसे आज तक आप को कभी बताया नहीं गया था. उस कलम का दोष है ये जिसने नीलाम मन से और बिकी स्याही से अंग्रेज अफसरों के नामों के आगे आज तक सर लगाया है. और देश के क्रांतिकारियों को अपराधी तक लिखा स्वतंत्र भारत में .. इतना ही नहीं उन्होंने देश को ये जानने ही नही दिया की उनके लिए सच्चा बलिदान किस ने दिया और कब दिया है. यह देश को अनंत काल तक पीड़ा पहुंचाने वाला धोखा है. आज महान क्रांतिकारी बुधु भगत जी  को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

दरअसल, वनवासी समाज से आने वाले बुधु भगत जी का जन्म झारखंड के रांची जिले में स्थित शिलागाईं गांव में 17 फरवरी, 1792 को हुआ था. उरांव जनजाति में पैदा हुए बुधु जी अद्भुत संगठन क्षमता थी. अमूमन 1857 को ही स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम आंदोलन माना जाता है. लेकिन, इससे पूर्व ही वीर बुधु भगत जी ने न सिर्फ क्रांति का शंखनाद किया था, बल्कि अपने साहस नेतृत्व क्षमता से 1832 ई. में ‘‘लरका विद्रोह’’ नामक ऐतिहासिक आंदोलन का सूत्रपात्र भी किया.

जानकारी के लिए बता दें कि बुधु भगत जी ने अंग्रेजों के खिलाफ गुरिल्‍ला यु्द्ध शुरू किया. गांव के लोगों को अंग्रेजों से यु्द्ध करने के लिए तैयार किया. उनकी संगठन क्षमता ऐसी थी कि लोगों ने उन्हें देवता का अवतार माना.  बुधु भगत जी सिल्ली, चोरेया, पिठौरिया, लोहरदगा और पलामू में लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित करने का कार्य किया. बुधु भगत जी ने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी वह उनके हाथ नहीं आए तो उन पर एक हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया गया.

वहीं, 14 फरवरी 1832 के दिन अंग्रेजों की सेना ने बुधु भगत जी और उनके साथियों को सिलगाई गांव में घेर लिया. अंग्रेजों के पास अत्‍याधुनिक बंदूकें थीं, जबकि बुधु भगत जी और उनके साथियों के पास तीर कमान और तलवार जैसे हथियार थे. अंग्रेजों की चेतावनी के बाद भी उन्‍होंने आत्‍मसमर्पण नहीं किया और अपने अनुयायियों के साथ अंग्रेजों से युद्ध करते हुए बलिदान हो गए. इस युद्ध में उनके भाई, भतीजे और दोनों बेटे उदय और करण व बुधु भगत की दोनों बेटियां रुनिया और झुनिया भी वीरगति को प्राप्‍त हुई.

वहीं,13 फरवरी 1832 को बुधु जी और उनके साथियों को कैप्टन इंपे ने सिलागांई गांव में घेर लिया. बुधु जी आत्म समर्पण करना चाहते थे, जिससे अंग्रेज़ों की ओर से हो रही अंधाधुंध गोलीबारी में निर्दोष ग्रामीण न मारे जाएं. लेकिन बुधु जी के भक्तों ने वृताकर घेरा बनाकर उन्हें घेर लिया. चेतावनी के बाद कैप्टन ने गोली चलाने का आदेश दे दिया.अंधाधुंध गोलियां चलने लगीं. बूढ़े, बच्चों, महिलाओं और युवाओं के भीषण चीत्कार से इलाका कांप उठा. उस खूनी तांडव में करीब 300 ग्रामीण मारे गए. अन्याय के विरुद्ध जन विद्रोह को हथियार के बल पर जबरन खामोश कर दिया गया. बुधु भगत जी तथा उनके बेटे 'हलधर' और 'गिरधर' के साथ बेटियां रुनिया और झुनिया भी अंग्रेज़ों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्‍त हुई.

आज महान क्रांतिकारी बुधु भगत जी  को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

 

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